कितनी दूर जाएगी चीन की यह चाल
शीर्ष स्तर की राजनीतिक यात्राओं के पहले या फिर उनके दौरान सरहद पर होने वाली ‘झड़पों’, ‘घुसपैठों’ और ‘घटनाओं’ को जोड़कर यदि देखें, तो यह अपने आप में एक दिलचस्प कहानी...

शीर्ष स्तर की राजनीतिक यात्राओं के पहले या फिर उनके दौरान सरहद पर होने वाली ‘झड़पों’, ‘घुसपैठों’ और ‘घटनाओं’ को जोड़कर यदि देखें, तो यह अपने आप में एक दिलचस्प कहानी बनती है। हरेक उच्च-स्तरीय यात्रा से इन घटनाओं को जोड़े जाने पर सबसे बड़ी मुश्किल यह उठ खड़ी होती है कि इसे जरूरत से ज्यादा मीडिया की सुर्खियां मिलती है और तमाम तरह की अटकलों व साजिश की थ्योरी की बाढ़-सी आ जाती है, बल्कि विवाद के दूसरे अन्य मुद्दों से भी उनको बेवजह जोड़ दिया जाता है।
ऐसे में, शीर्ष स्तर के दौरे, जो कि रिश्ते सुधारने के मकसद से किए जाते हैं, विवादों की दलदल में फंस जाते हैं और फिर ये अपरिभाषित सीमाओं के बारे में केवल निराशाओं, कुछ वाजिब चिंताओं व समस्याओं को ही जन्म देते हैं। नतीजतन, तनातनी की स्थिति बन जाती है। राजनीतिक तौर पर भारत सरकार के सूत्रों ने (और यह किसी एक सरकार की बात नहीं है, बल्कि तमाम सरकारों का यही रुख रहा है) भारत और चीन के दौरान पैदा होने वाली सिक्किम जैसी स्थिति पर कभी सीधे-सीधे दोषारोपण नहीं किया, बल्कि उसका जोर सीमा के अनिर्धारित स्वरूप पर ही ज्यादा रहा है, जिसके कारण सीमा उल्लंघन के ऐसे वाकये होते रहते हैं।
यहां पर मसला यह है कि जिस तरह से भारत और अमेरिका के बीच समझ व साझीदारी पनप रही है, उसे लेकर चीन की आशंकाएं बढ़ी हैं। और इसका इजहार उसने कई मौकों पर किया भी है। न सिर्फ पत्र-पत्रिकाओं में लेखों के जरिये, बल्कि आधिकारिक बयानों से भी। तो क्या इसी आशंका ने उसे ताजा झड़प के लिए उकसाया? और उसे यह याद आ गया कि यही वह जगह है, जहां पहले भी घटनाएं घट चुकी हैं? बहरहाल, भारतीय सेना के प्रवक्ता ने इस मामले को बहुत महत्व नहीं दिया है, जबकि चीन ने सख्त आरोप लगाया है कि भारत ने इस संबंध में हुए समझौते का उल्लंघन किया है। खास बात यह है कि मौजूदा विवाद से भूटान भी जुड़ा हुआ है, लेकिन चीन ने बड़ी सावधानी से अब तक इस प्रकरण में उसका नाम भी नहीं लिया है। इसलिए यह मुद्दा मोदी-ट्रंप मुलाकात से उपजी आशंकाओं के मुकाबले कहीं अधिक जटिल है।
इस पूरे प्रकरण का एक अहम पहलू यह है कि जिस जगह पर यह विवाद खड़ा हुआ है, वह भारत-चीन और भूटान का ‘ट्राई-जंक्शन एरिया’ है। चीन हमेशा यह आरोप लगाता रहा है कि वह भूटान के साथ अपने सीमा समझौते को अब तक स्थायी रूप दे चुका होता, लेकिन भारत के हस्तक्षेप करने की वजह से यह नहीं हो पा रहा है। जाहिर है, भारत के लिए सामरिक नजरिये से यह इलाका काफी महत्व रखता है। और भारत कभी यह नहीं चाहेगा कि वह क्षेत्र चीन के पास चला जाए या वहां पर उसका एकतरफा दबदबा कायम हो जाए।
वैसे यह कोई पहली बार नहीं है कि चीन के साथ लगी सीमा पर दोनों देशों के जवान एक-दूसरे से उलझ गए हों। आपको याद होगा कि 2008 में भी चीन के सैनिकों ने वहां पर कुछ ऐसी ही हरकतें की थीं। और तब दोनों देशों में यह समझदारी बनी थी कि जब कभी स्थितियां तनावपूर्ण दिशा में बढ़ने लगें, दोनों देशों के शीर्ष सैन्य स्तर से इसका समाधान निकाला जाए। संतोष की बात है कि इस बार भी सेना की तरफ से हालात को और न बिगड़ने देने वाले कदम उठाए जा रहे हैं। यह समझ-बूझ से भरा हुआ प्रयास है। सेना प्रमुख सिक्किम सीमा के दौरे पर हैं, यह अपने आप में हालात की संजीदगी को दर्शाता है, लेकिन उम्मीद है कि वह विवाद को शांत करने में कामयाब हो जाएंगे।
दरअसल, इस तरह के विवाद हर उस देश के साथ होते हैं, जिनके बीच अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य सरहदें नहीं होतीं। ऐसा दुनिया भर में होता है। चीन के साथ भारत का सीमा-विवाद जब तक अंतिम रूप से हल नहीं हो जाता, तब तक ऐसी स्थितियां पैदा होती रहेंगी। हालांकि दोनों देशों के बीच इसे लेकर कई दौर की बातचीत हो चुकी है, मगर हम कह सकते हैं कि इनमें कोई खास प्रगति नहीं हुई है। दोनों देश अपने पुराने स्टैंड पर बने हुए हैं। चीन भारत पर यह तोहमत मढ़ता है कि सीमा-विवाद निपटाने के लिए भारत गंभीर प्रयास नहीं कर रहा है, तो भारत का कहना है कि चीन का रवैया इस मामले में सहयोगात्मक नहीं है।
चीन और भारत के रिश्तों में कई अन्य पेच पहले से फंसे हुए हैं। चीन-पाक आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के अलावा, न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) और मसूद अजहर जैसे मुद्दों ने हाल के महीनों में दोनों देशों के रिश्तों में खटास बढ़ाई है। मुनासिब यही है कि इसे रोकने की कोशिश की जाए, क्योंकि भारत ने घरेलू विकास के जो लक्ष्य तय कर रखे हैं, उसमें इस तरह के विवादों को तूल देने से स्थितियां नकारात्मक मोड़ ले सकती हैं। हम सभी जानते हैं कि कोई भी मुल्क दुनिया में तभी ताकतवर माना जाता है या अपने लिए सम्मान अर्जित कर पाता है, जब वह घरेलू तौर पर मजबूत हो। ऐसे में, विवेकपूर्ण रणनीति यही है कि भारत अपनी आर्थिक मजबूती के कार्यक्रमों को लागू करने व अपेक्षित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए चीन से टकराव की स्थिति से परहेज बरते और दोनों देशों के बीच सहज संवाद की स्थिति बनाए रखने के कूटनीतिक प्रयास और तेज किए जाएं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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