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परिणाम की चिंता

एक फ्रेंच मनोवैज्ञानिक थे एमिल कुए। उन्होंने एक नियम खोजा था, विपरीत प्रभाव का परिणाम- द लॉ ऑफ द रिवर्स इफेक्ट। जब कल्पना और संकल्प का संघर्ष चलता है, तो कल्पना हमेशा जीतती है। फर्ज करें, जमीन पर...

परिणाम की चिंता
अमृत साधनाMon, 20 Jan 2020 12:11 AM
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एक फ्रेंच मनोवैज्ञानिक थे एमिल कुए। उन्होंने एक नियम खोजा था, विपरीत प्रभाव का परिणाम- द लॉ ऑफ द रिवर्स इफेक्ट। जब कल्पना और संकल्प का संघर्ष चलता है, तो कल्पना हमेशा जीतती है। फर्ज करें, जमीन पर लकड़ी की एक लंबी मजबूत पट्टी रखी है और आपको उस पर चलने के लिए कहा जाए, तो आप बिना सोचे, मजे से उस पर चल लेंगे। अगर उसे चार फीट की ऊंचाई पर रखा जाए, तब आप चलेंगे, लेकिन कुछ सावधान होकर। मगर यदि उसे चालीस फीट या चार सौ फीट पर रखा जाए, तो आप चलने से मना कर देंगे, क्योंकि अब गिरने का डर शामिल होगा। जरा सोचिए, अभी आप चले भी नहीं, फिर यह डर कहां से आ गया? यह कल्पना शक्ति का काम है।

मन की कई शक्तियां हैं, कलपना उनमें से एक बेहद प्रबल शक्ति है। कल्पना यानी इमेजिनेशन। यह शब्द इमेज से बना है। कल्पना मस्तिष्क में एक इमेज, एक चित्र बनाती है, जो वास्तविक मालूम होता है। जो घटना अभी घटी नहीं है, कल्पना ने मन को भरोसा दिला दिया कि यह घटेगा, या घट चुका। बस, आपका संकल्प कमजोर पड़ गया। आपने सोच लिया कि आप गिरने वाले हैं। और हैरानी की बात है कि इस सोच के कारण ही आप गिरेंगे। यह ख्याल ही कि आप गिरना नहीं चाहते हैं, आपके मन में इतना तनाव पैदा कर देगा कि वह तनाव ही आपको गिरा देगा। तनावग्रस्त मन को सफलता मिलनी असंभव है। पर जो लोग रलैक्स होकर विषय को समझते हुए, सार को आत्मसात करते हैं, उनके परिणाम अच्छे आते हैं। इसीलिए गीता में कहा गया है- कर्म करो, फल की चिंता मत करो।

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