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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैमेरा यह दर्द दूसरों के लिए मरहम बने

मेरा यह दर्द दूसरों के लिए मरहम बने

बेनाला (विक्टोरिया) की एंजला बार्कर के हिस्से में खुशियां बेशुमार थीं। वह अच्छी एथलीट थीं। ऊंची कूद में उनका नाम था। नेटबॉल में वह सेंटर पोजीशन पर खेला करती थीं। स्क्वायड बास्केटबॉल में माहिर थीं।...

मेरा यह दर्द दूसरों के लिए मरहम बने
एंजला बार्कर ऑस्ट्रेलियाई सामाजिक कार्यकर्ताSat, 14 Dec 2019 10:17 PM
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बेनाला (विक्टोरिया) की एंजला बार्कर के हिस्से में खुशियां बेशुमार थीं। वह अच्छी एथलीट थीं। ऊंची कूद में उनका नाम था। नेटबॉल में वह सेंटर पोजीशन पर खेला करती थीं। स्क्वायड बास्केटबॉल में माहिर थीं। दोस्तों के साथ गाना उनका शगल था। साइकोलॉजी में करियर बनाने की मंशा थी। हर फैसले में साथ देने वाला परिवार था। और एक सजीला ब्वॉयफ्रेंड हाथ थामने को तैयार था। मानो ईश्वर ने उनके लिए बाहों भर कायनात तय कर रखा था। मगर जो तय नहीं था, वह थी उनकी नियति।
यह घटना 2002 की है। तब एंजला सोलह साल की थीं। ब्वॉयफ्रेंड डेल कैरी लेपोइडविन के आक्रामक व्यवहार को वह समझने लगी थीं। उसका वक्त-बेवक्त हाथ उठाना उन्हें अखरने लगा था। लिहाजा इस रिश्ते को सींचना उनके लिए मुश्किल हो गया। उन्होंने लेपोइडविन को छोड़ने का मन बना लिया। 7 मार्च वह दिन था, जब देर शाम एक सुपरमार्केट की कार-पार्किंग में उन्होंने लेपोइडविन को मना किया। नाराज लेपोइडविन हैवानों की तरह उन पर टूट पड़ा। उसने लात-घूंसों की बौछार कर दी। एंजला का पूरा शरीर ऐंठ गया। उनके कान और मुंह से खून निकलने लगा। वह उन्हें तब तक पीटता रहा, जब तक कि वह बेहोश न हो गईं।
डॉक्टरों के लिए एंजला ‘वेजेटेटिव-स्टेट’ में पहुंच चुकी थीं, यानी करीब-करीब कोमा की स्थिति। दिमाग के अंदरुनी हिस्सों में गंभीर चोट थी। चेहरा पूरा सूज गया था। मां हेलेन बार्कर बताती हैं, ‘एंजला एक निर्जीव देह की तरह हमारे सामने पड़ी थी। हम यह मान चुके थे कि अब वह ज्यादा दिनों तक हमारे बीच नहीं रहेगी। मगर कहीं न कहीं यह आस भी थी कि ईश्वर इतना बेरहम नहीं हो सकता।’ और, जब तीन हफ्तों के बाद एंजला की आंखें खुलीं, तो वह अपनी आवाज खो चुकी थीं और चलना भी उनके लिए सपना हो चला था।
वह करीब आठ हफ्तों तक अस्पताल में रहीं। फिर उन्हें बेनाला के ओल्ड एज नर्सिंग होम में भेज दिया गया। सभी यही कह रहे थे कि उनका बाकी जीवन अब बिस्तर पर ही बीतने वाला है। लेकिन मजबूत इरादों वाली एंजला को यह मंजूर नहीं था। सभी को गलत साबित करने में उन्हें तकरीबन तीन साल लगे। वह बताती हैं, ‘मुझे पता था कि हर चीज मेरे खिलाफ है। मगर मुझे बिस्तर से उतरना था। अपने पांवों पर खड़ा होना था। बोलना था। अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करनी थी। पुराने दिनों को फिर से जीना था।’
इन तीन वर्षों का सफर काफी कष्टदायक रहा। इस दौरान उन्होंने न जाने किस हद तक दर्द झेले। यह उनकी जिद ही थी कि बिस्तर का साथ जल्द छूट गया। अब व्हील चेयर उनका साथी है। पिता इयान बार्कर बताते हैं, ‘जब वह घर लौटी, तो उसकी आंखें भींगी हुई जरूर थीं, पर उनमें उसका आत्मविश्वास साफ झलक रहा था। हां, अपनी आवाज को फिर से पाने में उसे पांच साल लग गए।’ 
एंजला आज भी टूटे-फूटे शब्दों में ही बोल पाती हैं, लेकिन हिंसा के खिलाफ उनके ये शब्द काफी धारदार होते हैं। साल 2004 में ऑस्ट्रेलिया की संघीय सरकार ने उनके जज्बे को आदर्श बताकर लव्स मी, लव्स मी नॉट  नाम से एक डीवीडी जारी की, जो घरेलू हिंसा के खिलाफ सरकारी अभियान का हिस्सा है। आज भी एंजला तमाम दर्द के बावजूद हिंसा के खिलाफ लोगों को जागरूक करने में पीछे नहीं रहतीं। अब तक हजारों छात्रों, पुरुषों, महिलाओं, स्वास्थकर्मियों, पुलिसकर्मियों, राजनेताओं, कैदियों से वह संवाद कर चुकी हैं। संयुक्त राष्ट्र तक में अपनी बात रख चुकी हैं। वह कहती हैं, ‘हिंसा खत्म करने में शिक्षा की भूमिका काफी अहम है। बच्चों को जन्म से ही एक-दूसरे का सम्मान करना और एक-दूसरे को समान समझना सिखाया जाना चाहिए। नौजवान भी रिश्तों में दुव्र्यवहार के बीज पहचानना सीखें, क्योंकि प्यार की पहली अवस्था में उन्हें भी मेरी तरह सब कुछ खुशनुमा लग सकता है। शारीरिक और भावनात्मक दुव्र्यवहार करने वाला कभी भी प्रेमी नहीं हो सकता।’
एंजला को हादसे से पहले के 12 महीने याद नहीं हैं। मगर यह पता है कि उनका ब्वॉयफ्रेंड अब दूसरे के साथ ऐसा नहीं कर सकता। वह साढ़े दस साल के लिए हवालात के अंदर है। हालांकि मां हेलन इस सजा को नाकाफी मानती हैं। वह आज भी कहती हैं कि उनकी बेटी को ताउम्र दर्द देने वाला इंसान जिंदगी भर जेल में बंद रहना चाहिए। उसने एंजला का सब कुछ छीन लिया। मगर एंजला के मन में ऐसा कोई मलाल नहीं है। वह अपनी खुशमिजाजी छोड़ना नहीं चाहतीं।
साल 2010 में एंजला बेनाला छोड़कर मेलबर्न आ गईं। जल्द ही उन्हें नेशनल ऑस्ट्रेलिया बैंक में पार्ट-टाइम नौकरी भी मिल गई। उन्हें 2011 में विक्टोरियन यंग ऑस्ट्रेलियन ऑफ द ईयर अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। मेलबर्न की 100 प्रभावशाली शख्सियतों में भी वह शुमार हैं। आज भी जब उनकी यादों को कुरेदा जाता है, तो वह कहना नहीं भूलतीं- खुद पर विश्वास रखो, कुछ भी पाना असंभव नहीं। 
प्रस्तुति : हेमेन्द्र मिश्र 

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