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बढ़ती चुनौतियां और जीत का इरादा

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने का मंत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी दिया ही था कि चौबीस घंटे के भीतर ही चुनाव आयोग ने उन्हें इसे परखने और अमल में लाने का मौका दे...

बढ़ती चुनौतियां और जीत का इरादा
Amitesh Pandeyविजय त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार Wed, 18 Jan 2023 10:50 PM
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भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने का मंत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी दिया ही था कि चौबीस घंटे के भीतर ही चुनाव आयोग ने उन्हें इसे परखने और अमल में लाने का मौका दे दिया। आयोग ने तीन राज्यों- मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा के चुनावों का एलान कर दिया, जो फरवरी में होंगे। त्रिपुरा में इस वक्त भाजपा की सरकार है और पार्टी ने चुनावों की घोषणा से पहले ही अपना मुख्यमंत्री बदल दिया है, जबकि  मेघालय व नगालैंड में सहयोगी दलों के साथ उसकी सरकार है। 
लोकसभा के नजरिये से तो यहां सिर्फ पांच सीटें हैं, मगर भाजपा ने पिछले कुछ सालों में पूर्वोत्तर का राजनीतिक नक्शा पूरी तरह बदल दिया है, खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके संगठन यहां काम कर रहे थे। पूर्वोत्तर और दूसरे राज्यों में भाजपा ने अब स्थानीय नेतृत्व को तरजीह देने का फैसला किया है। इन तीनों चुनावों में उतरते वक्त भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दिए गए इस मंत्र को खासतौर से ध्यान में रखना होगा कि हमें अपनी जीत को लेकर आत्ममुग्ध और अति-विश्वासी नहीं होना है, सक्रिय रहना है। कोई यह न समझे कि मोदी आएगा और जीत दिला देगा। हमें इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा। राजस्थान और छत्तीसगढ़ के पिछले विधानसभा चुनावों के नतीजों की याद दिलाते हुए मोदी ने कहा कि पिछली बार हम अति-आत्मविश्वास के कारण हार गए थे। इस बार इससे बचना होगा। मेहनत करनी होगी और लोगों के बीच रहना है। पूर्वोत्तर के राज्यों को ध्यान में रखते हुए ही शायद यह मंत्र दिया गया कि अब कार्यकर्ताओं को यूनिवर्सिटीज और चर्च में भी जाना चाहिए। 
संघ प्रमुख मोहन भागवत के मुसलमानों पर बयान के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पसमांदा मुसलमानों और बोहरा समुदाय पर फोकस करने के साथ-साथ इस बात पर भी जोर दिया कि मुसलमानों के खिलाफ बेवजह की बयानबाजी से बचना चाहिए। सभी धर्मों और जातियों को साथ लेकर चलें और अमर्यादित बयानबाजी से बचें। कांग्रेस के एक मित्र ने कहा कि भाजपा हर बार चुनाव इसलिए जीत जाती है, क्योंकि उसकी चुनावी थाली में बुफे है, यानी हर आदमी की पसंद के हिसाब से नारे या वादे और नेता भी हैं, जबकि कांग्रेस की थाली में फिलहाल न तो कुछ दिखाई दे रहा है और न ही कुछ बेहतर पक रहा है, तो फिर कोई मतदाता क्यों उसे पसंद करेगा? वैसे भी, हिन्दुस्तानियों को भरपूर थाली पसंद आती है, भले ही उससे पेट खराब हो जाए।
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से पहले पसमांदा मुसलमानों पर फोकस की वजह को समझ लेना चाहिए। सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे की मानें, तो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में आठ फीसदी पसमांदा मुस्लिमों ने भाजपा को वोट दिया है। उत्तर प्रदेश में 16 फीसदी पसमांदा मुसलमान हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में जीते 34 मुस्लिम विधायकों में से 30 पसमांदा हैं। इसे समझते हुए भाजपा ने उत्तर प्रदेश में सबसे पहले योगी सरकार