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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैअब लोग मेरा नजरिया समझ रहे हैं

अब लोग मेरा नजरिया समझ रहे हैं

अफ्रीकी मूल की इब्तिहाज का जन्म अमेरिका के न्यू जर्सी सूबे में हुआ। पिता पुलिस में थे और मां पास के स्कूल में पढ़ाती थीं। वे जिस मोहल्ले में रहते थे, वहां ज्यादातर परिवार अफ्रीकी मूल के थे। ये लोग...

अब लोग मेरा नजरिया समझ रहे हैं
इब्तिहाज मोहम्मद, महिला तलवारबाजSat, 18 Nov 2017 07:14 PM
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अफ्रीकी मूल की इब्तिहाज का जन्म अमेरिका के न्यू जर्सी सूबे में हुआ। पिता पुलिस में थे और मां पास के स्कूल में पढ़ाती थीं। वे जिस मोहल्ले में रहते थे, वहां ज्यादातर परिवार अफ्रीकी मूल के थे। ये लोग अल्पसंख्यक समुदाय से थे। ये वे परिवार थे, जिनके पूर्वज वर्षों पहले अफ्रीका छोड़कर अमेरिका में आ बसे थे। जाहिर है, उनका रहन-सहन, बोली-भाषा मूल अमेरिकी नागरिकों से कुछ अलग थी। मगर अब वे अमेरिकी नागरिक थे और इस नाते उन्हें शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा जैसे तमाम बुनियादी अधिकार हासिल थे, जो एक आम अमेरिकी नागरिक को मिलते हैं।

पापा ऑफिस के काम में बहुत व्यस्त रहते थे, इसलिए चारों बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा मां के ऊपर था। प्राइमरी क्लास तक तो इब्तिहाज को अपने रूप-रंग को लेकर कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। वह जिस स्कूल में पढ़ती थीं, वहां ज्यादातर बच्चे अफ्रीकी मूल के थे, इसलिए उन्हें किसी तरह का फर्क महसूस नहीं हुआ। मगर प्राइमरी के बाद के स्कूल में उनका सामना कुछ ऐसे बच्चों से हुआ, जो अमेरिकी मूल के थे। वे सब गोरे थे। धीरे-धीरे इब्तिहाज अफ्रीकी और अमेरिकी मूल का अंतर समझने लगीं। मां हमेशा पूरी बाहों के कपड़े पहनती थीं। सिर पर हिजाब पहनकर घर से बाहर निकलती थीं। उनके समाज के लिए यह आम बात थी। इब्तिहाज भी हिजाब पहनकर स्कूल जाने लगीं। स्कूल में कभी किसी ने इस बात के लिए उन्हें टोका नहीं, पर कई बार रेस्तरां या पार्क में घूमते वक्त उन्हें लगता कि लोग उन्हें घूर रहे हैं। मां ने हमेशा उन्हें ऐसी बातों को नजरअंदाज करना सिखाया। मां की बस एक ही तमन्ना थी कि बच्चे खूब पढ़ें और अपनी पंसद का करियर चुनें।

कोलंबिया हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान खेलों में इब्तिहाज की दिलचस्पी बढ़ने लगी। स्कूल में तमाम लड़कियां बैडमिंटन और टेनिस खेला करती थीं। वह भी इनमें से कोई एक खेल चुनना चाहती थीं। उन्होंने घर पर कई बार इसका अभ्यास भी किया। उन्हें यकीन था कि अगर ट्रेनिंग मिले, तो वह बेहतरीन खिलाड़ी बन सकती हैं। मगर जब खेल चुनने की बारी आई, तो उनका पहनावा बड़ी दिक्कत बनकर सामने आया। बैडमिंटन और टेनिस खेलने वाली लड़कियां स्कर्ट पहनकर खेलती थीं। मगर मां ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी। तब पहली बार उन्हें एहसास हुआ कि वह बाकी लड़कियों से अलग हैं। इब्तिहाज बताती हैं- शुरुआत में मुझे टेनिस और बैडमिंटन पसंद था, पर मुझे इन खेलों में जाने की अनुमति नहीं मिली। बाद में मैंने तलवारबाजी चुनी, क्योंकि इसमें फुल बाहों के कपड़े पहनने पर रोक नहीं थी। चूंकि सभी तलवारबाज सुरक्षा के लिए सिर पर हेलमेट पहनते हैं, इसलिए मेरे हिजाब पहनने पर किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई।

तेरह साल की उम्र में इब्तिहाज तलवारबाजी सीखने लगीं। पहले ही साल उन्हें जूनियर टीम में जगह मिल गई। उनके पहले कोच थे फ्रैंक मुस्टिली। साल 2002 में उन्होंने पीटर वेस्टब्रूक फाउंडेशन से जुड़कर एडवांस ट्रेनिंग ली। यहां उन्हें सिडनी के मशहूर खिलाड़ी अकि स्पैंसर इल के नेतृत्व में ट्रेनिंग मिली। इस बीच उनकी पढ़ाई जारी रही। 2003 में ड्यूक यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल की। 2010 में इब्तिहाज अमेरिकी नेशनल तलवारबाजी टीम का हिस्सा बनीं। कड़ी मेहनत और खेल के प्रति सौ फीसदी समर्पण के बूते वह लगातार आगे बढ़ती रहीं।
साल 2016 उनके करियर के लिए सबसे अहम था। उन्हें ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए चुना गया। पर फिर उनका पहनावा बहस का मुद्दा बन गया। इससे पहले आज तक किसी महिला खिलाड़ी ने हिजाब पहनकर तलवारबाजी नहीं की थी। कुछ लोगों ने उनकी आलोचना की। मगर इब्तिहाज ने तय किया कि वह अपने पहनावे में कोई बदलाव नहीं करेंगी। रियो ओलंपिक में वह हिजाब पहनकर मैदान में उतरीं। ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली महिला खिलाड़ी बन गईं। इस मौके पर इब्तिहाज ने कहा- मैं सिर्फ प्रतियोगिता में हिस्सा लेने नहीं आई हूं, बल्कि  मेरा मकसद उन लोगों के खिलाफ आवाज उठाना है, जो हिजाब पहनने वाली महिलाओं के संग अच्छा व्यवहार नहीं करते। आप मेरी तलवारबाजी देखिए, मेरा पहनावा नहीं। उन्होंने पहले राउंड में जीत हासिल की। तलवारबाजी प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतने वाली वह पहली मुस्लिम अफ्रीकी-अमेरिकी महिला बनीं।

हाल ही में बार्बी डॉल बनाने वाली कंपनी ने हिजाब पहने बार्बी डॉल को बाजार में उतारा है। यह डॉल हाथ में तलवार पकड़े है। यह खूबसूरत गुड़िया इब्तिहाज के जीवन से प्रेरित है। वह  कहती हैं- यह लम्हा बहुत खास है। अब लोग मेरे नजरिये को समझ रहे हैं। हर व्यक्ति व समुदाय को अपनी मर्जी से जीने की आजादी है। हमें इस आजादी का सम्मान करना चाहिए। अमेरिकी सरकार ने उन्हें खेल सद्भावना दूत नियुक्त किया है। एक विशेष अभियान के तहत वह दुनिया भर में लड़कियों के बीच शिक्षा और खेलों को बढ़ावा देने में जुटी हैं। इब्तिहाज कहती हैं- मैं चाहती हूं कि सभी देशों में बेटियों को खेलने और पढ़ने की आजादी मिले। उन्हें आगे बढ़ने से न रोका जाए।
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

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