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ज्यादा ही सोच रहे हो

अभी तो किसी तरह चल रहा है। आगे पता नहीं क्या होगा? अगर हालात ठीक नहीं हुए तो... अगर सब गड़बड़ा गया तो? सोच का सिलसिला है कि थमता ही नहीं। ‘सोचिए, लेकिन बहुत ज्यादा सोचने से बचना चाहिए।’ यह...

ज्यादा ही सोच रहे हो
 राजीव कटारा  Fri, 22 May 2020 09:30 PM
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अभी तो किसी तरह चल रहा है। आगे पता नहीं क्या होगा? अगर हालात ठीक नहीं हुए तो... अगर सब गड़बड़ा गया तो? सोच का सिलसिला है कि थमता ही नहीं। ‘सोचिए, लेकिन बहुत ज्यादा सोचने से बचना चाहिए।’ यह मानना है डॉ. डेविड क्लार्क का। वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं। न्यू ब्रन्सविक यूनिवसर््िाटी में साइकोलॉजी पढ़ाते हैं। उनकी दो बेहतरीन किताबें हैं, द ऐंगजाएटी ऐंड वरी वर्कबुक  औरद ऐंगशस थॉट्स वर्कबुक।
हम जिस तरह से सांस लेते हैं, उसी तरह सोचते हैं। हमारे लिए सोचना सहज होता है। हम सोचते रहते हैं और हमें पता ही नहीं लगता। यही सोचने का सही तरीका है। कभी-कभी हम सोचते हैं और हम उसे महसूस कर रहे होते हैं। यदि यह महसूस करना बौद्धों की ‘माइंडफुलनेस’ है, तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर यह हमारी आदत हो गई है, तो दिक्कत की बात है। अपनी इस आदत से हम सिर्फ परेशान हो सकते हैं। और महज परेशान होकर हम कहां पहुंचेंगे? यह ज्यादा सोचना हमें परेशानी से निकालता नहीं है। हालात वहीं के वहीं रहते हैं। हम बेचैन होते रहते हैं। हमारे हालात जब खराब होते हैं, तो हमें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं होती। हमें ठीक से सोचने की जरूरत होती है। हम ठीक से सोच सकें, इसके लिए हमें खुद को शांत रखना होता है। अपनी भावनाओं को संयत रखना होता है। हालात खराब होने के मायने होते हैं कि हमें आगे साफ-साफ नजर नहीं आ रहा है। ऐसे वक्त में, हम जहां खड़े हैं, वहां हमें मजबूती से खड़ा होना होता है। हमें जो दिख रहा है, उस पर काम करना होता है। उसके लिए ज्यादा नहीं, सही सोचना जरूरी होता है।

 

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