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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैमौत के मुंह से लौट आने का जज्बा

मौत के मुंह से लौट आने का जज्बा

वह उम्र के उस मोड़ पर थे, जहां जिंदगी शायद सबसे हसीन एहसासों से आबाद होती है। करियर शक्ल ले चुका था और डीवाई पाटिल मेडिकल कॉलेज के फीजियोथिरेपी विभाग में सौरभ राणे अपनी इंटर्नशिप शिद्दत के साथ कर रहे...

मौत के मुंह से लौट आने का जज्बा
सौरभ राणे , डॉक्टर और मोटिवेटरSat, 04 Apr 2020 09:32 PM
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वह उम्र के उस मोड़ पर थे, जहां जिंदगी शायद सबसे हसीन एहसासों से आबाद होती है। करियर शक्ल ले चुका था और डीवाई पाटिल मेडिकल कॉलेज के फीजियोथिरेपी विभाग में सौरभ राणे अपनी इंटर्नशिप शिद्दत के साथ कर रहे थे। सुबह नौ से शाम चार बजे तक हॉस्पिटल, शाम में एक क्लिनिक में सेवा और फिर लाइबे्ररी तक फैली काफी व्यस्त दिनचर्या। मगर 21 की उम्र ही ऐसी है, जब ऊर्जा और उत्साह अपने चरम पर होते हैं। और जब लक्ष्य सामने हो, तो थकान भी कहां महसूस होती है?
डॉक्टरी के पेशे से जुड़े होने के कारण सौरभ राणे सेहत के मोर्चे पर एक सतर्क इंसान थे। वक्त पर खाना खाते, समय निकालकर जिम में वर्कआउट भी करते। 66 किलोग्राम वजन और 15 प्रतिशत ‘बॉडी फैट’ के साथ उनका स्वास्थ्य काफी संतुलित था। लेकिन कुछ चीजें आपके हाथ में नहीं होतीं और आप बस उन्हें जीने-भोगने को बाध्य होते हैं। सौरभ को बुखार हुआ और साथ में खांसी भी उठी। उन्होंने कुछ दवाइयां लीं और फिर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में दोबारा व्यस्त हो गए। 
मगर बुखार रह-रहकर आने लगा, कभी-कभी सीने में दर्द भी उठ आता था और वजन भी गिरने लगा। एक महीने के भीतर ही लगभग 16 किलो वजन गिर गया। डॉक्टर ने कहा- यह टीबी है। शुरू में सौरभ को यही लगा कि उनके खानदान में इसका कोई इतिहास नहीं, वह काफी सक्रिय हैं, उनकी उम्र भी अधिक नहीं, तो भला टीबी जैसा रोग उनको कैसे हो सकता है? खैर, इलाज चलता रहा और इस दौरान वह काम पर भी लौट आए। लगभग छह महीने के बाद सौरभ काफी गंभीर रूप से बीमार पडे़। उनका वजन अब तक 20 किलोग्राम घट चुका था। उन्होंने दूसरे डॉक्टर से संपर्क साधा। तमाम टेस्ट कराए गए। जांच से जो पता चला, उसे सुनकर उनके होश उड़ गए। वह ‘एक्सडीआर टीबी’ के बॉर्डर लाइन पर थे। यह टीबी की वह स्थिति है, जिसमें बहुत सारी दवाइयां काम नहीं करतीं। 
जाहिर है, काफी देर हो चुकी थी। उनके फेफडे़ का दूसरा हिस्सा भी काफी प्रभावित हो चुका था। सौरभ खुद एक डॉक्टर थे, वह इस बीमारी की गंभीरता को समझ रहे थे। वह जान रहे थे कि टीबी की ज्यादातर दवाएं अब उनके लिए बेमानी हो चुकी हैं। एक और बड़ी मुश्किल यह थी कि डॉक्टर उनकी हालत में तेज सुधार के लिए जो नई दवा चलाना चाह रहे थे, उसको बर्दाश्त करने लायक सौरभ का शरीर नहीं रह गया था, क्योंकि उनके दिल की धड़कनें काफी असामान्य हो गई थीं। 
अब डॉक्टर और सौरभ के पास कोई चारा न था। दोनों ने एक-दूसरे से वादा किया कि हर हालत में हमें यह जंग लड़नी है। इलाज काफी महंगा था। सौरभ को अगले छह महीने तक रोजाना इंजेक्शन लेना पड़ा और पूरे दो साल तक एक-दो नहीं, बीस-बीस दवाएं फांकनी पड़ीं। इन दवाओं के काफी साइड इफेक्ट होते हैं। चिड़चिड़ेपन में वह चीजों को फेंकते, तकिए में मुंह छिपाकर पूरी ताकत से चिल्लाते। सांस लेने में इतनी तकलीफ होती कि लगता, अब वह टूट जाएंगे, मगर हर बार मां आतीं और उन्हें बिखरने से बचा लेतीं।
फिर सौरभ ने ऑनलाइन लेख-ब्लॉग पढ़ना, वीडियो देखना शुरू किया और वहीं से उन्हें यह सूत्र मिला कि इस दुनिया में हम जीने के लिए आते हैं। अगर आप खुश रहेंगे, तो जिंदा भी रहेंगे। सौरभ ने तभी यह तय किया कि उम्मीद का दामन अब वह किसी सूरत में नहीं छोड़ेंगे। इलाज के दरम्यान ही उन्होंने मैराथन में हिस्सा लेने का फैसला किया। उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि कोर्ई उनकी मदद करेगा, लेकिन कुछ लोग थे, जो उनके साथ हर हाल में चलने की जिद पाले बैठे थे। सौरभ के सामने बड़ा सवाल यह था कि क्या वह इस रेस को पूरा कर भी पाएंगे? उन्होंने पूरा किया, और वह भी किसी मेडिकल सहायता के बगैर! 57 मिनट में 10 किलोमीटर। रेस खत्म होने के बाद उन्हें कहीं से यह महसूस नहीं हुआ कि एक वह मरीज हैं। सौरभ के भीतर एक उत्साही एथलीट पैदा हो चुका था। इलाज खत्म होने के दो महीने बाद ही सौरभ कांगड़ा में 20 हजार फीट की ऊंचाई पर थे।
भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा टीबी रोगी बसते हैं, लेकिन सबके पास सौरभ राणे जैसा सपोर्ट सिस्टम नहीं। काफी लोग तो संसाधनों के अभाव में दम तोड़ देते हैं, तो बहुत सारे मरीज गफलत में उस मोड़ तक चले जाते हैं, जहां से उनका लौटना नामुमकिन हो जाता है। इसलिए सौरभ ने सोचा कि भुक्तभोगी ज्यादा बेहतर मेंटर साबित हो सकते हैं। उनके जैसे विचार के कुछ लोगों ने मिलकर ‘सर्वाइवर्स अगेंस्ट टीबी’ का गठन किया। अब वह घूम-घूमकर लोगों को टीबी के प्रति जागरूक करते हैं। आज देश-दुनिया के हजारों लोग ऑनलाइन उनके वीडियो देखकर हौसला बटोर रहे हैं। 
हाल ही में अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जाएद ने बिल गेट्स की मौजूदगी में सौरभ राणे जैसे 15 नायकों को सम्मानित करते हुए कहा- ये हमारे आदर, हमारी सराहना और हम सबके सम्मान के हकदार हैं।
प्रस्तुति :  चंद्रकांत सिंह

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