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बैठक से अहम रही आपसी बातचीत

जी-20 का 12वां शिखर सम्मेलन अभी-अभी जर्मनी के हैम्बर्ग में संपन्न हुआ। पहले की बैठकों की तरह इस बार भी दुनिया भर की ताकतवर अर्थव्यवस्थाओं के मुखिया इस सम्मेलन में शरीक हुए और उन तमाम मुद्दों व...

बैठक से अहम रही आपसी बातचीत
सलमान हैदरThu, 13 Jul 2017 12:58 AM
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जी-20 का 12वां शिखर सम्मेलन अभी-अभी जर्मनी के हैम्बर्ग में संपन्न हुआ। पहले की बैठकों की तरह इस बार भी दुनिया भर की ताकतवर अर्थव्यवस्थाओं के मुखिया इस सम्मेलन में शरीक हुए और उन तमाम मुद्दों व समस्याओं पर उन्होंने अपनी-अपनी राय रखी, जिनसे उनका इन दिनों वास्ता पड़ रहा है। इस बार अपेक्षाकृत अधिक शांत माहौल में यह सम्मेलन संपन्न हुआ। सहभागी देशों के सामने न तो बहुत माथापच्ची करने वाला कोई मसला था और न अप्रत्याशित उथल-पुथल के दौर की कोई आशंका थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था के गोते खाने का भी कोई संकेत न था और न ही दहलीज पर पहंुचने की  किसी आपदा की कोई आहट थी। हालांकि सच यह भी है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को जैसा आकार दिया जा रहा है, उससे हैम्बर्ग में उपस्थित हर कोई संतुष्ट नहीं था और भूमंडलीकरण के प्रचलित सिद्धांतों का मुखर विरोध भी हुआ। इस बार भी प्रदर्शनकारियों के गुट हैम्बर्ग में मौजूद थे, ताकि मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ वे अपना विरोध दर्ज करा सकें। वे अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में जरूर सफल रहे, पर जी-20 के फैसलों को प्रभावित न कर सके।

इन प्रदर्शनकारियों के मुकाबले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विरोधी दलीलों ने ज्यादा ध्यान खींचा, हालांकि उनकी मंशा कुछ और थी, लेकिन अधिकांश मसलों पर दूसरे ज्यादातर शासनाध्यक्षों से टं्रप की राय अलग थी। वैसे भी, अपना मतभेद जाहिर करने में वह कभी नहीं हिचकते। तब भी नहीं, जब किसी समझौते पर उनकी बेबाक राय का उल्टा असर पड़ सकता हो। राष्ट्रपति का पद संभालते ही उन्होंने ऐसे कई मसलों पर अपनी अनिच्छा खुलेआम जाहिर की, जिनमें उन्हें सुधार की जरूरत दिखी। हैम्बर्ग में भी उन्होंने जलवायु परिवर्तन और कारोबार से जुड़े कई मुद्दों को अमेरिकी हितों के खिलाफ बताया और उन पर फिर से विचार-विमर्श करने की बात कही। इसने भले ही सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले कुछ शासनाध्यक्षों को निराश किया हो, मगर इसकी गूंज अमेरिका के घरेलू हलकों में अधिक हुई।

जी-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका के प्रभाव को देखते हुए इसके नतीजों पर ट्रंप के विचारों का असर पड़ना लाजिमी था। नतीजतन, ऐसे कई मामले रहे, जिन पर कुछ ठोस नहीं हुआ, जबकि पहले जी-20 के देश उन पर एकमत थे। इतना ही नहीं, सम्मेलन पूरा होने के बाद जारी अंतिम दस्तावेज में भी सहभागी शासनाध्यक्षों के विचारों को जगह देने के बावजूद तात्कालिक प्राथमिकता तय करने को लेकर कोई स्पष्टता नहीं दिखी। इन सब हालात को देखकर यह सम्मेलन उम्मीद के मुताबिक मील का पत्थर साबित नहीं हुआ।

बावजूद इसके जी-20 का यह सम्मेलन काफी महत्वपूर्ण रहा। इसने कई नेताओं को उन मसलों पर आपस में बातचीत करने का मौका दिया, जो उनके लिए मौजूं हैं। शिखर सम्मेलन से इतर जिन द्विपक्षीय मुलाकातों पर सबकी नजर थी, वह थी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात। इसकी वजह भी है। असल में, हाल के दिनों में रूस और अमेरिका के रिश्ते थोडे़ तल्ख हुए हैं और रूस पर साइबर हैकिंग के जरिए अमेरिका में दखल देने का आरोप लगा है; हालांकि रूस इससे इनकार करता रहा है। आशंका थी कि हैम्बर्ग की इस मुलाकात में दोनों नेताओं की तल्खी साफ-साफ दिखेगी। मगर जैसा कि कभी-कभार होता है, उनकी मुलाकात आश्चर्यजनक रूप से दोस्ताना रही। इतना ही नहीं, दोनों के बीच सीरिया में सीमित संघर्ष-विराम को लेकर सहमति भी बनी। मेरा मानना है कि यह हैम्बर्ग बैठक के अच्छे नतीजों में से एक है।

हालांकि उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण से जुड़ा ट्रंप का शांति प्रयास सीरिया में संघर्ष विराम की तरह भाग्यशाली नहीं रहा। चूंकि यह परीक्षण अमेरिका के अलास्का सहित पूरे क्षेत्र के लिए खतरे के रूप में देखा गया है, इसीलिए ट्रंप की कोशिश थी कि उत्तर कोरिया पर उसके एकमात्र सहयोगी चीन के माध्यम से दबाव  

बनाया जाए, ताकि वह अपने मिसाइल कार्यक्रम को बंद करे। मगर हैम्बर्ग में इस मसले पर कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकल सका। इसका कारण चीन का रुखा व्यवहार रहा, जिसने इस मसले में उम्मीद के मुताबिक दिलचस्पी नहीं दिखाई।

जहां तक भारत की बात है, तो इसने बैठक में काफी सक्रियता दिखाई, खासतौर पर आतंकवाद के खतरे से निपटने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करने के अपने अहम मसले पर। नतीजतन, सम्मेलन के अंत में जारी दस्तावेज में आतंकवाद के खिलाफ ‘एक्शन-लाइन’ का जिक्र किया गया, जिसमें भारत की चिंता को बखूबी जगह दी गई। निस्संदेह, यह नई दिल्ली के लिए संतोष की बात है। ऐसा लगता है कि भारत की अनवरत कोशिशों की वजह से ही अब यह राय बनी है कि आतंकवाद और आतंकी तरीकों का इस्तेमाल करने वालों की शिनाख्त होनी चाहिए और उनकी सख्त मुखालफत की जानी चाहिए।

यह बैठक ऐसे समय में हुई, जब हिमालय पर भारत-भूटान और चीन की संयुक्त सीमा पर अप्रत्याशित तनाव पसरा हुआ है। ऐसा लग रहा था कि यह विवाद भारत से जुड़े दूसरे तमाम अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों को निस्तेज कर देगा, खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी की इजरायल की ऐतिहासिक यात्रा को। जी-20 बैठक में भारत और चीन, दोनों मुल्कों के मुखिया मौजूद थे और उनकी मुलाकात को लेकर अटकलें भी तेज थीं। अच्छी बात रही कि दोनों के मिलने की व्यवस्था की गई, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक गर्मजोशी भरी मुलाकात हुई। दोनों ने साथ-साथ कुछ आत्मीय वक्त गुजारे, जिसका असर दोनों देशों की सीमा पर हालात के सुधरने के रूप में दिखा। यह सही है कि भारत-चीन-भूटान की संयुक्त सीमा पर पैदा हुए विवाद का पूरा हल नहीं हो सका है, मगर उम्मीद है कि दोनों शासनाध्यक्ष इस समस्या का सुखद समाधान निकाल लेंगे।

अगर ऐसा होता है, तो निश्चय ही जी-20 बैठक का भारत और हिमालय क्षेत्र के लिए यह सबसे उपयोगी नतीजा माना जाएगा। वैश्विक आर्थिक प्रबंधन की दिशा में जी-20 के देशों ने इस बार भले ही बहुत उल्लेखनीय फैसले नहीं किए, लेकिन यह सम्मेलन महत्वपूर्ण मेल-मिलापों व नेताओं की आपसी बातचीत का अहम अवसर जरूर बना, और इसमें जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ काफी सक्रिय दिखाई दिए, बल्कि खास भी रहे।
      (ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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