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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैदशकों की ज्यादती ने फौलादी बना दिया

दशकों की ज्यादती ने फौलादी बना दिया

शांति-समझौते के बाद 2005 में हुए चुनाव में एलन जॉनसन सरलीफ लाइबेरिया की राष्ट्रपति चुनी गईं। सरलीफ का यह चयन लाइबेरियाई लोगों के लिए किसी वरदान से कम न था, खासकर औरतों के लिए......

दशकों की ज्यादती ने फौलादी बना दिया
फासिया बोएना हैरिस, समाजसेवीSat, 16 Apr 2022 09:32 PM
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पश्चिमी दक्षिण अफ्रीका में एक छोटा-सा देश है लाइबेरिया। दशकों तक यह गृहयुद्ध में लिथड़ा रहा, और साल 2003 में शांति-समझौते के बाद ही वहां कुछ स्थिरता आ पाई। लेकिन तब तक अपनी आठ फीसदी आबादी को यह जातीय संघर्ष की भेंट चढ़ा चुका था। इस देश की अनगिनत बच्चियों और औरतों ने जो कुछ सहा-भोगा, वह बेहद खौफनाक था, क्योंकि ‘रेप’ वहां एक युद्ध-हथियार बन गया था। फासिया हैरिस इसी बर्बर सामाजिक माहौल में पलीं-बढ़ीं। आज वह 39 साल की हैं।

शांति-समझौते के बाद 2005 में हुए चुनाव में एलन जॉनसन सरलीफ लाइबेरिया की राष्ट्रपति चुनी गईं। सरलीफ का यह चयन लाइबेरियाई लोगों के लिए किसी वरदान से कम न था, खासकर औरतों के लिए। भीषण लैंगिक भेदभाव वाले इस देश की बच्चियों और ्त्रिरयों को प्रेरणा मिली कि वह भी कोशिश करें, तो एक इज्जतदार मुकाम पा सकती हैं। मगर फासिया को आत्मोत्कर्ष से अधिक पूरे स्त्री समुदाय की चिंता सता रही थी। बच्चियों-किशोरियों के साथ निर्मम यौन हिंसा की जैसी-जैसी कहानियां उन्हें देखने-सुनने को मिली थीं, उनसे वह बेचैन थीं। छोटी-छोटी बच्चियां पढ़ने-लिखने की उम्र में मां बन जाती थीं, और उनका जीवन दांव पर लग जा रहा था।
राष्ट्रपति हॉर्वर्ड में पढ़ी थीं और अर्थशास्त्र पर भी उनकी पकड़ थी, इसलिए वह जानती थीं कि आधी आबादी की हालत सुधारे बिना, उनका मुल्क तरक्की नहीं कर पाएगा। सरलीफ ने महिलाओं को प्रोत्साहित किया, मगर पारंपरिक समाज त्वरित बदलाव के लिए कतई तैयार न था। फासिया उन दिनों राजधानी मोनरोविया की ‘अफ्रीकन मेथोडिस्ट एपिसकपल यूनिवर्सिटी’ में पढ़ रही थीं। उन्हें लगा कि यही सही समय है, जब लैंगिक समानता व समावेशी विकास के लिए कोशिश की जाए। कुछ साथियों के साथ उन्होंने ‘पारामाउंट यंग वुमन इनीशिएटिव’ नाम का एक संगठन बनाया और लाचार लड़कियों की मदद के लिए चंदा इकट्ठा करना शुरू कर दिया। इस कोष से वह उन लड़कियों की मदद करने लगीं, जिनका परिवार आर्थिक तंगी के कारण उन्हें आगे पढ़ाने से इनकार कर देता या जिन पर किसी अन्य किस्म का कोई दबाव होता था।
लेकिन फासिया को जल्दी ही एहसास हो गया कि मां-बाप को जागरूक किए बिना बच्चियों को स्कूलों में रोका नहीं जा सकता। यह काम आसान नहीं था, क्योंकि बंद समाज हर नई पहल को संदेह की नजरों से ही देखता है। बहरहाल, फासिया अपनी टीम के साथ जन-जागरण के लिए जब गांवों में जातीं, तो वहां पर बच्चियों-औरतों की स्थिति देखकर सिहर उठती थीं। आठ-आठ साल की बच्चियां और सामूहिक दुष्कर्म का संताप! कई को उनके मां-बाप भी त्याग देते थे। मजबूरन देह-व्यापार ही उनके जीने का रास्ता बचता था।
फासिया ने इन बच्चियों की जंग लड़ने का फैसला किया। ्त्रिरयों को इंसाफ दिलाने के लिए उन्होंने पत्रकारिता को अपना हथियार बनाया। कैपिटल एफएम  पर अपने कार्यक्रम में वह न सिर्फ इन बेबस गरीब बच्चियों की पीड़ा देश-दुनिया को बतातीं, बल्कि उन्हें पढ़ने, आगे बढ़ने, और मिसाल बनने के लिए भी प्रेरित करती रहतीं। इस लड़ाई में मां और मौसी ने पूरा साथ दिया। फासिया की कार्यशालाओं का लोगों पर असर होता देख सामंती सोच वालों को दिक्कत होने लगी थी। पहले तो उन्होंने उन्हें धमकाने की कोशिश की, लेकिन जब फासिया नहीं डरीं, तो उन पर शारीरिक हमले भी किए गए। मगर इन हमलों ने उनके इरादों को और फौलादी बना दिया। वह और सक्रिय हो गईं। फासिया अब लाइबेरिया भर में घूम-घूमकर अपनी पढ़ाई मुकम्मल करने और स्कूल में किसी किस्म के यौन उत्पीड़न के खिलाफ बच्चियों को जागृत करने लगीं। यही नहीं, ‘लाइबेरियन फेमिनिस्ट फोरम’ के जरिये उन्होंने सरकार के विभिन्न अंगों और तमाम पेशेवर क्षेत्रों में औरतों की कम भागीदारी का मुद्दा भी उठाना शुरू कर दिया। उनकी बातें आधी आबादी को अपील करने लगी थीं। इसमें कोई दोराय नहीं कि राष्ट्रपति की कुरसी पर एक महिला के होने का प्रच्छन्न लाभ फासिया और उनकी टीम को मिल रहा था, पर पितृ-सत्तात्मक समाज अपने विशेषाधिकारों को इतनी आसानी से छोड़ने को तैयार न था। ऐसे मामलों में पुलिस का रवैया प्राय: टालू होता।
साल 2018 की बात है। एक अधेड़ उम्र की महिला के साथ दुष्कर्म की खबर ने फासिया को काफी आहत कर दिया। उन्होंने देश भर की औरतों का आह्वान किया कि वे मोनरोविया की सड़कों पर उतर अपने लिए आवाज उठाएं। लाइबेरिया के इतिहास में यह पहला मौका था, जब किसी गैर-राजनीतिक मुहिम का नेतृत्व एक महिला कर रही हो और भारी तादाद में महिला-पुरुष यौन हिंसा के विरुद्ध सड़कों पर उतर आएं। प्रशासन ने सोचा नहीं था कि इतने लोग रैली में उमड़ आएंगे। बहरहाल, जनवरी 2019 में निजाम बदल गया। जॉर्ज वेया नए राष्ट्रपति चुने गए। पर अचानक यौन हिंसा की घटनाएं फिर बढ़ गईं। अगस्त 2020 में फासिया एक बार फिर हजारों महिलाओं-पुरुषों के साथ मोनरोविया की सड़कों पर थीं।
पहले तो पुलिस-प्रशासन ने सख्ती दिखाने की कोशिश की। लेकिन फासिया के नेतृत्व में आंदोलनकारी तीन दिनों तक डटे रहे। फासिया के तेवर ने प्रशासन को कदम पीछे लेने को विवश कर दिया। राष्ट्रपति जॉर्ज वेया ने ‘रेप’ को ‘नेशनल इमरजेंसी’ घोषित कर लैंगिक हिंसा की जांच के लिए एक विशेष टास्क फोर्स गठित करने की घोषणा की। यकीनन, यह लाइबेरिया की महिलाओं की एक बड़ी जीत थी। फासिया की प्रतिबद्धता को पूरी दुनिया ने सराहा। इस वर्ष अमेरिका जब दुनिया की 12 सबसे साहसी औरतों का चुनाव कर रहा था, तब लाजिमी तौर पर उनमें एक नाम फासिया हैरिस का भी था। इस सम्मान को पाने वाली पहली लाइबेरियाई! 
प्रस्तुति :  चंद्रकांत सिंह 

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