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लालच का निवेश, छलावे का प्रतिफल

बिटक्वाइन चर्चा में है। आसपास आपके कई लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो यह बता रहे होंगे कि कितनी गति से उन्होंने बिटक्वाइन में पैसे बना लिए। कुछ रिटायर्ड लोग होंगे, जो बता रहे होंगे कि उन्होंने रिटायरमेंट पर...

लालच का निवेश, छलावे का प्रतिफल
आलोक पुराणिक, निवेश विशेषज्ञWed, 13 Dec 2017 10:18 PM
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बिटक्वाइन चर्चा में है। आसपास आपके कई लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो यह बता रहे होंगे कि कितनी गति से उन्होंने बिटक्वाइन में पैसे बना लिए। कुछ रिटायर्ड लोग होंगे, जो बता रहे होंगे कि उन्होंने रिटायरमेंट पर मिली रकम का कितना बड़ा हिस्सा बिटक्वाइन में लगा दिया। कुछ गृहिणियां किट्टी पार्टी में बता रही होंगी कि बिटक्वाइन से बेहतर निवेश तो कुछ है ही नहीं। 2017 के पहले दिन बिटक्वाइन की कीमत थी 1,000 डॉलर, यह अब कई जगहों पर 17,000 डॉलर पर पहुंच गई है। यानी करीब 12 महीनों  में 1,600 प्रतिशत रिटर्न। इसके मुकाबले भारत में तेजी से ऊपर जाते मुंबई शेयर बाजार सूचकांक को देखें, तो पिछले करीब 12 महीनों में यह 28 प्रतिशत के आसपास बढ़ा है। 28 प्रतिशत एक साल में शेयर बाजार से रिटर्न, किसी निवेश सलाहकार से पूछेंगे, तो वह बताएगा कि एक साल में 28 प्रतिशत रिटर्न बेहतर ही नहीं, बल्कि बहुत शानदार रिटर्न है। पर यह 28 प्रतिशत रिटर्न 1,600 प्रतिशत रिटर्न के सामने कितना कमजोर सा लगता है। जिस निवेश में 1,600 प्रतिशत रिटर्न एक साल में आ रहा हो, वह निवेश तो बहुत ही जोरदार होना चाहिए और जो उसमें निवेश न करे, उसे बेवकूफ होना चाहिए। पर निवेश का इतिहास अभूतपूर्व बेवकूफियों से भरा हुआ है और इसे इंसानी लालच का कमाल कहें कि हर बार कोई माध्यम बन ही जाता है इंसानी लालच का। 

पर यह बिटक्वाइन क्या बला है? अक्सर इसे एक करेंसी के तौर पर चिह्नित किया जाता है। नहीं, यह करेंसी नहीं है। करेंसी का कोई जारीकर्ता होता, करेंसी के पीछे कोई गारंटी होती है। भारतीय रुपयों के ऊपर लिखा होता है कि मैं धारक को इतने रुपये देने का वचन देता हूं। ऐसी कोई गारंटी बिटक्वाइन के साथ नहीं जुड़ी। फिर बिटक्वाइन क्या कोई संपत्ति है, जैसे शेयर, मकान, बैंक डिपॉजिट, सोना? शेयर किसी कंपनी में हिस्सेदारी होती है, किसी कंपनी में मिल्कियत का एक हिस्सा है। जैसे-जैसे उस कंपनी का कारोबार बढ़ता है, उसका मुनाफा बढ़ता है, वैसे-वैसे उस कंपनी की कीमत बढ़ती जाती है। जब कीमत बढ़ती है, तो उसकी हिस्सेदारी की चाह रखने वालों की संख्या भी बढ़ती है, यानी मांग बढ़ती है। इसलिए अच्छी कंपनियों के शेयर लगातार ऊपर जाते हैं। पर बिटक्वाइन किसी कंपनी में कोई भागीदारी नहीं देती। मकान जैसी कोई भौतिक संपत्ति यह है नहीं। बैंक डिपॉजिट यह है नहीं, कोई बैंक इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता। सोना यह है नहीं, तो यह है क्या? यह तकनीक द्वारा तैयार ऐसा उत्पाद है, जिसे लेकर तरह-तरह की गलतफहमियां हैं। सबसे बड़ी गलतफहमी यह कि इसके भाव लगातार ऊपर जाएंगे, हमेशा। 

कीमत चाहे आलू की हो, शेयर की या बिटक्वाइन की, मूल अर्थशास्त्र एक ही होता है- मांग ज्यादा हो और आपूर्ति कम, तो भाव बढ़ते हैं। जैसे एचडीएफसी बैंक के शेयर के भाव को लें। करीब एक साल में इसके भाव 50 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ चुके हैं, वजह दिखती है कि बैंक के मुनाफे बढ़ रहे हैं। बैंक के शेयर यानी मिल्कियत सीमित है, मांग बढ़ेगी, आपूर्ति सीमित है, तो भाव बढेंगे। पर यहां कारोबार दिखाई पड़ रहा है, मुनाफा बढ़ता दिख रहा है। एक और कारण होता है दुर्लभता। सोना कुछ नहीं करता, कोई धंधा नहीं करता, सिर्फ लॉकर में रखा जाता है। पर सोना दुर्लभ है, इसकी आपूर्ति सुलभ नहीं है। मकान के भावों के बढ़ने के मूल में भी वही कारण है, आपूर्ति सीमित है। पर बिटक्वाइन की आपूर्ति को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है। कोई कुछ  कंप्यूटर पहेलियां सुलझा ले, तो उसे बिटक्वाइन मिल जाते हैं। इसे बिटक्वाइन माइनिंग कहते हैं। फिर इनकी खरीद-फरोख्त आगे होती है। बिटक्वाइन का कोई ऐसा प्रयोग नहीं है, जैसे सोने का है। सोने को पहनकर सामाजिक स्टेटस बढ़ाया जा सकता है या मकान का है, जिसमें रहा जा सकता है या शेयर का है, जिसे खरीदकर भविष्य में लाभांश हासिल किया जा सकता है। बिटक्वाइन न शेयर है, न सोना है, न मकान है, न करेंसी है। फिर इसके भाव आसमान क्यों छू रहे हैं? 

इंसानी मनोवृत्तियों में से एक बहुत बुनियादी है- लालच। लालच विवेक की कब्र पर ही उगता है। जहां बड़े समझदार निवेशक कह रहे हैं कि एक साल में सेंसेक्स की करीब 28 प्रतिशत बढ़ोतरी भी सामान्य नहीं है, वहां 1,600 प्रतिशत की बढ़ोतरी के बावजूद  बिटक्वाइन को एक निवेश माध्यम बताया जा रहा है। लालच के ऐसे नमूने पहली बार नहीं दिखे हैं। वित्तीय इतिहास के जानकारों ने पढ़ा है कि 17वीं शताब्दी की शुरुआत में ट्यूलिप के फूलों को लेकर ऐसा जुनून लालच नीदरलैंड में देखा गया था। लोगों में यह भरोसा बैठ गया कि ट्यूलिप के फूलों के भाव सिर्फ ऊपर ही जाएंगे। लोगों ने घर गिरवी रखकर ट्यूलिप खरीदे, फिर एक दिन भाव जमीन पर आ गए, और बहुत से लोग बर्बाद हो गए। वित्तीय जगत में बहुत कारोबार बड़े मूर्ख की उपलब्धता पर चलता है। किसी ने  बिटक्वाइन लिया 500 डॉलर का, उसे 1,000 डॉलर में खरीदने वाला एक और बड़ा मूर्ख मिल गया। मंगल ग्रह के प्लॉट भी खरीदे-बेचे जा सकते हैं। एक दिन पता लगता है कि कोई खरीदार नहीं है, और सब धड़ाम हो जाता है। 1992 में हर्षद मेहता के घोटाले भरे दिनों में कई शेयर रातोंरात दोगुने हो रहे थे। मूर्खों को और बड़े मूर्ख मिल रहे थे, बतौर खरीदार। फिर सब धड़ाम हो गया। 

किसी भी चीज के भाव बढ़ने के तर्क होने चाहिए। उसकी दुर्लभता, उसकी आपूर्ति, उसकी मांग को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। वरना तो कई बाबा दो मिनट में गहने दोगुने करने के वादे पर माल लेकर चंपत हो जाते हैं। रिजर्व बैंक ने कई बार चेतावनी दी है, जिसका आशय है कि बिटक्वाइन को लेकर स्पष्टता नहीं है। बिटक्वाइन का कारोबार किसी भारतीय अथॉरिटी के दायरे में नहीं है। कल को अगर  बिटक्वाइन डूब जाता है, तो किसकी जिम्मेदारी होगी? यह कोई भौतिक संपत्ति नहीं है। बिटक्वाइन की कोई भी ऐसी केंद्रीय अथॉरिटी नहीं है, जहां शिकायत दर्ज की जा सके। इंटरनेट ने कई तरह की लूट को ग्लोबल कर दिया है, क्योंकि लालच भी ग्लोबल और इंसानी प्रवृत्ति है। जो भी निवेश एक साल में 12 प्रतिशत से ज्यादा का रिटर्न देने की बात करे, उसे गहराई से शक की निगाहों से देखा जाना चाहिए। विडंबना यह है कि लालच शक को खत्म कर देता है। लालच का अंत छलावे पर होता है। देखना यह है कि अंत कब होता है?

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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