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खतरों से खेलने का शरीफ दांव

आखिर वह कौन सी वजह है, जिसने नवाज शरीफ को वापस अपने मुल्क लौटने के लिए प्रेरित किया, जबकि उनकी गिरफ्तारी तय थी? उन्हें पिछले हफ्ते ही पाकिस्तान के राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) ने भ्रष्टाचार के...

खतरों से खेलने का शरीफ दांव
टी सी ए रंगाचारी पूर्व राजनयिकSat, 14 Jul 2018 12:58 AM
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आखिर वह कौन सी वजह है, जिसने नवाज शरीफ को वापस अपने मुल्क लौटने के लिए प्रेरित किया, जबकि उनकी गिरफ्तारी तय थी? उन्हें पिछले हफ्ते ही पाकिस्तान के राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) ने भ्रष्टाचार के मामले में दस साल की सजा सुनाई है। मगर पाकिस्तान की सरजमीं पर उनके कदम रखने से पहले ही जिस तरह से उनकी गिरफ्तारी को लेकर पुलिस सक्रिय हो गई थी और आनन-फानन में उन्हें जेल भेजा गया, उससे साफ है कि सब कुछ तय था। अब वह किसी सियासी जलसे को न तो संबोधित कर सकेंगे और न ही जन-संपर्क कर पाएंगे। वहीं दूसरी तरफ, खबरें ऐसी भी हैं कि पंजाब में बड़ी संख्या में उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है या फिर लाहौर पहुंचने से रोका गया, जहां नवाज शरीफ का विमान उतरना था। नवाज शरीफ ने पाकिस्तानी मीडिया को दिए अपने हालिया बयान में इसे ‘पाकिस्तान में जम्हूरियत के खिलाफ बदतरीन कार्रवाई’ कहा है।  

यह पूरा घटनाक्रम 25 जुलाई को होने जा रहे आम चुनाव को देखकर हो रहे हैं। पाकिस्तान में सत्ता का रास्ता पंजाब से होकर गुजरता है। नेशनल असेंबली (संसद) की कुल 342 सीटों में से 183 सीटें यहीं पर हैं, जिनमें से 35 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। परदे के पीछे से हुकूमत करने वाले ‘प्रतिष्ठान’ की मंशा साफ है। वह मियां शरीफ की राह में दुश्वारियां पैदा कर उन्हें पंजाब में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरने से रोकना चाहता है। जाहिर है, नवाज शरीफ को हिरासत में ले लिए जाने से पीएमएल-एन अब उनके करिश्माई व्यक्तित्व और चुनाव प्रचार से वंचित हो जाएगी। 
नवाज शरीफ ने इस पूरे घटनाक्रम को ‘अंध प्रतिशोध’ बताया है।

उनका कहना है, ‘यह मुझे नुकसान पहुंचाने और  2018 के चुनावों व उसके नतीजों को अपने पक्ष में मोड़ने की साजिश है। आज बेशक मुल्क में लोकतंत्र है, मगर हालात बहुत ज्यादा नहीं बदल सके हैं। मैं नहीं जानता कि जेल में किस तरह की मुश्किलें आएंगी, और क्रूरता व अन्याय के इस दौर में मैं कब तक सलाखों के पीछे रखा जाऊंगा, लेकिन मेरा मकसद बीते 70 वर्षों की कैद से अपने मुल्क को आजाद करना है। और यही वह वजह है कि अपना हश्र जानते हुए भी मैं वापस वतन लौट रहा हूं’।


पाकिस्तान के लिए उड़ान भरने से पहले अपने पैगाम में उन्होंने यह भी कहा कि ‘पाकिस्तान आज दोराहे पर खड़ा है। मुझसे जहां तक संभव था, मैंने वह सब किया। यह जानता हूं कि मुझे दोषी ठहराया गया है और दस साल की सजा सुनाई गई है, मगर मैं अवाम से गुजारिश करता हूं कि वे मेरे साथ खड़े रहें और मेरा हाथ थामकर साथ-साथ आगे बढ़ें। मैं यह बलिदान आपके लिए कर रहा हूं, अपनी अगली पीढ़ी और मुल्क के भविष्य के लिए कर रहा हूं।’


साफ है, नवाज शरीफ पाकिस्तान में जम्हूरियत की अपनी जंग को एक नई ऊंचाई पर ले जाते दिख रहे हैं। यदि वह चाहते, तो लंदन में ही रुकने का विकल्प चुन सकते थे। वह वापस लौटने से मना कर देते और सजा से बच सकते थे। जनरल परवेज मुशर्रफ ने ऐसा ही किया था। सेना और न्यायपालिका की मिलीभगत के कारण उन्हें मुल्क छोड़ने की इजाजत तो मिल गई थी, मगर जब यह साफ हो गया कि उनकी गिरफ्तारी होगी, तो उन्होंने पाकिस्तान लौटने से मना कर दिया था।


हालात से भागने का फैसला न करके नवाज शरीफ उन सभी को चुनौती दे रहे हैं, जो पाकिस्तान की सत्ता पर अपना दबदबा रखते हैं और अवाम या संविधान के प्रति जवाबदेह भी नहीं हैं। हालांकि इस जंग में उतरने से पहले नवाज शरीफ को अपने ऊपर लगे दाग को हटाना होगा। ऐसा करने के लिए जरूरी था कि वह एनएबी अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए पाकिस्तान लौटें। दरअसल, वहां की अदालतों ने अपने फैसलों में ऐसी बंदिशें लगा रखी हैं कि दोष साबित होने के बाद यदि दोषी आत्मसमर्पण नहीं करता, तो वह आगे कानूनी संरक्षण से वंचित हो सकता है, यानी अपील नहीं कर सकता। 2002 में एनएबी अध्यादेश के तहत बेगम नुसरत भुट्टो को अपराधी ठहराया जाना इसका उदाहरण है। तब बेनजीर भुट्टो द्वारा अपनी मां की तरफ से डाली गई अपील खारिज कर दी गई थी, क्योंकि उस वक्त वह पाकिस्तान में नहीं थीं।


फिलहाल नवाज शरीफ को एक बड़ी जंग जमानत के लिए लड़नी पड़ सकती है। नियमों के मुताबिक, अगर सजा सात वर्ष से अधिक की हो, तो यह जल्दी नहीं मिलती। अगर नवाज शरीफ को जमानत नहीं मिलती है (उन्हें चुनाव अभियान से बाहर रखने के लिए ऐसा किए जाने की संभावना अधिक है), तो उनका वापस लौटना मूल रूप से प्रतीकात्मक साबित होगा। तब पीएमएल-एन इसे इस रूप में भुनाना चाहेगी कि मियां साहब को वापस लौटने व परदे के पीछे से सरकार चलाने वालों, तख्तापलट करने वालों व लोकतंत्र को खोखला करने वालों से टकराने की सजा मिली है। क्या नवाज शरीफ की यह रणनीति सफल हो सकेगी, वह भी तब, जब उनकी विश्वसनीयता घटी है? क्या खुद को पीड़ित दिखाना उन्हें सहानुभूति वोट दिला सकेगा? 


जाहिर है, नवाज शरीफ के लिए यह सब किसी जुए से कम नहीं। हालांकि उनके विरोधी दल- पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) व पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई), दोनों अपने संगठन और प्रदर्शन की वजह से ‘वास्तविक बदलाव’ को लेकर उत्सुक युवाओं में उतने लोकप्रिय नहीं हैं। जरदारी की पीपीपी सरकार जहां उनमें भरोसा नहीं जगा पाई थी, वहीं इमरान खान को राजनीति में सेना का मोहरा माना जाता है। 
यह तो नाटक का अभी पहला दृश्य है, जो अभी शुरू हुआ है और जिसका कुछ हफ्तो में पटाक्षेप हो जाएगा। मगर जवाब हमेशा की तरह पाकिस्तान की जनता के पास है। वहां की जम्हूरियत की दिशा क्या होगी, यह इसी पर निर्भर करेगा कि लोग किसका साथ देते हैं? नवाज भारत के साथ अच्छे संबंध के हिमायती रहे हैं और शांति व सुकून चाहते हैं। हमें भी उनकी हिम्मत व दृढ़ता को देखते हुए उम्मीद करनी चाहिए कि अल्लाह उनका साथ देगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
 

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