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केरल की सियासत का स्याह पहलू

मई 2016 में कांगे्रस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी यूडीएफ को केरल में करोड़ों रुपये के सोलर पैनल घोटाले से जोरदार झटका लगा था। मुख्यमंत्री ओमन चांडी के नेतृत्व में यूडीएफ को विधानसभा...

केरल की सियासत का स्याह पहलू
एस श्रीनिवासन, वरिष्ठ तमिल पत्रकारTue, 14 Nov 2017 01:28 AM
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मई 2016 में कांगे्रस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी यूडीएफ को केरल में करोड़ों रुपये के सोलर पैनल घोटाले से जोरदार झटका लगा था। मुख्यमंत्री ओमन चांडी के नेतृत्व में यूडीएफ को विधानसभा चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा था, जबकि पी विजयन के नेतृत्व में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एलडीएफ को जीत हासिल हुई थी। इस घोटाले की जांच कर रहे एक सदस्यीय न्यायिक आयोग ने पिछले हफ्ते सौंपी अपनी रिपोर्ट में ओमन चांडी को दोषी माना है, जिससे केरल की राजनीति में उबाल आ गया है। रिटायर्ड जज न्यायमूर्ति जी शिवराजन के नेतृत्व वाले आयोग ने अपनी जांच में पूर्व मुख्यमंत्री चांडी, उनके दो मंत्रियों और कुछ विधायकों-सांसदों के साथ-साथ अनेक आईपीएस अधिकारियों द्वारा कोच्चि की एक कंपनी टीम सोलर से रिश्वत लेने का दोषी माना है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कंपनी की एक निदेशक से सेक्स संबंधी लाभ भी उठाए गए। 

साल 2013 में जब यह घोटाला उजागर हुआ था, तब मुख्यमंत्री चांडी ने एसआईटी जांच के आदेश दिए थे। एसआईटी ने अपनी पड़ताल में मुख्यमंत्री कार्यालय के एक क्लर्क, एक निजी सहायक और एक सुरक्षाकर्मी के निदेशक से रिश्ते की पोल खोली थी। फोन कॉल्स के रिकॉर्ड के हवाले से एसआईटी ने मुख्यमंत्री के स्टाफ के आरोपियों के साथ लगातार बातचीत और उसमें सेक्स संबंधी बातों से परदा उठाया था। ये कर्मचारी न सिर्फ तत्काल नौकरी से बर्खास्त कर दिए गए थे, बल्कि उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया था। जांच में ‘टीम सोलर’ एक धोखेबाज कंपनी के रूप में सामने आई, जो लोगों से यह कहकर धन उगाह रही थी कि आला सरकारी अधिकारियों के साथ उसके करीबी रिश्ते हैं और वह उन्हें आसानी से कनेक्शन दिला देगी। आरोप यह भी था कि मुख्यमंत्री कार्यालय और मंत्रियों के दफ्तर के साथ संपर्क का फायदा ठेके हासिल करने के लिए भी उठाया गया। एक स्थानीय कारोबारी बीजू राधाकृष्णन और उसकी लिव-इन पार्टनर, जिन्होंने टीम सोलर कंपनी शुरू की थी, भाले-भाले लोगों को सौर ऊर्जा कनेक्शन दिलाने का वादा करके ठग रहे थे और इन्हीं ग्राहकों में से एक की शिकायत पर दोनों गिरफ्तार हुए थे।

यह एक पोंजी योजना थी, जो गलत दिशा में मुड़ गई। दरअसल, टीम सोलर ग्राहकों और निवेशकों से इस उम्मीद के साथ अग्रिम राशि वसूलती थी कि नए ग्राहकों से धन उगाही के बाद उन्हें पुनर्भुगतान होता रहेगा। अपनी सार्वजनिक छवि चमकाने के लिए कंपनी महत्वपूर्ण लोगों को अवॉर्ड भी देती थी। कंपनी इन आयोजनों में मीडिया के साथ-साथ बड़े अधिकारियों, सांसदों-विधायकों को न्योता देती थी। एकाधिक बार तो उसने मुख्यमंत्री राहत कोष में दान भी दिया था। इन आयोजनों के जरिए कंपनी और इसके निदेशक मुख्यमंत्री, मंत्रियों, सांसदों-विधायकों से अपनी सच्ची-झूठी घनिष्ठता की कहानी प्रचारित करती थी।

