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अमेरिकी सुरक्षा रणनीति के निशाने

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जारी नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बताती है कि दुनिया एक स्थाई आर्थिक प्रतिस्पद्र्धा में घिरी हुई है, जिसमें वाशिंगटन की भूमिका विदेशों में लोकतंत्र को बढ़ावा...

अमेरिकी सुरक्षा रणनीति के निशाने
हर्ष वी पंत, प्रोफेसर, किंग्स कॉलेज, लंदनThu, 21 Dec 2017 06:25 PM
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जारी नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बताती है कि दुनिया एक स्थाई आर्थिक प्रतिस्पद्र्धा में घिरी हुई है, जिसमें वाशिंगटन की भूमिका विदेशों में लोकतंत्र को बढ़ावा देने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अमेरिका अब बड़ी ताकतों की होड़, आर्थिक प्रतिस्पद्र्धा और घरेलू सुरक्षा पर भी पर्याप्त ध्यान देगा। ट्रंप के मुताबिक, उदारवादी नीतियों के रूप में पूर्व में जो गलत कदम उठाए गए थे, उसका इतिहास अब औपचारिक रूप से खत्म हो गया है। ये नीतियां शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से अमेरिकी विदेश नीति को दिशा दे रही थीं।

ट्रंप प्रशासन ने इस नई सुरक्षा रणनीति को एक ऐसा दस्तावेज बताया है, जो ‘कड़ी-प्रतिस्पद्र्धी दुनिया’ में ‘सैद्धांतिक यथार्थवाद’ पर आधारित है। यह रणनीति दुनिया की बड़ी ताकतों की राजनीति पर केंद्रित है और रूस व चीन को ऐसी ‘संशोधनवादी शक्तियां’ मानती है, जो वैश्विक यथास्थिति को बदलने की इच्छुक हैं और प्रतिस्पद्र्धा में पक्ष में किसी तरह के सहयोग को नकारते हुए एक अप्रिय दुनिया की छवि गढ़ती हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे और स्पष्ट करते हुए बताया कि ‘चीन व रूस अमेरिकी ताकत, प्रभाव व हितों को चुनौती देते हैं, और अमेरिकी सुरक्षा व समृद्धि को नष्ट करने की कोशिश करते हैं’। इसीलिए अमेरिका ने ‘पिछले दो दशक की अपनी नीतियों की समीक्षा की है। वे नीतियां असल में इस धारणा पर आधारित थीं कि विरोधियों को साथ लेकर चलने और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं व वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी सुनिश्चित किए जाने से वे भरोसेमंद दोस्त बन जाएंगे।’ नया दस्तावेज बताता है कि ‘कई मामलों में यह धारणा गलत साबित हुई है’।

जाहिर है, यह दो बड़ी शक्तियों पर असाधारण हमला है। ट्रंप बताते हैं कि रूस और चीन ‘अर्थव्यवस्था को अपेक्षाकृत कम मुक्त करने व कम निष्पक्ष बनाने के हिमायती हैं। वे अपनी सेना के विस्तार, अपने समाजों के दमन के लिए सूचना व डाटा पर नियंत्रण रखने और अपना प्रभाव बढ़ाने के भी पक्षधर हैं’। अमेरिकी राष्ट्रपति का दावा है कि चीन और रूस ‘उन्नत हथियार व सैन्य क्षमता’ विकसित कर रहे हैं, जो अमेरिका के ‘महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और नियंत्रण रखने वाली संरचनाओं’ के लिए खतरा बन सकती है। दस्तावेज की मानें, तो अमेरिका अब खुलकर यह मान रहा है कि ‘दुनिया भर में सशक्त सैन्य, आर्थिक व राजनीतिक प्रतिस्पद्र्धा चल रही है’ और ट्रंप प्रशासन ‘इस चुनौती से पार पाने, अमेरिकी हितों की रक्षा करने और अमेरिकी मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए अपने प्रतिस्पद्र्धात्मक कदमों को तेज करने’ का इरादा रखता है। राष्ट्रपति टं्रप के ही शब्दों में कहें, तो ‘हम इतनी मजबूती से खडे़ होंगे, जैसे पहले कभी नहीं खडे़ हुए हैं’।

साफ है, दुनिया में लोकतंत्र को बढ़ावा देने संबंधी नीति को, जो पारंपरिक रूप से अमेरिकी विदेश नीति की आधारशिला रही है, अब नजरअंदाज किया जा रहा है और ट्रंप की ‘अमेरिका फस्र्ट’ संबंधी सोच यही संभावना जगाती है कि अमेरिका ‘दुनिया भर में उचित व पारस्परिक आर्थिक संबंधों की वकालत करेगा’। जाहिर है, आने वाले हफ्तों में चीन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। उसके खिलाफ बौद्धिक संपदा चोरी करने संबंधी मामलों और जबरिया प्रौद्योगिकी हस्तांतरण संबंधी नीतियों की जांच पूरी होने वाली है। ऐसे में, ट्रंप प्रशासन चीन से आने वाले उत्पादों पर नया दंडात्मक सीमा-शुल्क लगा सकता है। इस सुरक्षा दस्तावेज में अमेरिका की बौद्धिक संपदा के महत्व पर पहली बार जोर दिया गया है। इसमें ‘नेशनल सिक्योरिटी इनोवेशन बेस’ की बात कही गई है, जिसमें शिक्षा या शिक्षा संबंधी शोध से लेकर तकनीकी कंपनियों तक, सभी को शामिल किया गया है। ट्रंप की नई सुरक्षा रणनीति स्पष्ट करती है कि ‘रचनात्मक अमेरिकियों की बौद्धिकता और उन्हें सक्षम बनाने वाली स्वतंत्र प्रणाली अमेरिकी सुरक्षा व समृद्धि के लिए काफी मायने रखती है’।

जलवायु परिवर्तन को राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के लिए भार मानते हुए उसे झटक दिया गया है। इसकी अपेक्षा जून में पेरिस समझौता से अमेरिका के बाहर निकालने संबंधी ट्रंप की घोषणा के बाद से ही की जा रही थी। ऐसा इस सच के बावजूद किया गया है कि ट्रंप ने 2018 में रक्षा पर होने वाले खर्च को लेकर जिस बिल पर हस्ताक्षर किए, उसमें कहा गया है कि ‘अमेरिका की सुरक्षा के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ा व सीधा खतरा है’।

हालांकि विश्व की बहुपक्षीय व्यवस्था को इस दस्तावेज में पूरी तरह खारिज नहीं किया गया है। यह बताता है कि ‘मौजूदा आर्थिक व्यवस्था अब भी हमारे हित का पोषण करती है। मगर हां, अमेरिकी कामगारों की समृद्धि, हमारे इनोवेशन की सुरक्षा और इस व्यवस्था के बुनियादी मूल्यों की रक्षा के लिए इसमें सुधार जरूर किया जाना चाहिए’। इसमें यह उम्मीद जताई गई है कि ‘व्यापारिक सहयोगी और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं कारोबारी असंतुलन को साधने और कायदे-कानूनों का पालन सुनिश्चित करने के लिए काफी कुछ कर सकती हैं’।

अच्छी बात यह है कि जिस दस्तावेज में ऐसे सख्त शब्दों का इस्तेमाल हुआ हो, उसमें भारत के साथ बिल्कुल अलग रवैया अपनाया गया है। रणनीतिक सहयोग की इच्छा जताते हुए इसमें कहा गया है कि चूंकि ‘भारत एक प्रमुख वैश्विक ताकत के रूप में उभरा है, इसलिए यह रणनीति जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ चतुष्कोणीय सहयोग बढ़ाने की वकालत करती है’। वहीं पाकिस्तान की लानत-मलामत करते हुए उसे चेताया गया है कि वह अफगानिस्तान में ‘अस्थिरता’ फैलाने से बाज आए, और साथ ही ‘दहशतगर्दों को समर्थन देना’ बंद करे, जो उप-महाद्वीप में अमेरिकी हितों को निशाना बनाते हैं।

बहरहाल, नई सुरक्षा रणनीति को जारी करते हुए ट्रंप ने यह जरूर कहा कि ‘अमेरिका प्रतिस्पद्र्धा की अपनी जंग जीतने वाला है’, पर इस रणनीति के निहितार्थ आने वाले समय में ही साफ हो सकेंगे। दस्तावेज में महत्वाकांक्षा साफ झलकती है, मगर इसमें प्रयोजन, माध्यम और साधन के लिहाज से काफी असमानताएं हैं। और जल्द ही, जब इसे यथार्थ रूप देने की कोशिश होगी, इसमें मौजूद विषमताओं को लेकर तरह-तरह के विचार हमारे सामने आ सकते हैं। इसीलिए विश्व समुदाय की नजर इस रणनीति के शब्दों को पढ़ने की बजाय ट्रंप प्रशासन के अगले कदमों पर होगी। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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