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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैपापा ने कर्ज लेकर मेरा इलाज कराया

पापा ने कर्ज लेकर मेरा इलाज कराया

पंजाब के बागरिया गांव की रहने वाली नवजोत कौर के पिता किसान हैं। खेती-किसानी कर गुजारा करने वाले इस गरीब परिवार में एक बेटा और दो बेटियां हैं। उनका गांव तरन तारन जिले में है। परिवार में सबसे पहले बेटी...

पापा ने कर्ज लेकर मेरा इलाज कराया
नवजोत कौर, भारतीय महिला पहलवानSat, 10 Mar 2018 07:00 PM
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पंजाब के बागरिया गांव की रहने वाली नवजोत कौर के पिता किसान हैं। खेती-किसानी कर गुजारा करने वाले इस गरीब परिवार में एक बेटा और दो बेटियां हैं। उनका गांव तरन तारन जिले में है। परिवार में सबसे पहले बेटी पैदा हुई। पापा सुखचैन सिंह ने उसका नाम रखा नवजीत। गांव में बेटियों के जन्म पर जश्न मनाने का रिवाज नहीं था, इसलिए गांव वाले उन्हें बधाई देने नहीं आए। लेकिन पापा फूले नहीं समा रहे थे।

नवजीत के जन्म के कुछ साल बाद मां ने फिर एक बेटी को जन्म दिया। रिश्तेदार और पड़ोसी मायूस हुए, फिर बेटी हो गई सुखचैन के घर। कैसे दो बेटियों का बोझ उठाएगा? इस बार कुछ लोग सहानुभूति दिखाने पहुंचे। पर पापा ने खुशी का इजहार करते हुए सबको बताया कि उन्होंने छोटी बेटी का नाम नवजोत रखा है। यह भी कहा कि वह बेटियों को पढ़ा-लिखाकर सफल इंसान बनाना चाहते हैं। गांव वालों को यह बात रास नहीं आई। बेटियां बड़ी होने लगीं। गांव के स्कूल में उनका दाखिला करवाया गया। पापा खेतों में ज्यादा मेहनत करने लगे, ताकि परिवार के खर्चे पूरे हो सकें। दिन बीतने लगे। इस बीच मां फिर से गर्भवती हुईं। गांव में चर्चा होने लगी कि सुखचैन के घर फिर बेटी न पैदा हो जाए। पर इस बार बेटे ने जन्म लिया। पापा बेटा पाकर खुश थे, पर उनका फोकस इस बात पर था कि बेटियों को कैसे सक्षम बनाया जाए? उन्होंने बेटे और बेटियों में कोई फर्क नहीं किया। 

एक दिन किसी ने उनसे कहा कि आजकल देश की तमाम लड़कियां कुश्ती, बॉक्सिंग और दौड़ में नाम कमा रही हैं। यह सुनकर उन्हें बहुत अच्छा लगा। इस बीच स्कूल के खेल टीचर ने भी सलाह दी कि वह अपनी बेटी को कुश्ती सिखाएं। नवजोत खालसा स्पोट्र्स स्कूल क्लब में ट्रेनिंग लेने लगीं। तब वह कक्षा छह में पढ़ती थीं। पापा ने साफ कह रखा था, कुश्ती के साथ पढ़ाई भी करनी होगी। उन्होंने तरन तारन के गुरु अर्जुन देव स्कूल में शुरुआती पढ़ाई की और बाद में अमृतसर के डीएवी कॉलेज में दाखिला लिया। दिलचस्प बात यह थी कि जहां सुखचैन बेटी की कुश्ती पर गर्व महसूस करते थे, वहीं गांव वाले उन पर तंज कसते थे। पड़ोसियों को लगता था कि कुश्ती लड़ने वाली लड़कियां दबंग हो जाती हैं और यह समाज के लिए ठीक नहीं है। नवजोत कहती हैं- पापा ने मुझे और मेरी बड़ी बहन को पहलवान बनाने का फैसला किया। उन दिनों गांव वाले हम पर हंसते थे। वे पापा को ताने मारते थे, पर हमने किसी की नहीं सुनी। पापा हमेशा हौसला बढ़ाते थे। उनकी वजह से ही आज मैं यहां तक पहुंची हूं। 

जिला और राज्य स्तर पर खेलने के बाद उनके करियर में बड़ा मोड़ तब आया, जब उन्हें मनीला में आयोजित एशियन जूनियर चैंपियनशिप में खेलने का मौका मिला। इस मुकाबले में उन्होंने गोल्ड मेडल हासिल किया। उसी साल उन्हें वल्र्ड जूनियर मुकाबले में कांस्य पदक मिला। साल 2011 में एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप के सीनियर लेवल मुकाबले में उन्होंने कांस्य पदक अपने नाम किया। उनकी जीत पर गांव में जश्न हुए। पापा तब फूले नहीं समाए, जब पूरा गांव उन्हें बधाई देने उमड़ पड़ा। अब लोग उन्हें नवजोत के पापा के नाम से जानने लगे। सुखचैन कहते हैं- बेटी अवॉर्ड जीतकर घर लौटे, इससे बड़ी खुशी एक पिता के लिए क्या हो सकती है! मैं चाहता हूं कि वह ओलंपिक गेम्स में देश का नाम रोशन करे।  

एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप के बाद नवजोत कॉमनवेल्थ की तैयारियों में जुट गईं। कोच को बड़ी उम्मीदें थीं उनसे। उन्होंने दिन-रात कड़ी मेहनत की। 2014 में हुए ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने कांस्य पदक जीता। पर जीत की खुशी ज्यादा दिन कायम न रह सकी। उसी साल उन्हें स्लिप डिस्क हो गया। कमर में चोट के कारण दो साल तक खेल से बाहर रहना पड़ा। कई महीने अस्पताल में रहीं। सबसे बड़ी दिक्कत थी, इलाज के लिए पैसा कहां से लाएं? एक तरफ शरीर का दर्द था, तो दूसरी तरफ खेल से दूर रहने का मलाल। पर पापा ने उन्हें हिम्मत नहीं हारने दी। उन्होंने बेटी के इलाज के लिए लोन लिया। सुखचैन कहते हैं- लोग बेटियों के दहेज के लिए कर्ज लेते हैं। मैंने उसे खिलाड़ी बनाने के लिए कर्ज लिया। मुझे कोई अफसोस नहीं है इस पर। 

 चोट के कारण नवजोत का 2016 के रियो ओलंपिक में जाने का सपना टूट गया। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी काफी समय तक घर पर आराम करना पड़ा। पिछले साल दिसंबर में दोबारा ट्रेनिंग के लिए कुश्ती के मैदान में उतरीं। तीन महीने की ट्रेनिंग के बाद वह सीनियर एशियन चैंपियनशिप मुकाबले में उतरीं और गोल्ड जीतकर नया रिकॉर्ड बनाया। 28 साल की नवजोत यह खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं। गोल्ड जीतने की खुशी इतनी थी कि उनसे संभाली न गई। अवॉर्ड की घोषणा होते ही वह भावुक होकर रोने लगीं। नवजोत कहती हैं- चोट लगने के बाद मैं हिम्मत हार गई थी। लगा था, अब कभी कुश्ती नहीं लड़ पाऊंगी। पर परिवार ने मेरा हौसला बढ़ाया। अब मेरा लक्ष्य है, ओलंपिक मेडल जीतना। -प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

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