फोटो गैलरी

कामदेव का सखा

बसंत केवल ऋतु नहीं, बल्कि अनुभव भी है। यह मनुष्य और प्रकृति के एक बिंदु पर पहुंचने का अनुभव है। पुराणों में बसंत को कामदेव और देवराज इंद्र का सखा बताया गया है। किसी कला-निर्देशक की तरह यह मौसम...

कामदेव का सखा
 महेंद्र मधुकरTue, 16 Feb 2021 02:39 AM
ऐप पर पढ़ें

बसंत केवल ऋतु नहीं, बल्कि अनुभव भी है। यह मनुष्य और प्रकृति के एक बिंदु पर पहुंचने का अनुभव है। पुराणों में बसंत को कामदेव और देवराज इंद्र का सखा बताया गया है। किसी कला-निर्देशक की तरह यह मौसम वातावरण के निर्माण की शक्ति रखता है। कहते हैं, बसंत हमें बदल देता है। हमारा शरीर, मन और हमारे आस-पास का सारा परिवेश बसंत के आते ही कुछ और हो जाता है। कुछ और हो जाने की इस प्रवृत्ति को महाकवि कालिदास नेअन्यथावृतिचेत:’ कहा है। यह बताता है कि हम चमकदार हरे पत्ते बनें, हम नए किसलय, नए फूलों से भर जाएं! कहा जाता है कि कामदेव के पास जो पंचबाण हैं, वे फूलों से बने हैं। बडे़ से बड़ा वीर या साधक सारी चुनौतियां झेल सकता है, मगर वह फूलों की चोट नहीं सह पाता। उर्वशी में दिनकर कहते हैं- इंद्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है/ सिंह से बाहें मिलाकर खेल सकता है/ फूल के आगे वही असहाय हो जाता।  शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आम्र मंजरी को कामदेव के पंचबाणों में मुख्य स्थान दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि बसंत हमारी ज्ञानेंद्रियों को जगाकर हमें प्रकृति की तरह विराट बनाता है। हमारी पंच तन्मात्राएं हैं- रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द। रूप आंखों का विषय है। रस आनंद आस्वाद का, गंध नासिका का, स्पर्श त्वचा और शब्द श्रवण का। शब्द को बोलना और सुनना हमें आकाश की तरह व्यापक बनाता है। इसलिए बसंत प्रकृति के माध्यम से स्वयं को जानने की कला है। यह संदेश देता है कि हम स्वयं अपना उद्घाटन करें। 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें