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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैतारीख पर यह नाम अब हमेशा के लिए चस्पां है

तारीख पर यह नाम अब हमेशा के लिए चस्पां है

पचहत्तर सालों का एक संजीदा इंसान अपनी जिंदगी के खट्टे-मीठे अनुभवों से जो बर्दाश्त, ठहराव और गहराई बटोरता है, हमारे लोकतंत्र ने भी वे सारी खूबियां बटोरी हैं, पर कुछ लोग इसकी कद्र नहीं कर रहे, खासकर...

तारीख पर यह नाम अब हमेशा के लिए चस्पां है
Amitesh Pandeyनरगिस मोहम्मदी, पत्रकारSat, 07 Oct 2023 11:00 PM
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पचहत्तर सालों का एक संजीदा इंसान अपनी जिंदगी के खट्टे-मीठे अनुभवों से जो बर्दाश्त, ठहराव और गहराई बटोरता है, हमारे लोकतंत्र ने भी वे सारी खूबियां बटोरी हैं, पर कुछ लोग इसकी कद्र नहीं कर रहे, खासकर नई नस्ल के नौजवान। मगर आजादी और जम्हूरियत कितनी बड़ी नेमतें हैं, इसका अंदाज ईरानी पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी के संघर्ष से लगाइए। नरगिस को इस साल के नोबेल शांति सम्मान से नवाजा गया है। हालांकि, वह इस वक्त भी सलाखों के पीछे हैं!
सन् 1972 में जांजन सूबे के एक मध्यवर्गीय परिवार में नरगिस पैदा हुईं। पिता एक किसान थे, मगर ननिहाल सियासी था। यह वही दौर था, जब ईरान के निजाम मोहम्मद रजा शाह पहलवी की पश्चिमपरस्त नीतियों के खिलाफ मुल्क में असंतोष गहराता जा रहा था। नरगिस ने होश संभाला ही था कि ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति हो गई। शाह मुल्क छोड़कर अमेरिका चले गए थे और राजशाही की जगह तेहरान में एक इस्लामी गणराज्य वजूद में आ गया था, जिसकी हुकूमत की बागडोर मजहबी नेता खुमैनी के हाथों में आ गई। नरगिस के मामा और दो भाई भी इस विप्लव के शिकार बने। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
शाह चूंकि खुद स्विटजरलैंड से तालीमयाफ्ता थे, इसलिए उनके शासनकाल में महिलाओं को काफी आजादी हासिल थी। वे मनपसंद कपड़े पहन सकती थीं, फुटबॉल खेल सकती थीं, बल्कि तब वे मंत्री भी हुआ करती थीं; लड़कियों को पढ़ाई-लिखाई की सारी सहूलियतें हासिल थीं। नए गणराज्य में औरतों की पढ़ाई-लिखाई पर तो पाबंदी नहीं लगी, मगर उनके कई अधिकार उनसे छीन लिए गए। पहलवी शासनकाल में उनकी शादी की उम्र 18 साल थी, उसे फिर से घटाकर नौ साल कर दिया गया। वारिसी मिल्कियत में उनका हक खत्म कर दिया गया, उनके लिए ड्रेस कोड लागू किया गया, जिसमें सिर ढकने को कानूनन बाध्यकारी बना दिया गया। 
अजीब विडंबना थी। इल्म की रोशन दुनिया और जुल्म के स्याह समंदर से नरगिस का एक साथ सामना होने जा रहा था। मगर वह एक जहीन दिमाग लड़की थीं और बेहतर नतीजों के साथ स्कूल की जमात-दर-जमात सीढ़ियां चढ़ती गईं। काजविन यूनिवर्सिटी में ‘न्यूक्लियर फीजिक्स’ में दाखिला मिलना तब किसी लड़की के लिए इतराने की बात थी, मगर पढ़ाई के साथ-साथ नरगिस को यह एहसास हुआ कि जब दुनिया भर में महिलाओं को उनके हुकूक सौंपे जा रहे हैं, तब हमारे यहां उनका दमन क्यों हो रहा? नरगिस ने सुधार के हिमायती अखबारों में औरतों के हक में लिखना शुरू किया। वह अपने लेखों में सवाल उठातीं कि औरतों के साथ यह ज्यादती क्यों? वे अपना दुपट्टा संभालना जानती हैं, मर्दों की गैरत ही सड़कों पर लोटने लगे, तब कोई क्या करेगा?
