फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन मनसा वाचा कर्मणामूल्यहीन दुनिया का संकट

मूल्यहीन दुनिया का संकट

यह विडंबना ही है कि ज्यादातर गंभीर समस्याएं औद्योगिक रूप से उन्नत समाजों से पैदा होती हैं। विज्ञान व प्रौद्योगिकी ने जीवन के कई क्षेत्रों में अद्भुत काम किए हैं, मगर बुनियादी मानवीय समस्याएं आज...

मूल्यहीन दुनिया का संकट
Amitesh Pandeyहिन्दुस्तानThu, 01 Jun 2023 11:01 PM
ऐप पर पढ़ें

यह विडंबना ही है कि ज्यादातर गंभीर समस्याएं औद्योगिक रूप से उन्नत समाजों से पैदा होती हैं। विज्ञान व प्रौद्योगिकी ने जीवन के कई क्षेत्रों में अद्भुत काम किए हैं, मगर बुनियादी मानवीय समस्याएं आज भी जस की तस बनी हुई हैं। अभूतपूर्व साक्षरता है, फिर भी इस शिक्षा ने अच्छाई को बढ़ावा नहीं दिया है, बल्कि इसने मानसिक बेचैनी और असंतोष को बढ़ावा दिया है। हमारी भौतिक प्रगति और तकनीकी तरक्की में कोई संदेह नहीं है, पर कई मायनों में यह काफी नहीं है, क्योंकि हम अभी तक इतनी तरक्की के बावजूद शांति और खुशी लाने में कामयाब नहीं हुए हैं।
ऐसे में, हम यही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि हमारी प्रगति और विकास में जरूर कुछ गंभीर गलती है, और अगर हम इसे समय रहते ठीक नहीं करते, तो ये गलतियां मानवता के भविष्य के लिए विनाशकारी साबित हो सकती हैं। मैं विज्ञान और प्रौद्योगिकी का कतई विरोधी नहीं, मानव जाति के समग्र अनुभव में इनका भारी योगदान है; हमारे भौतिक आराम और जिस दुनिया में हम जीते हैं, उसके बारे में हमारी समझ को बढ़ाने में भी इन दोनों ने काफी मदद की है। लेकिन अगर हम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर बहुत अधिक जोर देते हैं, तो मानवीय ज्ञान और समझ के उन पहलुओं से हमारा नाता टूटने का खतरा पैदा हो सकता है, जो ईमानदारी और परोपकार के आकांक्षी हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी भले हमारे लिए अपार भौतिक सुविधाएं जुटाने में सक्षम हों, मगर वे उन सदियों पुराने आध्यात्मिक-मानवीय मूल्यों को प्रतिस्थापित नहीं कर सकते, जिन्होंने बडे़ पैमाने पर वैश्विक सभ्यता को आकार दिया है। हम आज भी पीड़ा, भय और तनाव का सामना कर रहे हैं, बल्कि कई मायनों में इनमें बढ़ोतरी ही हुई है, इसलिए भौतिक विकास और आध्यात्मिक, मानवीय मूल्यों के विकास के बीच संतुलन बनाने का प्रयास ही तर्कसंगत होगा।  दुनिया के बहुत सारे लोग मौजूदा विश्व-व्यापी नैतिक संकट को लेकर मेरी ही तरह चिंतित है। इसलिए सभी मानवतावादी व धार्मिक-आध्यात्मिक उपदेशकों, कार्यकर्ताओं से यही अपील की जा सकती है कि वे समाज को अधिक दयालु, और ज्यादा न्यायसंगत बनाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं। 
मैं यह बात एक बौद्ध या एक तिब्बती के रूप में नहीं बोल रहा, न ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ के तौर पर कह रहा हूं (हालांकि, मैं इन मामलों में अनिवार्य रूप से टिप्पणी करता हूं), बल्कि एक इंसान के रूप में, मानवतावादी मूल्यों के धारक के रूप में बोल रहा हंू, जो न सिर्फ महायान बौद्ध धर्म, बल्कि सभी महान धर्मों के आधार हैं।
दलाई लामा 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें