अपने कलाकार को जिएं
कहा गया है कि प्रकृति के कण-कण में सौंदर्य है, बस उसे परखने की दृष्टि चाहिए। प्रकृति के सहचर के रूप में स्वयं को रखना सबको नहीं आता। उन्होंने नौकरी से अवकाश लेने के बाद निर्णय लिया कि जिंदगी का बाकी...
कहा गया है कि प्रकृति के कण-कण में सौंदर्य है, बस उसे परखने की दृष्टि चाहिए। प्रकृति के सहचर के रूप में स्वयं को रखना सबको नहीं आता। उन्होंने नौकरी से अवकाश लेने के बाद निर्णय लिया कि जिंदगी का बाकी समय वह कला के लिए खुद को समर्पित करेंगे। बचपन से वह चित्र बनाते थे। अब उन्होंने उस गुण को फिर से जीने के लिए खुद को तैयार किया। प्रकृति को लगातार निहारते और कागज पर उसे उतारते-उतारते वह प्रकृति के चितेरे बन चुके थे। जब उनकी बेहतरीन पेंटिंग्स की चर्चा चारों तरफ होने लगी, तो जो लोग उन्हें पागल समझते थे, उन्हें अपनी सोच बदलनी पड़़ी। कला हर व्यक्ति में निहित होती है, और हर व्यक्ति के अंदर एक कलाकार छिपा होता है, बस उसकी समझ कम लोगों में होती है। विचारक टी एम ग्रीन के मुताबिक, कलाकार में कुछ खास तरह के गुण होते हैं, जिनमें ‘सत्य’ और ‘महानता’ प्रमुख हैं। इसी तरह, कला में जीवन के वे महान तथ्य होने चाहिए, जो जीवन की पूर्णता की अभिव्यक्ति हों। इसके लिए प्रकृति का चितेरा होना और जीवन की बेहतर समझ होनी चाहिए। हम कुछ भी करते हैं, यदि उसे कला समझकर करें, तो वह कार्य एक ‘कृति’ बन सकता है। जैसे किसी कृति के निर्माण में कलाकार का गहराई से डूबना आवश्यक है, उसी तरह किसी भी कार्य में यदि हम गहराई से डूब जाएं, तो वह कार्य कलात्मक तरीके से पूर्ण हो सकता है। कलाकार जैसे अपनी प्रत्येक कृति में अपना सर्वस्व समर्पित करता है, और उसकी प्रत्येक कृति मौलिक बन जाती है, उसी तरह यदि हम अपने प्रत्येक कार्य को पूर्ण समर्पण भाव से करें, तो वह भी सुंदर और मौलिक होगा।