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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैएक सितारा अभी उगा है फुटबॉल के आकाश में

एक सितारा अभी उगा है फुटबॉल के आकाश में

स्टेडियम का शोर ऊंचा होता जा रहा था। केरल टीम के कोच बिनो जॉर्ज ने इस नाजुक मोड़ पर उस खिलाड़ी को मैदान में उतारा, जो कभी जिला स्तरीय टीम का भी सदस्य न रहा, यानी टी के जेसिन...............

एक सितारा अभी उगा है फुटबॉल के आकाश में
टी के जेसिन, फुटबॉलरSat, 07 May 2022 08:11 PM
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क्या सुयोग है! देश अपनी आजादी की 75वीं सालगिरह मनाने जा रहा है, दूसरी तरफ 75वीं संतोष ट्रॉफी प्रतियोगिता ने फुटबॉल के दीवानों को एक ऐसा नाम दिया है, जो यदि अपनी चमक बरकरार रख पाया, तो यकीनन वह देश की प्रतिष्ठा बढ़ाएगा। मोहम्मद सलीम, बाइचुंग भूटिया, सुनील छेत्री, गुरप्रीत संधू और सुब्रत पाल ने फुटबॉल में भारत की संभावनाओं की जो ज्योति जलाई है, केरल के 22 वर्षीय टी के जेसिन की खेल प्रतिभा उसे और मजबूत बनाती है। देश के फुटबॉल विशेषज्ञ उनकी आमद को एक सितारे का जन्म बता रहे हैं, अब उन्होंने कमाल ही ऐसा किया है।