में उच्च जाति के मंत्री मोहसिन रजा को हटाकर पसमांदा दानिश अली अंसारी को मंत्री बना दिया। पिछले साल जुलाई में हैदराबाद में भाजपा ने पसमांदा मुसलमानों के लिए स्नेह यात्रा शुरू कर दी, जिसके माध्यम से वह उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड जैसे राज्यों में भी उन्हें अपने साथ लेने में जुट गई है। इन पांच राज्यों में से दो में भाजपा की, जबकि तीन में गैर-भाजपा सरकारें चल रही हैं। इन पांच राज्यों में कुल 190 से ज्यादा लोकसभा सीटें हैं, साथ ही असम में 34 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 27 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 19 फीसदी, बिहार में करीब 17 फीसदी और झारखंड में 14 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। सच्चर कमीशन ने पसमांदा मुसलमानों को दलित की सूची में शामिल करने का सुझाव दिया था। मौजूदा लोकसभा में 27 मुस्लिम सांसद हैं।
वैसे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी पूरी तरह चुनाव केंद्रित रही। पार्टी ने जगत प्रकाश नड्डा को लोकसभा चुनावों तक अध्यक्ष बने रहने की मंजूरी दे दी। इसका प्रस्ताव रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रखा। विनम्र और मृदुभाषी नड्डा अपनी मुस्कराहट के साथ सबको साथ लेकर चलने की कोशिश करते हैं, तो इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि असल नेतृत्व नरेंद्र मोदी का ही है। नड्डा ने भाजपा को 160 से ज्यादा कमजोर सीटों पर फोकस करने की सलाह दी है। साथ ही, देश भर में 75 हजार बूथ पर पार्टी कार्यकर्ता को ज्यादा काम करने पर जोर दिया है और इस बार नारा है- हर बूथ मजबूत। इससे पहले अमित शाह ने पन्ना प्रमुख योजना से पार्टी को चुनावी ताकत दी थी। लालकृष्ण आडवाणी और अमित शाह के बाद नड्डा भाजपा के ऐसे तीसरे अध्यक्ष हैं, जिन्हें लगातार दूसरी बार अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला है। जम्मू-कश्मीर समेत इस साल होने वाले दस राज्यों और फिर अगले साल लोकसभा चुनाव उनके नेतृत्व में पार्टी को लड़ने हैं। नड्डा ने कहा कि हमें हर चुनाव को जीतना है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ को कांग्रेस से वापस लेना और कर्नाटक व मध्य प्रदेश को खोने नहीं देना उनके लिए प्रमुख चुनौती है। भाजपा का आत्मविश्वास इसलिए भी बढ़ गया है कि 2017 में जिस गुजरात में वह मुश्किल से अपनी सरकार बचा पाई थी, वहीं 2022 में उसने गुजरात के चुनावी इतिहास के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। देश के संसदीय इतिहास में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस ने राजीव गांधी के नेतृत्व में 400 से ज्यादा सीटें जीती थीं, इसलिए भाजपा ने लक्ष्य रखा है - इस बार 400 पार।
अभी भाजपा अपने एजेंडा से यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की भी तैयारी कर रही है। देश में विकास का दावा तो किया जा रहा है, मगर हाल में आई ऑक्सफैम की रिपोर्ट कुछ सवाल जरूर खड़े करती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में अमीर व गरीब के बीच खाई गहरी होती जा रही है। भारत में सिर्फ एक फीसदी लोगों के पास देश की 40 फीसदी संपत्ति है, वहीं 50 फीसदी आबादी के पास संपत्ति का सिर्फ तीन फीसदी हिस्सा है। गरीबों और मध्य वर्ग से सरकार ज्यादा टैक्स वसूल रही है। 2021-22 में जीएसटी का 64 फीसदी हिस्सा इसी 50 फीसदी आबादी ने जमा किया, जबकि देश के दस फीसदी अमीर लोगों से जीएसटी का सिर्फ तीन फीसदी हिस्सा मिला। ऐसी तमाम चर्चाओं का जवाब देते हुए भाजपा को आगे बढ़ना होगा। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं) 

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