Hindustan Jeena Isi Ka naam hai Column A unique singer shows the way to healthy gardening 19 May 2024 सेहतमंद बागवानी की राह दिखाता अनोखा गायक, Interview Hindi News - Hindustan
Hindi Newsओपिनियन जीना इसी का नाम हैHindustan Jeena Isi Ka naam hai Column A unique singer shows the way to healthy gardening 19 May 2024

सेहतमंद बागवानी की राह दिखाता अनोखा गायक

राजधानी आकर लगा, जैसे कोई तवील रात गुजरी है, मगर दुखों का सिलसिला अब भी नहीं थमा था। छोटा भाई आहार में हुए बदलाव के कारण डायरिया का शिकार हो गया। अब इससे दर्दनाक बचपन और क्या होगा? छह साल की उम्र...

Monika Minal यूजेनियो लेमोस, गायक, पर्यावरणविद्, Sat, 18 May 2024 09:56 PM
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सेहतमंद बागवानी की राह दिखाता अनोखा गायक

दक्षिण-पूर्वी एशिया का एक छोटा सा मुल्क है तिमोर-लेस्त। इसको पूर्वी तिमोर भी कहते हैं। चार सौ वर्षों तक पुर्तगालियों का उपनिवेश रहा तिमोर-लेस्त पिछली सदी के उत्तरार्द्ध में करीब ढाई दशकों तक इंडोनेशिया के कब्जे में भी रहा और एक लंबे खूनी संघर्ष व संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद इस सदी की शुरुआत (2002) में आजाद मुल्क की हैसियत से दुनिया के नक्शे पर अवतरित हुआ। यूजेनियो लेमोर इसी देश के एक किसान परिवार में पैदा हुए। 
साल 1975 की बात है। लेमोस सिर्फ तीन साल के थे, जब इंडोनेशिया ने पूर्वी तिमोर पर हमला बोल दिया था। लेमोस का परिवार जान बचाने के लिए जंगल में भाग आया था। वहां जो कुछ मिल सकता था, उसी से भूख मिटानी पड़ती, मगर जब स्थिति असह्य होने लगी, तो पिता से देखा न गया। एक दिन वह वहां से परिवार को निकालने की राह तलाशने क्या निकले, इंडोनेशियाई फौजियों ने उनको दबोच लिया और उसके बाद उनका कोई पता नहीं चला। अजीब खौफनाक वक्त था। हर तरफ मौत ही मौत थी। जंगल में भूख लोगों को निगलती जा रही थी और गांवों में आक्रांता फौजी खून की होली खेल रहे थे। लेमोस की छोटी बहन उसी वनवास में भूख से दम तोड़ गई। करीब तीन साल बाद एक ‘सर्च ऑपरेशन’ के दौरान जंगल में छिपे काफी लोग पकडे़ गए और उन सबको राजधानी दिली ले आया गया था। लेमोस का परिवार भी उनमें एक था।
राजधानी आकर लगा, जैसे कोई तवील रात गुजरी है, मगर दुखों का सिलसिला अब भी नहीं थमा था। वर्षों से कंदमूल से ऊर्जा बटोर रहे शरीर ने जैसे प्रसंस्कृत अनाजों से बगावत कर दी थी। लेमोस का छोटा भाई आहार में हुए बदलाव के कारण डायरिया का शिकार हो गया। उसकी मौत से वह काफी आहत हुए थे। भला इससे दर्दनाक बचपन और क्या होगा? छह साल की उम्र में तीन-तीन अपनों का वियोग! मगर मां ने लेमोस को टूटने से बचा लिया। बेटे का पेट भरने के लिए वह काफी मशक्कत करतीं। आठ साल की उम्र में लेमोस की स्कूली शिक्षा शुरू हुई। शुरू में काफी दिक्कतें आईं, क्योंकि वहां इंडोनेशियाई भाषा में पढ़ाया जाता था और लेमोस को वह भाषा आती ही नहीं थी। वह पहली ही कक्षा में फेल हो गए। मगर जब मां का आशीष और संबल, दोनों हो तो संतान हीनता-ग्रंथि का शिकार कैसे हो पाती? लेमोस ने न सिर्फ स्कूल की अपनी पढ़ाई पूरी की, बल्कि राजधानी की ही  यूनिवर्सिटी से कृषि-शिक्षा की ऊंची डिग्री हासिल की। 
यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही उन्हें वनों की कटाई और खेती-किसानी में उर्वरकों के बढ़ते इस्तेमाल के खिलाफ सक्रिय एक आंदोलन से जुड़ने का मौका मिला। इस आंदोलन ने पर्यावरण-संरक्षण के प्रति उन्हें जागरूक बनाया। लेमोस देश की 40 प्रतिशत ग्रामीण आबादी की दयनीय हालत से वाकिफ थे ही, अब यह बात भी अच्छी तरह समझ गए कि उन्होंने जिस कृषि पद्धति के बारे में पढ़ाई की है, वह उनके देश के छोटे किसानों के लिहाज से बिल्कुल सही नहीं है। 
आजादी की दहलीज पर खडे़ देश के लिए कुछ करने के जज्बे ने लेमोस को कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने को प्रेरित किया। सुखद संयोग यह रहा कि साल 1999 में तिमोर-लेस्त जिस वक्त जनमत संग्रह के जरिये अपनी आजादी पर मुहर लगा रहा था, उसी समय ऑस्ट्रेलियाई ‘पर्माकल्चरिस्ट’ स्टीव ग्रांट से लेमोस की मुलाकात हुई। वह तिमोर में पर्माकल्चर के प्रशिक्षण के लिए आए थे। पर्माकल्चर टिकाऊ खेती की ऐसी पद्धति है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं होता। लेमोस को लगा, यह तो उनका सांस्कृतिक मूल्य है। उन्होंने स्टीव ग्रांट से न सिर्फ इसका प्रशिक्षण लिया, बल्कि साल 2001 में ‘पर्माटिल’ नाम से एक संस्था बनाकर तीन कार्यक्रमों की शुरुआत भी कर दी- युवा प्रशिक्षण कार्यक्रम, स्कूल उद्यान कार्यक्रम व जल एवं प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन कार्यक्रम। लेमोस के पास संसाधन तो था नहीं, लिहाजा वह पीठ पर गिटार टांगते और मोटरसाइकिल से निकल पड़ते युवाओं को अपने मूल्यों व पर्माकल्चर के बारे में समझाने।
शुरू-शुरू में सरकारी तंत्र और लोगों ने उनकी बातों की उपेक्षा की, मगर जब 2005 में उन्हें आयरिश सरकार ने वजीफा दिया और ऑस्ट्रेलिया की विक्टोरिया यूनिवर्सिटी ने अपने यहां सामुदायिक विकास की पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप दी, तो तिमोर सरकार ने भी लेमोस को गंभीरता से लेना शुरू किया। साल 2008 में जब उन्होंने पहला पर्माकल्चर शिविर लगाया, तो देश भर से करीब 400 लोग आए। उसके बाद संख्या बढ़ती ही गई। इन शिविरों में लोगों को प्राकृतिक खाद बनाने, बीजों को संरक्षित करने, पौधों की नर्सरी तैयार करने, बाग लगाने, बांस और लकड़ी से आरामदेह घर बनाने की सीख दी जाती है। साल 2013 में वह दिली यूनिवर्सिटी में व्याख्याता नियुक्त हुए और उसके बाद तो उन्हें कई अहम सरकारी जिम्मेदारियां सौंपी गईं।      
आज लेमोस की मुहिम की बदौलत इस छोटे से देश के सैकड़ों स्कूलों में बागवानी कार्यक्रम पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा है। देश भर में 1,000 से भी अधिक तालाबों में वर्षा-जल का संरक्षण होता है। 300 झरनों को सूखने के कगार से वापस लाया गया है। मगर इन सबके बीच लेमोस ने संगीत के प्रति अपने प्रेम को मरने नहीं दिया। उन्होंने इसके जरिये देश के लाखों युवाओं को अपनी संस्कृति से जोड़ा, उन्हें पर्यावरण-हितैषी बनाया है। लेमोस एक पुरस्कृत गायक, गीतकार व संगीतकार हैं। इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी शख्स को 2023 के रेमोन मैगसायाय पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो समूचा तिमोर-लेस्त झूम उठा। इस धरती से भूख और दरिद्रता मिटाने के लिए यूजेनियो लेमोस का सीधा-सा मंत्र है- वही उपजाएं, जो आप खा सकें और वही खाएं, जो उपजा सकें!
प्रस्तुति :  चंद्रकांत सिंह 

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