केरल के मलप्पुरम में बीते 28 अप्रैल को मेजबान सूबे और कर्नाटक के बीच संतोष ट्रॉफी का सेमीफाइनल खेला जा रहा था। मंजेरी स्टेडियम फुटबॉलप्रेमियों से खचाखच भरा हुआ था। लगभग 30 मिनट का खेल हो चुका था। कर्नाटक की टीम केरल पर एक गोल की बढ़त बना चुकी थी। स्टेेडियम का शोर ऊंचा होता जा रहा था। केरल टीम के कोच बिनो जॉर्ज ने इस नाजुक मोड़ पर उस खिलाड़ी को मैदान में उतारा, जो कभी जिला स्तरीय टीम का भी सदस्य नहीं रहा, यानी टी के जेसिन। यह एक पारखी द्रोणाचार्य का आत्म-विश्वास था, जो अपने अर्जुन के कौशल को बखूबी जानता था।
शिष्य ने गुरु को निराश नहीं किया। अगले पंद्रह मिनट में ही जेसिन ने मैच का रुख बदल दिया। उनके तीन गोलों से मेहमान टीम का शीराजा बिखर चुका था। इस मैच में पांच गोल दागकर उन्होंने अपनी टीम को ही अजेय बढ़त नहीं दिलाई, बल्कि सबको चौंका दिया। संतोष ट्रॉफी के इतिहास में उनके पांच गोल एक कीर्तिमान हैं। किसी स्थानापन्न खिलाड़ी ने अब तक यह कारनामा नहीं अंजाम दिया था।
मलप्पुरम जिले में छोटा-सा शहर है निलंबूर। यहीं पर 19 फरवरी, 2000 को मोहम्मद निसार और सुनयना के घर जेसिन पैदा हुए। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पिता निसार को परिवार की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए ही काफी मशक्कत करनी पड़ती, लेकिन एक चाहत हमेशा उनके दिल में ठांठे मारती, ‘काश! मैं अपने बेेटे को फुटबॉलर बना पाता।’ दरअसल, निसार खुद फुटबॉलर बनना चाहते थे, मगर कुछ तो हालात ने साथ नहीं दिया और कोई राह दिखाने वाला भी नहीं मिला। लेकिन जेसिन के पास पिता थे।  
जेसिन भी बचपन से खेल-कूद में काफी अच्छे थे, इसलिए शुरू में ही निसार ने बेटे को यह घुट्टी पिला दी कि वह उनकी वाली गलती नहीं दोहराएंगे और किसी एक खेल पर ही फोकस करेंगे। जेसिन की दादी ने अपने बेटे को फुटबॉलर न बन पाने की कसक के साथ जीते हुए देखा था, इसलिए उन्होंने भी पोते को प्रेरित करना शुरू कर दिया। निसार ऑटो रिक्शा चलाते हैं। जब उनके बच्चे बड़े होने लगे, तो उनकी जरूरतेें भी बढ़ने लगीं, लेकिन पूरी मशक्कत के बाद भी ऑटो की कमाई कम पड़ ही जाती थी। मजबूरन उन्हें खाड़ी के देश जाना पड़ा, ताकि वह बच्चों की अच्छी परवरिश लायक कमा सकें।
निसार के विदेश जाने के बाद उनकी मां अमीना ने जेसिन का खूब ख्याल रखा, जैसे उन्होंने अपने बेटे के सपने को दिल से लगा लिया था। वह बिना नागा पोते को निलंबूर फुटबॉल एकेडमी ले जाया करतीं। लेकिन जब जेसिन आठवीं कक्षा में थे, तभी दादी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। जेसिन को दादी की मौत का गहरा सदमा लगा था, मगर फुटबॉल ने उन्हें बिखरने नहीं दिया। केरल में खेल का बुनियादी ढांचा अच्छा है, स्कूल स्तर से ही इसे काफी गंभीरता से लिया जाता रहा है और इसका फायदा जेसिन को भी मिला।   
लेकिन जब वह 10वीं की परीक्षा पास नहीं कर पाए, तो उन्हें किसी अच्छे स्कूल में दाखिला भला कैसे मिलता? लगभग दो वर्ष तक उन्हें खेलों से दूर-दूर ही रहना पड़ा। उस वक्त जेसिन को लगा था कि अब उनका फुटबॉलर भी खत्म हो गया, क्योंकि निजी स्कूल में दाखिले के बाद उन्हें अपना पूरा ध्यान पढ़ाई को देना पड़ा। जब वह 18 साल के हुए, तब फुटबॉल के लिहाज से केरल का सबसे बेहतर संस्थान माने जाने वाले एमईएस कॉलेज के कोचों की नजर उन पर पड़ी, लेकिन किस्मत ने उनकी एक और कठिन परीक्षा ले ली। इस कॉलेज में दाखिले के लिए जरूरी 12वीं की परीक्षा भी वह नहीं निकाल सके। एक विषय में अनुत्तीर्ण रह गए थे। और जब पास हुए, तब तक इस कॉलेज में दाखिले की प्रक्रिया बंद हो चुकी थी।
लेकिन उनकी प्रतिभा से प्रभावित एमईएस कॉलेज के खेल शिक्षकों ने कुछ ही महीने बाद जेसिन को कॉलेज में दाखिला दिला दिया। यूनिवर्सिटी टूर्नामेंट में फुटबॉल खेल रहेे इस दुबले-पतले फुटबॉलर पर ‘केरल यूनाइटेड फुटबॉल क्लब के कोचों की नजर पड़ी और वे जेसिन को मुख्य कोच बिनो जॉर्ज के पास ले गए। बिनो सर की परीक्षा में पास होने के बाद जेसिन क्लब की टीम से जुड़ गए। उन्हें अब एक सही मंच मिल चुका था, जहां उन्होंने अपनी खेल प्रतिभा को खूब निखारा। 28 अप्रैल का लाजवाब प्रदर्शन इसका प्रमाण है। इस प्रदर्शन ने जेसिन को केरल के घर-घर में ही नहीं, हिन्दुस्तान के हर फुटबॉलप्रेमी के दिल में बिठा दिया है। जेसिन के पिता को मलाल नहीं है कि बेटे के इस कमाल को वह देख नहीं सके, क्योंकि अपने काम को पूरा करने में ही उनका वक्त निकल गया और वह स्टेडियम नहीं पहुंच पाए। बेटे ने उन्हें सुर्खरू तो कर ही दिया है। वह निहाल हैं।     
ज्यादा दिन नहीं हुए, जब इस फुटबॉलर को महज 7,000 रुपये मासिक पारिश्रमिक मिला करता था, कोच बिनो जॉर्ज ने उन्हेें एक बेशकीमती हीरा बना दिया। बकौल बिनो, एटीके मोहन बागान जेसिन के लिए आज 22 लाख रुपये केरल यूनाइटेड को देने को तैयार है।  
प्रस्तुति :  चंद्रकांत सिंह 

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