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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैलोगों ने मुझे भिखारी समझ लिया

लोगों ने मुझे भिखारी समझ लिया

अलीरजा का जन्म ईरान के एक खानाबदोश परिवार में हुआ। वह लोरेस्तान सूबे के सर्ब-ए-यास गांव में पले-बढे़। उनका कोई स्थाई घर नहीं था। भेड़ों के लिए हरी घास की तलाश में साल भर एक से दूसरी जगह भटकना पड़ता था।...

लोगों ने मुझे भिखारी समझ लिया
अलीरजा बेइरानवंद चर्चित फुटबॉल खिलाड़ीSun, 08 Jul 2018 01:42 AM
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अलीरजा का जन्म ईरान के एक खानाबदोश परिवार में हुआ। वह लोरेस्तान सूबे के सर्ब-ए-यास गांव में पले-बढे़। उनका कोई स्थाई घर नहीं था। भेड़ों के लिए हरी घास की तलाश में साल भर एक से दूसरी जगह भटकना पड़ता था। अलीरजा परिवार के सबसे बडे़ बेटे थे, लिहाजा उनके ऊपर पिता के काम में हाथ बंटाने की जिम्मेदारी थी। होश संभालते ही वह भेड़ों की देखभाल करने लगे। रोजना तड़के वह भेड़ चराने जंगल की ओर निकल जाते और शाम ढलने के बाद ही घर लौटना होता था। 
कुछ दिनों बाद उन्हें अकेले ही भेड़ चराने जंगल भेजा जाने लगा। साथ में पड़ोस के कुछ अन्य बच्चे भी जाते थे। इस बीच रास्ते में जब भी मौका मिलता, वह साथियों के संग खेलने लगते। ईरान में कबाइली बच्चों का एक लोकप्रिय खेल है, जिसे डाल पारन कहते हैं। इस खेल में बच्चे पूरी ताकत लगाकर दूर निशाने पर पत्थर फेंकते हैं। अलीरजा को बड़ा मजा आता था पत्थर फेंकने में। पर एक दिन फुटबॉल लग गई उनके हाथ। पहली बार फुटबॉल को लात मारकर हवा में उछाला, तो बड़ा मजा आया। उन्हें यह खेल डाल पारन से कहीं ज्यादा रोमांचकारी लगा। अब जब भी भेड़ चराने से वक्त मिलता, अलीरजा फुटबॉल खेलने लगते। घरवालों को यह बिल्कुल पसंद न था, मगर उन पर तो फुटबॉल का जुनून सवार हो चुका था। 
12 साल की उम्र में वह गांव की लोकल सॉकर टीम में खेलने लगे। पिताजी को खबर लगी, तो उन्होंने खूब डांट लगाई। दरअसल घरवालों को लगता था कि बेटा जरूरी काम छोड़कर खेल में वक्त बर्बाद कर रहा है। पिताजी का कहना था कि खेल-कूद से घर की रोटी नहीं चलने वाली। वह चाहते थे कि बेटा कोई ऐसा हुनर सीखे, जिससे आगे चलकर उसे नौकरी मिल सके। एक दिन तो उन्हें अलीरजा पर इतना गुस्सा आया कि उन्होंने उनकी फुटबॉल ड्रेस और दस्ताने ही फाड़ डाले। अलीरजा बताते हैं, पापा ने चेतावनी दी कि अगर मैं दोबारा फुटबॉल खेलता नजर आया, तो वे घर से निकाल देंगे।  मैं भी जिद्दी था। मैं बिना दस्ताने ही खेलता रहा।  
अब अलीरजा एक ही सपना था फुटबॉलर बनना। इसके लिए प्रोफेशनल ट्र्रेंनग की जरूरत थी, लेकिन घर पर रहकर ये संभव न था। एक दिन वह घरवालों को बिना कुछ बताए राजधानी तेहरान के लिए निकल पडे़। बस किराये के लिए रिश्तेदार से पैसे उधार लिए। खुशकिस्मती से उसी बस में फुटबॉल कोच हुसैन फैज भी सफर कर रहे थे।  बातचीत के दौरान फैज उन्हें ट्र्रेंनग देने को तैयार हो गए, लेकिन उनकी फीस बहुत ज्यादा थी। इसलिए बात नहीं बनी। 
अलीरजा अच्छी तरह जानते थे कि तेहरान जाकर उन्हें बहुत संघर्ष करना पडे़गा, मगर पीछे  लौटने का अब कोई मतलब नहीं था। उनके इरादे पक्के थे। कुछ भी हो फुटबॉलर ही बनना है। इसके लिए वह सब कुछ करने को तैयार थे। तेहरान पहुंचने के बाद कुछ रातें फुटपाथ पर गुजारनी पड़ीं। फुटबॉल क्लब ट्रायल के बाद उन्हें ट्र्रेंनग देने को राजी हो गया। पहले दिन वह बहुत थक गए। उन्हें नींद आ रही थी। रात गुजारने का कोई ठिकाना नहीं था उनके पास। होटल या गेस्ट हाउस में रुकने के लिए पैसे नहीं थे। उस रात वह क्लब के गेट पर ही सो गए। नींद इतनी गहरी आई कि पता ही नहीं चला, कब सुबह हो गई? अलीरजा बताते हैं, मैं क्लब के दरवाजे पर सो गया। अगली सुबह उठा, तो देखा कि मेरे चारों तरफ पैसे पड़े हैं। लोगों ने भिखारी समझकर मेरे ऊपर पैसे फेंके थे। पहले तो बड़ा बुरा लगा, लेकिन मैंने वे सारे सिक्के उठा लिए, क्योंकि मुझे उन पैसों की जरूरत थी। इसके बाद मैंने उन पैसों से होटल में बढ़िया खाना खाया। 
फुटबॉल ट्र्रेंनग के साथ-साथ उन्हें काम की भी तलाश थी। पहले कार धोने का काम मिला, बाद में पिज्जा की दुकान में वेटर बन गए। एक दिन दुकान में उनके कोच आ गए पिज्जा खाने। अलीरजा नहीं चाहते थे कि कोच को पता चले कि वह वेटर का काम करते हैं। वह कोच के सामने वेटर बनकर नहीं जाना चाहते थे। दुकान मालिक से उन्होंने अनुरोध किया कि वह किसी और वेटर को पिज्जा परोसने के लिए भेज दे। पर वह नहीं माना। आखिरकार कोच को उनकी हकीकत पता चल गई। इसके बाद उन्होंने वेटर की नौकरी छोड़ दी। पर गुजारे के लिए कुछ तो करना था। अगली नौकरी कपड़ा फैक्टरी में मिली। बस यूं ही दिन बीतने लगे। कोच उनकी मेहनत और लगन से खुश थे। 2010 अंडर -20 टीम में जगह मिली।
साल 2011 में पहली बार ईरान की टीम में बतौर गोलकीपर खेलने का मौका मिला। 2014 में नेशनल फुटबॉल टीम की तरफ से उन्हें ट्र्रेंनग के लिए चुना गया। 2015 में वह ईरान फुटबॉल टीम के नंबर 1 गोलकीपर बने। 2017 में वह पहले ईरानी खिलाड़ी थे, जिन्हें सर्वश्रेष्ठ फीफा अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। मौजूदा फीफा वल्र्ड कप में अलीरजा ने दुनिया के स्टार फुटबॉल खिलाड़ी क्रिस्टियानो रोनाल्डो की पेनाल्टी को रोक दिया। इसके बाद तो पूरी दुनिया में उनकी चर्चा होने लगी है।
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

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