न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस घोटाले में संलिप्त सरकारी अफसरों के खिलाफ ‘प्रिवेंशन ऑफ करप्शन ऐक्ट’ के तहत मुकदमा चलाने की सिफारिश की है। आयोग का मानना है कि इस आरोप में ‘दम’ है कि राज्य के पूर्व गृह मंत्री टी राधाकृष्णन ने जांच को प्रभावित करने की चेष्टा की और इसी कारण उनके पुलिस प्रमुख और एसआर्ईटी मुखिया ने जांच को ‘नुकसान पहुंंचाने’ का प्रयास किया। मुख्यमंत्री पी विजयन ने आयोग की रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने के लिए न सिर्फ विशेष सत्र बुलाया, बल्कि रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के अनुरूपजांच के लिए एक और एसआईटी का गठन भी किया है। विजयन ने एक ऐसे प्राधिकरण के गठन की भी घोषणा की, जो इस बात की निगरानी कर सके कि कैसे ‘पुलिस बल को अनुशासित रखा जाए’। जिस तरह से पुलिस ने पूर्व मुख्यमंत्री चांडी को आपराधिक जिम्मेदारी से ‘मुक्त करने’ की कोशिश की, उसे देखते हुए मुख्यमंत्री विजयन ने यह कदम उठाया है।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पीड़ितों द्वारा 33 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। पुलिस का अनुमान था कि दोनों आरोपियों ने लोगों से करीब छह करोड़ रुपये उगाहे थे। यह भी आरोप था कि कुछ नामचीन शख्सीयतों ने भी अपना काला धन इसमें निवेश कर रखा था। जाहिर है, जब एक पीड़ित ने इस योजना के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर शिकायत की, तो कई सारे अन्य लोग भी अपनी शिकायतों के साथ उससे जुड़ गए, परिणामस्वरूप यह योजना ही धराशायी हो गई। शुरुआत में इस मामले में सेक्स संबंधी पहलू उजागर नहीं हुआ था। यह मामला तब सामने आया, जब निदेशक को एर्नाकुलम कोर्ट में पेश किया गया। उसने अदालत को बताया कि उच्च अधिकारियों ने उसका ‘यौन शोषण और बलात्कार’ किया। तब उससे लिखित में विस्तार से अपनी बात कहने को कहा गया। उसने एक पत्र लिखा है, जिसे आयोग की रिपोर्ट में प्रमुखता से दर्ज किया गया है। वह पत्र विस्फोटक था। निदेशक ने तत्कालीन मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों- नेताओं द्वारा अपने यौन-शोषण और चांडी को 2.16 करोड़ रुपये की रिश्वत अपने हाथों से देने की बात विस्तार से लिखी है।

आयोग ने इन तमाम आरोपों की गहराई से जांच की अनुशंसा की है। कांग्रेस ने इन आरोपों पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने अद्वितीय एकजुटता दिखाते हुए इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। चांडी ने खुद एलान किया है कि अगर आरोप साबित हुए, तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगे। क्या इन आरोपों को गंभीरता से लिया जा सकता है? इस निदेशक के खिलाफ विभिन्न थानों में धोखाधड़ी के 40 मुकदमे चल रहे थे। फिर वह लगातार अपने बयान भी बदलती रही है। लेकिन सार्वजनिक जगहों पर उसके जो कटु अनुभव हुए हैं, खासकर औरत होने के नाते, उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। अगर उसके बयानों को गौर से देखा जाए, तो वे केरल की राजनीतिक संस्कृति की सड़ांध को उजागर करते हैं। हालांकि, इतने गंभीर आरोपों के बावजूद चांड़ी की साख अब तक बहुत खराब नहीं हुई है। खबरों के मुताबिक, लोग यह मानते हैं कि उन्होंने भ्रष्टाचार को भले बढ़ावा दिया हो, मगर वह दुराचार में शामिल नहीं हो सकते। बहरहाल, पूरी सच्चाई मुकम्मल जांच से ही सामने आ पाएगी। लेकिन यह पूरा घटनाक्रम यूडीएफ के लिए बड़ा झटका तो है ही, खासकर उस वक्त पर, जब खुद एलडीएफ के मंत्रियों के खिलाफ गैर-कानूनी कृत्य के आरोप लग रहे हैं।
      (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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