नगरिस को कई तरफ से आगाह किया गया कि वह दुश्वारी मोल ले रही हैं। उनके पास एक नायाब डिग्री है और इस बिना पर उनके आगे संभावनाओं का पूरा वितान खुला था। वह चाहतीं, तो एक पेशेवर इंजीनियर के तौर पर दुनिया के किसी अन्य मुल्क में एक पुरसुकून जिंदगी जी सकती थीं, मगर यह उन ईरानी महिलाओं के साथ धोखा होता, जो पूरी औरत जमात के लिए कोड़े खा रही थीं। इन्हीं गतिविधियों के दौरान 1995 में नरगिस की मुलाकात तागी रहमानी से हुई। तागी भी महिलाओं के हक की बात कर रहे थे।
तागी का साथ मिला, तो इरादे फौलादी हो गए। नरगिस डिग्री लेकर तेहरान आ गई थीं। इंजीनियरिंग के साथ-साथ उनका लेखन व जन-जागरूकता का काम चलता रहा। साल 1999 में दोनों ने शादी कर ली। मगर निकाह के कुछ ही माह बीते होंगे, तागी रहमानी को सरकार की निंदा करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, फिर तो उन पर ऐसे-ऐसे मुकदमे ठोक दिए गए, जिनके कारण उनको कई साल की सजा हो गई। नरगिस जुड़वां बच्चों की मां बनीं, मगर वह सरकार के आगे तब भी नहीं झुकीं, बल्कि साल 2003 में वह ‘डिफेंस ऑफ ह्यूमन राइट सेंटर’ से जुड़ गईं। इस संगठन के तहत उन्होंने खास तौर पर ऐसे लोगों के परिजनों की काफी मदद की, जिनके अपने सरकारी जुल्म के शिकार हुए थे और उनका पुरसाहाल कोई न था। नरगिस की इस सेवा से शासन के लोग इतने परेशान हुए कि उन्होंने उनके नियोक्ता पर दबाव डालकर उन्हें नौकरी से निकलवा दिया।
मगर वह गजब की साहसी हैं। उनका अभियान तब भी नहीं रुका। उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया, छोड़ा गया, पर जुलाई 2011 में जब  गिरफ्तार किया गया, तो वर्षों की सजा सुनाई गई। उनकी गिरफ्तारी और सजा की तिथियां इतनी बेतरतीब हैं कि शायद उन्हें भी अब याद न हो कि कब किस आरोप में उन्हें सलाखों के पीछे भेजा गया और कब जमानत दी गई! 14 वर्षों की सजा काटकर जब पति 2011 में जेल से बाहर निकले, तो एक बार फिर उन पर दबाव बढ़ने लगा। आखिरकार दोनों बच्चों की खातिर तागी रहमानी ने ईरान छोड़ दिया। 2015 से बच्चे भी उनके पास पेरिस आ गए।  
मगर नरगिस ईरान में ही रहीं। कैद में रहते हुए उन्होंने वहां की महिला कैदियों की दर्दनाक हालत की जैसी-जैसी रिपोर्टें भेजीं, उसने ईरान सरकार के सारे झूठ को बेनकाब कर दिया। नरगिस को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। उनके जिस्म पर अब तक 154 कोडे़ बरसाए जा चुके हैं, 30 से भी ज्यादा वर्षों की कैद की सजा सुनाई जा चुकी है, पर वह एक अनथक योद्धा हैं। सलाखों के पीछे से वह किताबें, रिपोर्ताज लिखती रही हैं। कहते हैं, इंसान की जितनी जिंदगी लिखी होती है, मौत तब तक खुद उसकी हिफाजत करती है। जाना तो सबको एक दिन है, मगर नरगिस मोहम्मदी की तरह फख्र कितनों के पास होगा? तारीख पर यह नाम अब हमेशा के लिए चस्पां है!
प्रस्तुति :  चंद्रकांत सिंह 

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