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अपनी-अपनी हदें

यूं ही शाम को घूमते हुए उसने कहा था, ‘हम कुछ ज्यादा ही अपनी हदों में नहीं रहते। यह भी कोई जिंदगी है।’ एक दिन डॉ. जोडी फोस्टर कह रही थीं, ‘हमें किस हद तक जाना है, इसे पहचाने बगैर...

अपनी-अपनी हदें
 राजीव कटाराFri, 10 Jul 2020 11:22 PM
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यूं ही शाम को घूमते हुए उसने कहा था, ‘हम कुछ ज्यादा ही अपनी हदों में नहीं रहते। यह भी कोई जिंदगी है।’ एक दिन डॉ. जोडी फोस्टर कह रही थीं, ‘हमें किस हद तक जाना है, इसे पहचाने बगैर जिंदगी आगे नहीं बढ़ती।’ वह मशहूर साइकियाट्रिस्ट हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया के पेरेमल स्कूल ऑफ मेडिसिन में साइकियाट्री की प्रोफेसर हैं। मिशेल जॉय के साथ मिलकर उन्होंने बेहद चर्चित किताब लिखी है, द श्मक इन माई ऑफिस : हाउ टु डील इफेक्टिवली विद डिफिकल्ट पीपुल ऐट वर्क।

हर चीज की एक हद होती है। इसीलिए तो ‘हद हो गई’ कहना कितना खराब माना जाता है। हम सबको एक हद में रहना चाहिए। यह समाज हमसे चाहता है। लेकिन हदों-सरहदों को पार भी करना होता है। एक हद हमारी तमीज से जुड़ी है। एक और हद है, जिसका रिश्ता हमारी काबिलियत से है। तमीज से जुड़ी हद को हम जब तोड़ते हैं, तो बदतमीज कहे जाते हैं। अपनी काबिलियत की हद तोड़ते हैं, तो जीनियस कहे जाते हैं। हम कभी-कभी अपनी हदों-सरहदों में कैद हो जाते हैं। उससे बाहर जाना ही नहीं चाहते।  हमें उन घेरों को तोड़ना ही होता है।  अपनी सरहदों को हम तभी तोड़ पाते हैं, जब हम अपनी हदों को जानते हैं। आखिर उन्हें जाने बगैर हम तोड़ कैसे सकते हैं? हम अपनी हदों को समझते हैं। उन हदों को पार करने का जरिया ढूंढ़ते हैं। हमें उसके लिए अपने को तैयार करना होता है। नए तरीके खोजने होते हैं। यह आसान काम नहीं है। लेकिन काम करने का असल  मजा तो मुश्किल चीजों को करने में ही है। वहां हम अपनी और औरों की हदों को पार करते हैं, तो बात ही कुछ और होती है।
 

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