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अपना भोलापन

मानवीय गुणों में सबसे कीमती है भोलापन। मानवीय ही नहीं, ईश्वरीय गुणों में भी। कहते हैं, जब परमात्मा धरती पर मनुष्य को भेजता है, तब उसे जो-जो गुण सौंपता है, उनमें से एक होता है भोलापन। और जब मृत्यु के...

अपना भोलापन
प्रवीण कुमारWed, 03 Mar 2021 01:43 AM
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मानवीय गुणों में सबसे कीमती है भोलापन। मानवीय ही नहीं, ईश्वरीय गुणों में भी। कहते हैं, जब परमात्मा धरती पर मनुष्य को भेजता है, तब उसे जो-जो गुण सौंपता है, उनमें से एक होता है भोलापन। और जब मृत्यु के बाद मनुष्य की मुलाकात परमात्मा से होती है, तो उस समय जो-जो सवाल भगवान पूछता है, उनमें से एक होता है- वह भोलापन बचाकर लाए हो, जो जन्म के समय सौंपा था तुम्हें, या कहीं खो आए? ईश्वर के इस सवाल का जवाब हम सबको देना पडे़गा। दार्शनिक डेविड थोरो की एक किताब है वाल्डेन। इस किताब में जो मुख्य पात्र है, वह जान-बूझकर शहर से भागता है और जंगल में जा बसता है। उसकी सारी जद्दोजहद अपने भीतर की उन-उन चीजों को बचाए रखने की है, जो उसे पूर्णतया प्राकृतिक अवस्था में मिली। पूरा जीवन वह अपने भोलेपन को बचाए रखने के लिए लड़ता है, और उसे सफलता भी मिलती है। पुराणों में एक कथा आती है जड़ भरत की। दूसरे लोगों के लिए यह पात्र महामूर्ख है। लेकिन इसे राजा भरत का अवतार माना जाता है, जिन्होंने तय किया था कि मैं जीवन के प्रति अनासक्ति का भाव रखूंगा। वह पूरी जिंदगी ऊपर वाले की मर्जी पर चले। यहां तक कि जब उन्हें जंगल में भील राजा के सैनिकों ने पकड़ा और वे उनकी बलि देने की तैयारी करने लगे, तब भी वह हंसते रहे। हंसने का कारण बताया कि मैं देखना चाहता हूं कि मौत कैसी होती है। पर उन्हें ईश्वर ने बचा लिया। दरअसल, जड़ भरत मूर्ख नहीं थे। उन्होंने खुद को मुक्त कर लिया था। जड़ भरत होना कोई साधारण काम नहीं है। इसके लिए अपना अहंकार छोड़ना होगा, ईश्वरीय ताकत पर भरोसा रखना होगा।

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