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लक्ष्मण सा कर्तव्य निभाएं

हमारे शास्त्रों में ऐसा क्यों कहा गया है कि कर्म ही पूजा है? दरअसल, अपने कर्म में निपुण मनुष्य ही मंजिल तक पहुंचता है। एक रोचक प्रसंग है। राम, लक्ष्मण और सीता चौदह वर्ष का अपना वनवास काट रहे...

लक्ष्मण सा कर्तव्य निभाएं
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानTue, 16 May 2023 11:00 PM
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हमारे शास्त्रों में ऐसा क्यों कहा गया है कि कर्म ही पूजा है? दरअसल, अपने कर्म में निपुण मनुष्य ही मंजिल तक पहुंचता है। एक रोचक प्रसंग है। राम, लक्ष्मण और सीता चौदह वर्ष का अपना वनवास काट रहे थे। उस दौरान लक्ष्मण सुरक्षा प्रभारी थे। एक रात, जब वह प्रहरी का अपना दायित्व का पालन कर रहे थे, उनकी आंखें अचानक थकान के मारे बोझिल हो उठीं। इससे रुष्ट लक्ष्मण ने अपना धनुष उठाया और निद्रा-देवी को स्मरण कर बाण तान दिया। निद्रा-देवी फौरन प्रकट हुईं और कहा, हे लक्ष्मण, आपके सद्गुणों के लिए लोग आपकी प्रशंसा करते हैं, पर ऐसा लगता है कि आपकी प्रशंसा गलत है। यदि आप वास्तव में महान होते, तो क्या एक महिला, वह भी निहत्थी महिला पर तीर चलाते? 
लक्ष्मण ने प्रतिरोध किया- देवी, आप मुझे मेरा कर्तव्य निभाने से रोक रही हैं, ऐसे में मेरा यह कदम सर्वथा उचित है। निद्रा देवी ने कहा- सुमित्रा-नंदन, लोगों की पलकों पर बैठना मेरा भी फर्ज है। अगर मैं दोपहर में आपकी पलकों पर बैठती, तो आपको विरोध का पूरा अधिकार है, पर यह रात का चौथा पहर है! यह शयन का समय है। अपने क्रोध को संयमित करते हुए लक्ष्मण बोले- यह सच हो सकता है देवी, लेकिन अगले चौदह वर्षों तक कृपया मेरी पलकों पर न विराजें। इसके बाद ही मैं आपका स्वागत कर सकूंगा। 
चौदह वर्ष बीते, राम अयोध्या लौट आए, राज्याभिषेक समारोह चल रहा था। लक्ष्मण उनके पास ही खड़े सारी व्यवस्थाएं देख रहे थे। अचानक उन्हें भारी नींद महसूस हुई। खुद को गिरने से बचाने के लिए उन्होंने सिंहासन को जकड़ लिया। नींद की देवी ने प्रकट होकर कहा, अब आप मुझे डरा न सकेंगे लक्ष्मण, आपके वचन के अनुरूप मैं उचित समय पर आई हूं। लक्ष्मण ने अनुरोध किया- क्या आप देख नहीं रहीं, मैं कितना व्यस्त हूं? निद्रा-देवी ने कहा, किसी बच्चे का बिना भोजन किए सो जाना या दुल्हन का विवाह के दौरान नींद महसूस करना या कुंभकर्ण का महीनों तक सोना अनुचित नहीं, तो किसी का झपकी ले लेना क्यों है? मैं तो आज अपनी पूरी ताकत लगाने आई हूं। लक्ष्मण ने विनम्रता से कहा, मुझे यहां बहुत महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा गया है। कृपया इस सत्कर्म में आप मेरा सहयोग करें! निद्रा-देवी ने पूछा- फिर मैं अपनी शक्ति कहां लगाऊं? लक्ष्मण ने उन्हें सुझाव दिया, जब भी किसी धार्मिक आयोजन में जीवंत बहस चल रही हो, आप वहां मौजूद किसी पापी की पलकों पर जा बैठें। लक्ष्मण के सुझाव से संतुष्ट निद्रा-देवी उन्हें अपना कर्तव्य निभाने के लिए छोड़ किसी धार्मिक आयोजन की ओर कूच कर गई।
कर्तव्य निर्वाह के मार्ग में परीक्षाएं आती हैं, आएंगी, मगर वे सच्चे कर्मयोगी के आगे नतमस्तक हो जाती हैं।
श्री श्री आनंदमूर्ति 

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