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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैभेदभाव की दुनिया से जज की कुरसी तक

भेदभाव की दुनिया से जज की कुरसी तक

पश्चिम बंगाल के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी जयिता मंडल ने बचपन से भेदभाव का दंश सहा। बचपन में परिवार ने उन्हें बेटे की पहचान दी। मम्मी-पापा उन्हें जयंतो कहकर पुकारते थे। स्कूल दस्तावेज में भी...

भेदभाव की दुनिया से जज की कुरसी तक
जयिता मंडल, देश की पहली ट्रांसजेंडर जजSat, 03 Mar 2018 07:16 PM
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पश्चिम बंगाल के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी जयिता मंडल ने बचपन से भेदभाव का दंश सहा। बचपन में परिवार ने उन्हें बेटे की पहचान दी। मम्मी-पापा उन्हें जयंतो कहकर पुकारते थे। स्कूल दस्तावेज में भी उन्हें यही नाम दिया गया, पर समय के साथ उनकी शख्सियत को लेकर शंकाएं बढ़ती गईं। उनकी चाल-ढाल, पोशाक, बातचीत, यहां तक कि उनकी पसंद और नापसंद को लेकर भी गंभीर आपत्तियां होने लगीं। घरवालों को उनके तौर-तरीके पसंद नहीं थे। स्कूल और पड़ोस में भी सब उनका मजाक बनाते थे। 

उन्हें लड़कियों की तरह सजना-संवरना पसंद था। लड़कों की शरारतों से परहेज था उन्हें। पर घरवालों की सोच बिल्कुल जुदा थी। पापा चाहते थे कि वह उनका बेटा बनकर जिएं। जयिता के तौर-तरीके उन्हें पसंद नहीं थे। बात-बात पर उन्हें टोका जाता। सुधार नहीं होने पर खूब डांट पड़ती थी। कई बार उन्हें समझ नहीं आता कि उनके साथ यह सब क्यों हो रहा है? जब भी वह घर से बाहर निकलतीं, लगता सब उन्हें घूर रहे हैं। हमउम्र बच्चे उन्हें देखकर दूर भाग जाते। किसी को उनसे दोस्ती करना पसंद नहीं था। इस भेदभाव ने उनका बचपन छीन लिया। अकेलेपन का उनका दर्द बढ़ता गया। 

तब जयिता 15 साल की रही होंगी। उन दिनों कोलकाता में दुर्गा पूजा का जश्न चल रहा था। पूरा शहर खूबसूरत पूजा-पंडालों से सजा हुआ था। पड़ोस की महिलाएं और लड़कियां सज-संवरकर समारोह में जा रही थीं। उस दिन जयिता ने भी साड़ी पहनी, बाल संवारे। मेकअप करने के बाद बार-बार आईने में खुद को निहारा। सुखद एहसास था वह। बन-संवरकर पहुंच गईं पूजा पंडाल में। यह सब उन्होंने परिवार वालों से छिपकर किया। पहली बार जिंदगी जीने का एहसास हुआ। देर शाम खुशी-खुशी घर लौटीं।  लेकिन घर की दहलीज पर कदम रखते ही उन पर कहर टूट पड़ा। मम्मी-पापा उन्हें लड़की के लिबास में देखकर बरस पड़े। पापा ने खूब पीटा। जयिता कहती हैं, पापा ने इतना पीटा कि मैं बुरी तरह चोटिल हो गई। पांच दिन बिस्तर से नहीं उठ पाई। कोई मुझे डॉक्टर के पास भी नहीं ले गया। मैं तड़पती रही। पिटाई की वजह से कई दिनों तक शरीर में दर्द रहा। घर वाले उन्हें डॉक्टर के पास इसलिए नहीं ले गए, क्योंकि उन्हें जयिता की पहचान खुल जाने का डर था। पड़ोस में बदनामी होगी। इस घटना के बाद उनका परिवार से मोहभंग होने लगा। 

स्कूली पढ़ाई के बाद कॉलेज जाने लगीं। लेकिन जिंदगी नहीं बदली। वहां भी साथियों के ताने सहने पडे़। सब चाहते थे कि वह लड़कों की तरह पेश आएं, पर उनका मन व शरीर कुछ और कहता था। बाहर और अंदर का द्वंद्व इस कदर असहनीय हो गया कि उन्होंने घर छोड़ने का फैसला कर लिया। यह बात 2009 की है। 

घर छोड़ने के बाद बेदर्द दुनिया से सामना हुआ। किसी होटल में उन्हें रहने के लिए जगह नहीं मिली। होटल वाले एक ट्रांसजेंडर को अपने यहां कमरा देकर मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते थे। उनके दिन सड़़कों पर बीतने लगे। रातें रेलवे स्टेशन या बस स्टॉप पर गुजारनी पड़ीं। जयिता कहती हैं, हमारे समाज में ट्रांसजेंडर को इंसान नहीं समझा जाता। लोग हमारे साथ ऐसे पेश आते हैं, मानो हम इस धरती के प्राणी ही नहीं हैं। समाज की इस क्रूरता ने मुझे कितना दर्द दिया, यह बयां करना भी मुश्किल है। कुछ दिनों के बाद उन्हें कॉल सेंटर में नौकरी मिल गई, पर वहां भी सामाजिक तिरस्कार ने पीछा नहीं छोड़ा। ऑफिस में सहकर्मी उनका मजाक उड़ाते। 

आखिरकार एक दिन वह ट्रांसजेंडर समाज की टोली से जा मिलीं। पेट पालने के लिए कुछ दिन उनके संग नाच-गाना भी किया। लेकिन उन्हें वह जीवन पसंद नहीं था। वह सम्मान से जीना चाहती थीं। जयिता कहती हैं, लोग मुझे देखकर ऐसे मुंह बनाते थे, मानो मैं अस्पृश्य हूं। वे हम पर भद्दे कमेंट करते थे। दिल छलनी हो जाता था। लगता था, जैसे इस धरती पर हमारे लिए कोई जगह ही नहीं है। 

उन्होंने दोबारा कानून की पढ़ाई शुरू की। इस बीच उन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान शुरू किया। साल 2010 से ‘नई रोशनी’ नाम की संस्था बनाई और ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने लगीं। तमाम लोग अभियान से जुड़ते चले गए। अब उनकी पहचान सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में होने लगी। उन्होंने ट्रांसजेंडर की शिक्षा और रोजगार की मांग उठाई। तमाम सामाजिक मंचों पर जाकर उन्होंने अपने समुदाय के बुनियादी अधिकारों की मांग को बुलंद किया। 

साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके समुदाय को ट्रांसजेंडर के रूप में मान्यता दी। जयिता कहती हैं, इस आदेश ने हमें हमारी पहचान दी है। पहली बार हमें महिला और पुरुष से अलग ‘अन्य’ की श्रेणी में रखा गया। अब समाज को हमारे प्रति नजरिया बदलना होगा। पिछले साल उन्हें एक बड़ी कामयाबी मिली। 8 जुलाई को पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर की लोक अदालत में उन्हें जज नियुक्त किया गया। अब वह देश की पहली ट्रांसजेंडर जज हैं। प्रस्तुति : मीना त्रिवेदी 

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