फोटो गैलरी

परोपकार की जरूरत

परंपरा और इतिहास में कुछ लोग ऐसे मिल जाते हैं, जो कमाल के परोपकारी होते हैं। कुछ तो इतने ज्यादा कि लगता है, दुनिया में उनका आना ही इसीलिए हुआ कि दूसरों को राहत मिले। यहां महर्षि दधीचि का जिक्र...

परोपकार की जरूरत
 प्रवीण कुमारTue, 15 Jun 2021 09:51 PM
ऐप पर पढ़ें

परंपरा और इतिहास में कुछ लोग ऐसे मिल जाते हैं, जो कमाल के परोपकारी होते हैं। कुछ तो इतने ज्यादा कि लगता है, दुनिया में उनका आना ही इसीलिए हुआ कि दूसरों को राहत मिले। यहां महर्षि दधीचि का जिक्र स्वाभाविक है। उन्होंने देवताओं की रक्षा के लिए अपने प्राण सहर्ष त्यागे, ताकि उनकी हड्डियों से वज्र बनाया जा सके। इसी वज्र से वृत्रासुर राक्षस का वध हुआ और दुनिया की सत्ता राक्षसों के हाथों में जाने से बची। राजा शिवि ने कबूतर के प्राणों की रक्षा के लिए भूखे बाज को अपने शरीर का मांस काट-काटकर दे दिया था। एक जातक कथा के अनुसार बुद्ध ने भी एक जनम में अपना शरीर भूखे बाघ को समर्पित कर दिया था। यह तो विभूतियों की बात है, मगर प्रकृति का कण-कण भी हमें परोपकार की शिक्षा देता है। नदियां इसलिए बहती हैं, ताकि प्यासों को जल मिल सके। वृक्ष इसलिए खडे़ हैं कि हमें ऑक्सीजन और छाया मिले। चंद्रमा अपनी शीतलता, समुद्र बारिश के जरिये अपना जल, वायु हमारे फेफड़ों के लिए प्राणशक्ति देकर परोपकारी बने रहते हैं और इसी के लिए हमें प्रेरित करते हैं। दरअसल, परोपकारी मानव के हृदय में शांति तथा सुख बसता है। उसमें कटुता नहीं होती। लेकिन यहां एक और तर्क है कि क्या परोपकार को विलोपित नहीं किया जा सकता? दुनिया ऐसी हो ही क्यों, जहां परोपकार की जरूरत पडे़? हम पाते हैं कि परोपकार में भी एक किस्म का अहंकार निहित होता है। यह अहंकार इसलिए कि हमने कर्मफल के सिद्धांत को बदल दिया है। परोपकार की जरूरत ही न पडे़, अगर हर कोई अपना काम कर्तव्य-बोध के साथ करता रहे और प्रकृति-निष्ठ रहे। 
 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें