त्वरित टिप्पणीः अविश्वास प्रस्ताव के इस कोलाहल से उभरते कुछ यक्ष-प्रश्न
आप पूछ सकते हैं कि जब संख्या बल पास नहीं था, तब विपक्ष इतने हो-हल्ले के साथ अविश्वास प्रस्ताव लाया क्यों? जवाब साफ है- राजनीति में सब कुछ सिर्फ हार-जीत के लिए नहीं किया जाता। कुछ दांव दूर की सोच कर...
आप पूछ सकते हैं कि जब संख्या बल पास नहीं था, तब विपक्ष इतने हो-हल्ले के साथ अविश्वास प्रस्ताव लाया क्यों? जवाब साफ है- राजनीति में सब कुछ सिर्फ हार-जीत के लिए नहीं किया जाता। कुछ दांव दूर की सोच कर खेले जाते हैं। राजनीति के पंडित इसे ‘पोजीशनिंग’ भी कहते हैं।
क्या विपक्ष इसमें सफल हुआ? इसका जवाब बाद में।
सबसे पहले कांग्रेस की बात। राहुल गांधी जिस अंदाज में बोले वह उनके चाहने वालों के लिए नया था। इस लय-ताल के साथ वे सार्वजनिक तौर पर कभी अपने उद्गार व्यक्त करते नहीं दिखाई पड़े थे। उन्होंने प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पर सीधा हमला बोला। उम्मीद के अनुरूप भाजपा की ओर से इसका जबरदस्त विरोध हुआ और लोकसभा की कार्यवाही कुछ मिनटों के लिए रोकनी पड़ी।
व्यवधान के बाद पुराने जोश-ओ-खम को बरकरार रखना मुश्किल होता है पर शायद राहुल गांधी आज तय करके आए थे कि उन्हें देश के मतदाताओं को संकेत देना है कि कांग्रेस कोई दब्बू और भीरु लोगों की पार्टी नहीं है। यह बात अलग है कि उनके बयानों से रक्षामंत्री सहित भाजपा के तमाम वरिष्ठ नेता आग-बबूला हो गए। निर्मला सीतारमण ने बाद में संसद में उन्हें गलत बताया, तो अनंत कुमार ने कहा कि हम गलतबयानी के लिए उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाएंगे।
हालांकि यह सारी बयानबाजी राहुल के एक ‘जेस्चर’ के आगे धूमिल पड़ गई। हुआ यह कि अपना भाषण खत्म कर वे प्रधानमंत्री के पास पहुंचे और उनके गले लग गए। लोकसभा सदस्यों और इस कार्रवाई को टी.वी. पर देख रहे दर्शकों के लिए यह अनोखा दृश्य था। पहले तो प्रधानमंत्री थोड़ा अचकचाए पर बाद में उन्होंने परिपक्वता का प्रदर्शन करते हुए लौटते राहुल गांधी को वापस बुलाया और हंसते हुए उनके कान में कुछ कहा।
काश! यह सौजन्यता हर पार्टी और हर नेता में हमेशा बनी रहे पर आनन-फानन में इसकी धज्जियां उड़ती नजर आईं। अब राहुल का बयान विवाद के केंद्र में है कि उन्होंने झूठ बोला या सच! शायद कांग्रेस चाहती भी यही थी कि चर्चाओं के बगूले अधिक से अधिक उठें।
लोकसभा की कार्यवाही पर लौटते हैं।
बाद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इतिहास के उदाहरणों के जरिये गांधी परिवार की सत्ता का औचित्य कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। वे भी आज पूरे ‘फॉर्म’ में थे। उन्होंने आंकड़े दिए कि हमारी सरकार ने पिछले चार साल चार महीने में ऐसा क्या किया है, जो अभूतपूर्व है।
जवाब में मल्लिकार्जुन खड़गे ने शंबूक, एकलव्य आदि के उदाहरण के जरिये भारतीय जनता पार्टी को दलित और पिछड़ा विरोधी बताने की कोशिश की। अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हुए तेलुगु देशम पार्टी के जयदेव गल्ला ने जो कुछ कहा, वह देश के बजाय उनके अपने मतदाताओं को रिझाने की कोशिश थी। खड़गे ने उनकी मांगों का समर्थन कर आंध्र के मतदाताओं को जताया कि मेरी पार्टी भी आपके साथ है।
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परंपरा के अनुसार प्रधानमंत्री सबसे अंत में संसदीय सहभागियों के सामने बोलने खड़े हुए। उन्होंने बारी-बारी से हर आरोप का जवाब दिया। उनके प्रशंसकों की सूची में यकीनन आज उनका एक और भाषण जुड़ गया। वे एक साथ चुटीले, तार्किक और गर्मजोश लग रहे थे। उनके इस अंदाज के आगे सबसे पुरानी साथी शिवसेना का बहिर्गमन फीका पड़ गया ।
संसद में पहली बार उन्हें टीडीपी सदस्यों के संगठित प्रतिरोध का सामना करना पड़ा पर वे बोलते रहे, बेपरवाह। भारतीय राजनीति में इसे ‘मोदी शैली’ कहते हैं।
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लगभग आधी रात तक चली इस सारी कवायद के बावजूद यह यक्ष-प्रश्न कायम है कि इसका फायदा किसे हुआ? कांग्रेस को, प्रादेशिक पार्टियों को अथवा भाजपा को? इन प्रश्नों के उत्तर के लिए हमें अगले चुनाव तक प्रतीक्षा करनी होगी पर तय है कि 2019 की जंग कैसी होगी, इसका अंदाज आज आपको भी लग गया होगा।
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