ऊब की जड़ों को खोजिए
यदि आप ऊब गए हैं, तो उसका कारण क्या है? वह है क्या, जिसको हम ऊब कहते हैं? ऐसा क्यों है कि आपकी किसी भी चीज में रुचि नहीं है? कुछ कारण अवश्य होने चाहिए, जिन्होंने आपको मंद बना दिया है। यदि आप यह जान...
यदि आप ऊब गए हैं, तो उसका कारण क्या है? वह है क्या, जिसको हम ऊब कहते हैं? ऐसा क्यों है कि आपकी किसी भी चीज में रुचि नहीं है? कुछ कारण अवश्य होने चाहिए, जिन्होंने आपको मंद बना दिया है। यदि आप यह जान सकें कि आप क्यों ऊब गए हैं, तो निस्संदेह आप समस्या का हल कर लेंगे। है न? तब जागी हुई अभिरुचि कार्य करने लगेगी।
हम अंदर से, मानसिक तौर पर पता लगा सकते हैं कि हम क्यों इतनी अधिक ऊब की अवस्था में हैं। हम यह भी देख सकते हैं कि हममें से अधिकांश क्यों इस हालत में हैं; हमने अपने को भावनात्मक रूप से और दिमागी तौर पर भी थकाकर निढाल कर लिया है; हमने इतनी सारी चीजों, अनुभूतियों, मनोरंजनों, प्रयोगों को आजमाया है कि हम जड़, क्लांत हो चुके हैं। यदि हम एक मनोवैज्ञानिक से असंतुष्ट हो जाते हैं, तो किसी दूसरे के पास या फिर किसी धर्मगुरु के पास चले जाते हैं; यदि वहां असफल होते हैं, तो किसी तीसरे आचार्य के पास और इसी प्रकार क्रम चलता रहता है। हम हमेशा दर-दर भटकते रहते हैं। लगातार खुद को तानने और फिर छोड़ देने की यह प्रक्रिया निढाल करने वाली होती है। क्या नहीं होती? दूसरी सभी उत्तेजनाओं की तरह यह शीघ्र ही मन को जड़ बना देती है।
हमने यही किया है। एक संवेदन से दूसरे संवेदन की ओर; एक उत्तेजना से दूसरी उत्तेजना की ओर तब तक भागते जाना, जब तक कि थककर हम निढाल न हो जाएं। तो, अब इसका एहसास होने पर आप और आगे न जाएं, कुछ विश्राम करें। शांत हों और मन को स्वयं अपने से शक्ति प्राप्त करने दें, उसे बाध्य न करें। जैसे पृथ्वी पुन: अपने को नूतन कर लेती है, उसी प्रकार जब मन को शांत होने दिया जाता है, तो वह अपने को नूतन कर लेता है। परंतु मन को शांत होने देना और इस सबके बाद उसे रिक्त रहने देना बड़ा दुष्कर है, क्योंकि मन हर समय कुछ-न-कुछ करते रहना चाहता है।
याद रखिए, समस्या तभी है, जब आप किसी स्थिति को जैसी वह है, वैसी आप स्वीकार नहीं करते और उसे बदलना चाहते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि मैं संतोष करके बैठने की वकालत कर रहा हूं, बात इसके उलट है। यदि हम जो हैं, उसे स्वीकार कर लें, तो देखेंगे कि वह बात, जिससे हम भयभीत हैं; वह स्थिति, जिसे हम ऊब, निराशा या भय कहते हैं, वह पूरी तरह से बदल गई है! जिस स्थिति से हम भयभीत थे, उसका पूर्णतया परिवर्तन हो चुका है।
अत: अपने सोच-विचार के तरीकों को, उनकी प्रक्रिया को समझना बड़ा महत्वपूर्ण है। स्वबोध किसी अन्य से, किसी पुस्तक, किसी मनोविश्लेषक द्वारा नहीं हो सकता। यह आपको स्वयं प्राप्त करना होगा।
जे कृष्णमूर्ति