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हर कदम एक चुनाव

ये कहां आ गए हम। अक्सर खुद को गुनगुनाते पाया है। और गुनगुनाने के बाद अपने को उदास पाया है। ‘हम जब परेशान होते हैं, तो अपने चुनावों पर सोचते हैं। हमारा चुनना ही हमारी नियति है।’ यह मानना...

हर कदम एक चुनाव
राजीव कटाराFri, 21 Feb 2020 11:49 PM
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ये कहां आ गए हम। अक्सर खुद को गुनगुनाते पाया है। और गुनगुनाने के बाद अपने को उदास पाया है। ‘हम जब परेशान होते हैं, तो अपने चुनावों पर सोचते हैं। हमारा चुनना ही हमारी नियति है।’ यह मानना है ऐन्डर्स हैसलस्ट्रॉम का। वह मशहूर मोटीवेटर और एथलीट हैं। डेनमार्क के रहने वाले हैं। उनकी चर्चित किताब है, इंप्लीमेंटिंग हेल्दी हैबिट्स।

हमारी जिंदगी ही एक चुनाव है। हम कदम-कदम पर चुनते चलते हैं। हमें सुबह उठना है या नहीं? जल्दी उठना है या देर से? जाना है या नहीं जाना है? यह काम करना है या नहीं करना? अभी वही काम करना है या बाद में? कुछ पढ़ना है या नहीं? घूमना है या नहीं? यहां घूमना है या वहां? यह खाना है या वह? सुबह से यह सिलसिला चलता है। रात में जाकर रुकता है। सो जाएं या नहीं। यानी हर पल हम कुछ न कुछ चुनते रहते हैं। हाल यह है कि चुनने की भी आदत सी हो जाती है हमारी। चुन-चुनकर ही हमारी जिंदगी चलती है। हमारे चुनाव ही हमारी शख्सीयत को गढ़ते हैं। हम जैसा चुनते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। जब हम नहीं चुनते हैं, तब भी कुछ चुन रहे होते हैं।

यह तो पल-पल चुनना हुआ। कुछ चुनना हमारी पूरी जिंदगी से जुड़ा होता है। यही हमारी जिंदगी के बड़े सवाल या फैसले होते हैं। यह बहुत सोच-समझकर होना चाहिए। उस हाल में हमें सबसे पहले खुद को देखना होता है। हम अपना मन समझते हैं। अपना रुझान देखते हैं। अपने मूल्यों पर सोचते हैं। अपने को आंकते हैं और कोई एक चीज चुन लेते हैं। यही चुनना हमारी जिंदगी तय कर देता है।

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