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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैमजदूर से उद्यमी बनने की संघर्षगाथा

मजदूर से उद्यमी बनने की संघर्षगाथा

अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन ने कहा था कि सिर्फ धन का अभाव गरीबी नहीं है, बल्कि एक इंसान के भीतर की क्षमताओं को पहचान न पाने की अयोग्यता भी गरीबी है। बांग्लादेश की छबि दासगुप्ता ने अमत्र्य सेन के इस...

मजदूर से उद्यमी बनने की संघर्षगाथा
छबि दासगुप्ता (बांग्लादेशी लघु-उद्यमी)Sat, 12 Oct 2019 11:45 PM
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अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन ने कहा था कि सिर्फ धन का अभाव गरीबी नहीं है, बल्कि एक इंसान के भीतर की क्षमताओं को पहचान न पाने की अयोग्यता भी गरीबी है। बांग्लादेश की छबि दासगुप्ता ने अमत्र्य सेन के इस विचार के मर्म को जिया है। सात सदस्यों वाले परिवार के भरण-पोषण के लिए छबि के पिता को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी, फिर भी वह अपने परिवार की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं कर पाते थे। एक अत्यंत गरीब परिवार में पैदा हुई छबि के लिए वह दिन सचमुच बहुत सुखद होता था, जब घर के सभी लोग दोनों शाम भरपेट भोजन कर पाते थे। गरीबों के बच्चों की मासूमियत इन तल्ख एहसासों के तले ही दम तोड़ती है। इसी से वे बुरे हालात से लड़ने की ताकत भी अर्जित करते हैं। 

परिवार अपने दुर्दिनों से जूझ ही रहा था कि उस पर वज्रपात हुआ। तब छबि की उम्र सिर्फ 12 साल थी। पिता की मौत ने परिवार के सामने एक गहरा अंधेरा खड़ा कर दिया था। ऐसे में, छबि को पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी, क्योंकि तब सबसे बड़ा सवाल अपना और परिवार के पेट भरने का था। अच्छी बात यह थी कि बांग्लादेश में रेडिमेड कपड़ों का उद्योग दिनोंदिन रफ्तार पकड़़ रहा था। छबि को कुछ कोशिशों के बाद एक कपड़ा फैक्टरी में काम भी मिल गया। जरूरतों और उम्मीदों ने छबि को एक के बाद दूसरी कई फैक्टरियों में काम करने के लिए प्रेरित किया, और इन सबके बीच उनमें एक उद्यमी बनने की चाह पैदा हुई, जो दिन-ब-दिन गहरी होती चली गई। उन्होंने काम के साथ-साथ पढ़ाई का सिलसिला फिर से शुरू किया। साथ ही वह अपने सपने को साकार करने के लिए तनख्वाह का छोटा-सा हिस्सा बचाने भी लगीं। अगले 18 वर्षों तक उन्होंने अलग-अलग कपड़ा फैक्टरियों में काम किया। इसी दरम्यान बांग्लादेश ओपन यूनिवर्सिटी में उन्होंने दाखिला भी लिया, मगर आर्थिक दबावों के कारण उन्होंने पैर पीछे खींच लिए।

साल बीतने के साथ-साथ अपना उद्यम शुरू करने का छबि का इरादा मजबूत होता गया था। बीते डेढ़ दशकों में उन्होंने धीरे-धीरे करके पांच लाख टका जमा कर लिए थे। दो लाख टका इधर-उधर से कर्ज लेकर फरवरी 2016 में उन्होंने चटगांव की खलीफा पट्टी में एक किराये के मकान से अपनी फैक्टरी ‘सेंस फैशन’ की शुरुआत की। तब उन्होंने 10 सिलाई मशीन और छह कर्मचारियों के साथ अपना यह कारोबार शुरू किया था। फैक्टरी की शुरुआत करते समय कई सारे लोगों ने उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश की, लेकिन उनके सपने को साकार करने में पति अमलेंदू दासगुप्ता ने कदम-कदम पर उनका साथ दिया। छबि उदारता के साथ उन्हें श्रेय देती हैं, ‘जब-जब मैं हताश हुई, वह मेरे साथ मजबूती से खड़े रहे और उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया। अमलेंदू और उनके दोस्त दीपांकर ने साथ न दिया होता, तो शायद मैं उद्यमी नहीं बन पाती।’

अगले दो वर्षों में छबि के अनुभव, मेहनत ने उन्हें कामयाबी की नई-नई मंजिलें तय करने का हौसला दिया। जब काम काफी बढ़ गया, तो उन्हें एक बड़ी जगह की जरूरत महसूस होने लगी। काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने पड़ोस के न्यू चकताई इलाके के राबिया टावर में अपनी फैक्टरी शिफ्ट कर ली। मगर यहां उन्हें स्थानीय कारोबारियों और पड़ोसियों का काफी विरोध झेलना पड़ा। वे फैक्टरी के जेनरेटरों के खिलाफ खासे आक्रामक थे। लेकिन सब्र और अक्लमंदी के सहारे छबि ने उन्हें मुत्मईन कर ही लिया। अलबत्ता इस काम में उन्हें चार महीने लग गए। कारोबार बढ़ाने के लिए उन्हें और ज्यादा पूंजी की दरकार थी। छबि ने सुन रखा था कि महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी कर्ज की एक योजना है, लेकिन वह जब-जब कर्ज के लिए बैंकों के पास गईं, उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा।

बहरहाल, आज उनकी फैक्टरी में 60 सिलाई मशीनें हैं और इसमें 100 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। छबि अपने सफर को याद करते हुए भावुक हो जाती हैं, ‘एक वह भी दौर था, जब मैं महीने के अंत में अपनी तनख्वाह का बेसब्री से इंतजार किया करती थी कि पैसे हाथ में आएं, तो अपने परिवार का पेट पाल सकूं, आज मैं अपने वर्करों को छह लाख टका तनख्वाह में बांटती हूं।’ छबि ने सरकार से लघु एवं मध्यम उद्योग ऋण मांगा है, ताकि वह अपने कारोबार का और ज्यादा विस्तार कर सकें और साथ ही देश के नौजवानों के लिए रोजगार का सृजन भी हो सके। छबि ने अपनी क्षमताओं को न सिर्फ पहचाना, बल्कि उसे अपनी सूझ-बूझ और प्रतिबद्धता से एक मुकाम दिया। वह न सिर्फ अपने देश का राजस्व बढ़ा रही हैं, बल्कि प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से सौ से ज्यादा परिवारों के पेट भी पाल रही हैं। आज वह बांग्लादेश में सम्मान की नजर से देखी-सराही जाती हैं। एक मजदूर से उद्यमी बनने के उनके साहसिक संघर्ष को देखते हुए उन्हें इस साल प्रतिष्ठित नेशन बिल्डर्स अवॉर्ड से नवाजा गया है। प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह

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