जीने का एक मकसद होना चाहिए
दुनिया के विफल देशों का जब-जब जिक्र आता है, सोमालिया का नाम सबसे पहले जेहन में उभरता है। और इसके साथ ही एक सवाल भी नत्थी रहता है, आखिर वहां के लोग कैसे जीते होंगे? मगर वे जी भी रहे हैं और अपनी खातिर,...
दुनिया के विफल देशों का जब-जब जिक्र आता है, सोमालिया का नाम सबसे पहले जेहन में उभरता है। और इसके साथ ही एक सवाल भी नत्थी रहता है, आखिर वहां के लोग कैसे जीते होंगे? मगर वे जी भी रहे हैं और अपनी खातिर, सोमालिया की आने वाली नस्लों की खातिर जिंदगी से जंग भी लड़ रहे हैं। राजधानी मोगादिशु में ऐसे ही एक दिलेर दंपति के घर इल्वाद एल्मन का जन्म हुआ। आने वाले 22 दिसंबर को वह 31 साल की हो जाएंगी।
इल्वाद के उद्यमी पिता एल्मन अली अहमद 1990 के दशक में एक प्रखर शांतिवादी थे। उनकी अपनी मोटर-वर्कशॉप थी, जहां लोग गाड़ियां दुरुस्त कराने आया करते। सोमालिया के हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे थे। राजधानी तक गृह-युद्ध की लपटों से महफूज न थी। चार बेटियों के पिता अहमद मानते थे कि हालात बदलने को कोई बाहर से नहीं आएगा, सोमाली लोगों को ही इसकी पहल करनी होगी। खासकर किशोरों-नौजवानों की मुलाकात एक पुरअमन सोमालिया के सपने से करानी होगी।
अहमद ने नई नस्लों को प्रेरित करना शुरू कर दिया। उनका एक नारा उन दिनों बेहद चर्चित हुआ था- ‘बंदूक फेंको, कलम उठाओ।’ बंदूक छोड़ने वाले लड़ाकों के पुनर्वास के लिए उन्होंने एक टेक्निकल टे्रनिंग इंंस्टीट्यूट भी शुरू किया। काफी युवा अहमद की बातों से प्रभावित होने लगे थे। यह सब बागी गुटों को नहीं सुहाया।
उन्हें धमकियां मिलने लगीं। शुरू-शुरू में तो अहमद ने उन पर ध्यान नहीं दिया। मगर एक ऐसा मोड़ भी आया, जब उन्हें अपने परिवार का जीवन खतरे में पड़ता दिखा। अहमद को बडे़ भारी मन से यह कुबूल करना पड़ा कि परिवार को सोमालिया से निकालने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं। उन्होंने बीवी-बेटियों को तो कनाडा भेज दिया, पर खुद मोगादिशु में अपने मकसद में जुटे रहे। अहमद के परिवार को कनाडा में शरण मिल गई। मगर 9 मार्च, 1996 को घर के पास ही अहमद का कत्ल कर दिया गया।
इल्वाद एल्मन कनाडा के बेहद खुले, लोकतांत्रिक माहौल में बड़ी हुईं, वहीं पर उन्होंने इस दुनिया को जाना। उन तक सोमालिया से जुड़ी जो भी खबरें पहुंचतीं, वे सिर्फ खून-खराबे, अपहरण व बलात्कार से जुड़ी होतीं। उन खबरों को पढ़कर इल्वाद और उनकी बहनों को काफी तकलीफ पहुंचती और लगता कि सोमाली उन्हें बुला रहे हैं। उनकी परवरिश ऐसे माता-पिता ने की थी, जिनका मानना था कि जिंदगी का एक मकसद होना चाहिए।
आखिरकार अपनी मां के साथ इल्वाद वर्ष 2010 में सोमालिया लौट आईं, हालांकि उस समय भी मोगादिशु के कई इलाकों में अल-कायदा से जुड़े आतंकी संगठन अल-शबाब का दबदबा कायम था। लगभग 20 साल की इल्वाद ने मां के साथ मिलकर देश में बलात्कार की शिकार लड़कियों और किशोर लड़ाकों के पुनर्वास के लिए ‘एल्मन पीस सेंटर’ नाम से एक सहायता केंद्र की स्थापना की। सोमालिया में इस तरह का यह पहला केंद्र था।
इल्वाद चाहतीं, तो कनाडा में एक बिंदास जिंदगी जी सकती थीं, मगर उन्हें पिता के सपने को पूरा करना है। अपनी सहयोगी संस्था ‘सिस्टर सोमालिया’ के तहत उन्होंने दहशतगर्दों के शारीरिक जुल्म की शिकार छोटी बच्चियों और औरतों को मानसिक यंत्रणा से निकालने के लिए योग एवं कला का सहारा लिया। वह उनके पुनर्वास की व्यवस्था में जुट गईं। साल 2012 में सोमालिया ने अपना पहला टेक्नोलॉजी, इंटरटेनमेंट, डिजाइन कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया, जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर इल्वाद को बुलाया गया। इस मौके पर उन्होंने सोमालिया के नवनिर्माण में सिस्टर सोमालिया की कोशिशों को काफी प्रभावशाली तरीके से पेश किया।
बहादुर इल्वाद ने अपने मानवीय कामों से न सिर्फ राजधानी के आम और खास लोगों को प्रभावित किया, बल्कि सोमालिया के बाहर भी उनके अनुभव व नेतृत्व क्षमता को मान्यता मिली। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान के संगठन की नई पहल ‘एक्सट्रीमली टुगेदर’ के नौ युवा प्रतिनिधियों में से एक इल्वाद भी हैं, जो अन्नान के नेतृत्व में दुनिया भर में शांति की स्थापना के लिए काम कर रही हैं। शांति के प्रति इल्वाद की प्रतिबद्धता को देखते हुए 2015 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने नागरिक-सुरक्षा पर बहस में भाग लेने के लिए उन्हें आमंत्रित किया था। यह पहली बार था कि सिविल सोसायटी के किसी व्यक्ति को इस मुद्दे पर बोलने के लिए वहां न्योता गया हो। साल 2016 में तत्कालीन महासचिव बान की मून ने उन्हें युवा, शांति और सुरक्षा पर विशेष सलाहकार नियुक्त किया।कई वैश्विक सम्मानों से नवाजी जा चुकीं इल्वाद को बीबीसी ने हाल ही में वर्ष की 100 प्रेरक महिलाओं में शामिल किया है।
एक विफल देश के नागरिकों को कितनी बड़ी-बड़ी कीमतें चुकानी पड़ती हैं, इल्वाद की जिंदगी उसका एक बड़ा उदाहरण है। पिछले साल राजधानी मोगादिशु में उनकी बहन को भी गोली मार दी गई। मगर इल्वाद के शांति-प्रयास थमे नहीं, उसमें और मजबूती आ गई है।
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह