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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैकाश, मेरा बेटा लौट आता

काश, मेरा बेटा लौट आता

केरल के तिरुवनंतपुरम जिले के छोटे से गांव में रहने वाली पद्मावती की कम उम्र में ही शादी हो गई। ससुराल पहुंचीं, तो उनका जीवन दुखों से भर गया। पति को शराब की लत थी। नशे की वजह से वह बीमार हुए और मौत हो...

काश, मेरा बेटा लौट आता
पद्मावती अम्मा, सामाजिक कार्यकर्ता Sat, 11 Aug 2018 09:54 PM
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केरल के तिरुवनंतपुरम जिले के छोटे से गांव में रहने वाली पद्मावती की कम उम्र में ही शादी हो गई। ससुराल पहुंचीं, तो उनका जीवन दुखों से भर गया। पति को शराब की लत थी। नशे की वजह से वह बीमार हुए और मौत हो गई। तब उनका बेटा उदयकुमार बस एक साल का था। 

पति की मौत के बाद पद्मावती एक स्कूल में चपरासी की नौकरी करने लगीं। अब बेटा ही उनका सहारा था। यूं ही दिन बीतते गए। बेटा बड़ा हो गया। वह एक कबाड़ की फैक्टरी में करने लगा। मालिक उसकी मेहनत व ईमानदारी से बहुत खुश था। यह 27 सितंबर, 2005 की बात है। पूरे गांव में ओणम त्योहार की धूम थी। उस दिन उदयकुमार को बोनस मिलने वाला था। उसने सोचा आज मां के लिए नए कपड़े और मिठाई खरीदेगा। वह सुबह जल्दी उठ गया और खुशी-खुशी निकल पड़ा काम पर। 

उदयकुमार को 4,000 रुपये का बोनस मिला। शाम को वह सड़क किनारे खड़ा था। उसके बगल में एक और युवक आकर खड़ा हो गया, जिसके ऊपर किसी चोरी का केस दर्ज था। तभी दो पुलिस वाले वहां आए और दोनों को पकड़कर थाने ले गए। उन्होंने उदयकुमार की तलाशी ली और पूछा, तुम्हारे पास इतने रुपये कहां से आए? उसने बताया कि बोनस मिला है और वे चाहें, तो उसके फैक्टरी मालिक से पूछ सकते हैं। चोरी का कोई सुबूत नहीं था, इसलिए पुलिस ने उसे छोड़ दिया। लेकिन उन्होंने उसके रुपये अपने पास रख लिए। 

उदयकुमार अपनी मेहनत की कमाई यूं गंवाने को तैयार न था। इस बात से पुलिस वाले चिढ़ गए और वे उसे दोबारा थाने ले गए। उसे रात भर पीटा गया। हाथ-पांव बांधकर बेंच पर लिटाया गया। एक पुलिस वाला उसके ऊपर बैठ गया। फिर लोहे की रॉड से उसे चोट पहुंचाई गई। वह दर्द में चीखता रहा और पुलिस वाले उसे पीटते रहे। उसने पानी मांगा, तो खाली बोतल दिखाकर उसका मजाक उड़ाया गया। उत्पीड़न का यह जानलेवा खेल तब तक चलता रहा, जब तक कि उसकी मौत नहीं हो गई।  

उधर पद्मावती बेचैन थीं। बेटा घर नहीं लौटा था। देर रात उन्होंने पड़ोसियों को बताया। कुछ लोगों ने कहा कि वह दोस्तों के संग घूमने गया होगा। पर वह जानती थीं कि बेटा काम से सीधे घर लौटता था। रात भर दरवाजे पर बैठकर वह उसका इंतजार करती रहीं। सुबह सोचा कि अब लौटेगा, तो उसे खूब डांट लगाऊंगी। स्कूल पहुंचे अभी कुछ ही देर हुई थी कि कुछ लोग आए और कहा कि मुर्दाघर में एक शव पड़ा है, उसकी पहचान करनी है।  

पद्मावती भागती हुई अस्पताल पहुंचीं। सामने बेटे की लाश थी। उनकी चीखें पूरें अस्पताल में गूंजने लगीं। मन में गहरा सदमा था व आक्रोश भी। वह उन लोगों को सजा दिलाना चाहती थीं, जिन्होंने उनके बेटे की जिंदगी छीन ली। पुलिस ने मामले को दबाने की कोशिश की, पर यह बात मीडिया में आ चुकी थी, इसलिए पोस्टमार्टम कराया गया। उदयकुमार की जांघों पर 22 चोटें मिलीं। 

पद्मावती अब उन लोगों को सजा दिलाना चाहती थीं, जिन्होंने उनके बेटे को तड़पाकर मारा था। उन्होंने तमाम जगह मदद की गुहार लगाई। कुछ सामाजिक संगठन मदद को आगे आए। कई जगह प्रदर्शन हुए। सरकार ने दबाव में दो पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया और उन्हें आर्थिक मदद व घर देने का वादा किया। एक साल बीत गया। लोगों के लिए यह मामला पुराना हो चुका था, मगर वह कैसे भूल सकती थीं अपने इकलौते बेटे को। पुलिस ने उनका केस कमजोर कर दिया। 34 में से 33 गवाह पलट गए। उन पर भी दबाव बनाया गया कि वह केस वापस लें। तमाम लोगों ने कहा, तुम दोषियों से नहीं जीत पाओगी। यह भी कहा कि तुम्हारे जीवन में तो  सजा मिलना असंभव है।

पद्मावती जब पहली सुनवाई के लिए कोर्ट पहुंचीं, तो उन पर हमला किया गया। उन्हें लालच दिया गया। पर उन्होंने कहा कि जब मेरा बेटा ही नहीं रहा, तो मैं पैसे लेकर क्या करूं? पद्मावती बताती हैं, एक बार एक गाड़ी ने मुझे कुचलने की कोशिश की। मैं दिन में भी अपने घर के दरवाजे बंद रखती थी। हर पल खतरा था। सितंबर 2007 में उनके बारे में अखबार में खबर पढ़ने के बाद केरल हाईकोर्ट के एक वकील सिराज करोले ने याचिका दायर कर मामले की सीबीआई जांच की मांग की। मामला लंबा चला। तारीख पर तारीख पड़ती रही। पद्मावती के पास केस लड़ने के लिए पैसे नहीं थे। पर वह नहीं हारीं। 2016 में केरल हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह उन्हें 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दे। 

आखिर 13 साल बाद उन्हें न्याय मिला। इसी साल जुलाई में सीबीआई कोर्ट ने दो दोषी पुलिस अफसरों जीताकुमार व एसवी श्रीकुमार को फांसी की सजा सुनाई, जबकि बाकी तीन अन्य दोषियों को तीन साल कैद की सजा दी गई। पद्मावती कहती हैं, मैंने यह लड़ाई इसलिए लड़ी, ताकि फिर किसी मां का बेकसूर बेटा न मारा जाए। मेरा बेटा तो वापस नहीं आएगा, पर मुझे खुशी है कि मुझे न्याय मिला। प्रस्तुति : मीना त्रिवेदी

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