व्हीलचेयर से ड्रीमचेयर तक का प्रेरणादायी सफर
इस चरम आत्मकेंद्रित समय में, जब सबको अपना ही योगदान अद्वितीय और जीवन-संघर्ष सबसे मुश्किल लगने लगा है, दूसरों को अवसाद और निराशा की गहरी खाई से बाहर खींचने वाली कोई प्रेरक कहानी सुनने को मिले, तो...

इस चरम आत्मकेंद्रित समय में, जब सबको अपना ही योगदान अद्वितीय और जीवन-संघर्ष सबसे मुश्किल लगने लगा है, दूसरों को अवसाद और निराशा की गहरी खाई से बाहर खींचने वाली कोई प्रेरक कहानी सुनने को मिले, तो परिवार, मित्रता, सहयोग जैसे मानव मूल्यों में आस्था गहरी हो उठती है। उद्यमी और ‘मोटिवेशनल स्पीकर’ जयकिशन शर्मा की जीवन-यात्रा इन सभी मूल्यों की पे्ररक दास्तां है।
आज से करीब 40 वर्ष पूर्व अहमदाबाद के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जयकिशन पैदा हुए। पिता साइकिल पर ‘आइस क्यूब’ बेचने का काम करते थे। बाद में उन्होंने एक कॉपरेटिव बैंक में भी नौकरी की। उनका सपना था कि जयकिशन बेहतर से बेहतर तालीम हासिल करें। ऑस्ट्रेलिया से ऊंची डिग्री हासिल करने का अपना ख्वाब तो वह पूरा न कर सके थे, मगर बेटे को किसी प्रतिष्ठित विदेशी यूनिवर्सिटी में भेजने का उन्होंने पक्का मन बना रखा था। अहमदाबाद के फिरदौस अमृत सेंटर स्कूल से बारहवीं करने के बाद जय ने मोदी नगर (यूपी) के एक प्रतिष्ठित निजी संस्थान से फैशन डिजाइनिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की थी।
डिग्री मिलते ही जय को दिल्ली की एक कंपनी में डिजाइनर की नौकरी मिल गई थी। मगर उनकी दिली चाहत थी कि वह अहमदाबाद में अपना एक फैशन स्टूडियो बनाएं। लिहाजा कुछ माह नौकरी करने के बाद वह अपने शहर लौट गए। मगर जब पिता की अधूरी हसरत के बारे में पता चला, तो वह उसका मान रखते हुए साल 2007 में बैलरैट यूनिवर्सिटी से ‘इंटरनेशनल बिजनेस स्टडीज’ में मास्टर्स करने ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए। मेलबर्न आए जय को अभी कुछ ही दिन बीते थे कि पिता की मृत्यु हो गई।
जय को गहरा सदमा लगा था। जिनके सपने को साकार करने के लिए वह अपने देश से इतनी दूर आए थे, वही नहीं रहे। पिता के अंतिम संस्कार के लिए अहमदाबाद आए जय को जरा-सा भी ऑस्टे्रलिया लौटने का मन नहीं था। उन्हें यह भी चिंता थी कि उनके जाने के बाद मां और बहन अकेली पड़ जाएंगी, मगर छोटी बहन ने पिता की दिली इच्छा का हवाला देते हुए मास्टर्स पूरा करने के लिए उन्हें प्रेरित किया। बैलरैट यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हुए जय ने गैस और बिजली आपूर्ति करने वाली एक कंपनी के लिए बतौर सेल्स रिप्रेजेंटेटिव पार्ट टाइम काम भी किया। इससे लोगों के मिजाज और उम्मीदों को समझने की उन्हें गहरी दृष्टि मिली।
साल 2009 में मास्टर्स की डिग्री के साथ एक शानदार भविष्य बांहे पसारे खड़ा था। प्रतिष्ठित ऊर्जा कंपनी ‘एजीएल’ में मैनेजर जयकिशन को लगा, मानो दुनिया अब मुट्ठी में आ गई है। अगले ही साल उन्होंने अपनी प्रेमिका (रश्मि) को पत्नी बनाने का फैसला किया। जय को नौकरी करते हुए अभी पांच वर्ष भी नहीं हुए होंगे कि 2014 में ‘पीपुल एनर्जी’ कंपनी ने उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें एक बडे़ पद पर नियुक्त कर लिया। उनकी सालाना तनख्वाह लगभग सवा छह करोड़ रुपये थी। परिश्रम, पदोन्नति और प्रेम से भरपूर जिंदगी ने कभी किसी दूसरी सोच को जन्म लेने ही नहीं दिया।
अक्तूबर 2015 की बात है। जय और रश्मि मेलबर्न में नए घर में आ गए थे, बल्कि दो महीने पहले ही वे एक बेटी के माता-पिता भी बने थे। दोनों बहुत खुश थे। मगर 11 तारीख को जब जय दफ्तर पहंुचे, तो उन्हें बताया गया कि घाटे के कारण कंपनी ने उनके काम को ‘आउटसोर्स’ करने का फैसला किया है। अचानक झटका लगा था, तो समझ में ही नहीं आया कि रश्मि को कैसे बताएं, नौकरी चली गई है। एक ऑस्ट्रेलियाई दोस्त से जिक्र किया, तो उसने अगले दिन अपने घर बुलाया, ताकि संभावनाएं टटोली जा सकें।
अगले दिन जब वह दोस्त के घर जा रहे थे, तभी एक कार ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी। होश आया, तो सामने रश्मि नवजात बेटी को गोद में लिए फूट-फूटकर रो रही थीं। जय पत्नी के आंसू पोंछने के लिए बैठना चाहते थे, मगर कमर के नीचे तो कोई जुंबिश ही नहीं थी। न्यूरोसर्जन ने सांत्वना देते हुए उनसे स्पष्ट कहा, महज पांच फीसदी उम्मीद है कि वह कभी अपने पांव पर खडे़ भी हो पाएंगे। घंटों के ऑपरेशन और तीन महीने तक आईसीयू में रहने के बाद जय को अगले चार माह ‘रिहैब सेंटर’ में गुजारने पडे़। जब वह घर लौटे, तो अकेलापन उन्हें काफी सालने लगा। रश्मि चूंकि एक फैशन डिजाइनर थीं, इस मुश्किल वक्त में उन्होंने परिवार की मदद के लिए काम करना शुरू कर दिया था। जय को कहां पता था कि हॉस्पिटल से घर तक का खर्च कैसे चल रहा है? अहमदाबाद में मां इधर-उधर से कर्ज ले-लेकर मेलबर्न भिजवाती रहीं, ताकि बेटे-बहू की हरसंभव मदद हो सके।
हताशा के उन क्षणों में कम से कम तीन बार जय टूटे। उन्हें लगता, इस जिंदा लाश को ढोने का क्या फायदा? इसको खत्म कर देने से कम से कम उनके अपनों की जिंदगी तो कुछ आसान हो जाएगी। मगर मां और पत्नी हर बार उन्हें निराशा की खोह से खींच लातीं। मांशपेशियों में ताकत वापस लाने के लिए जय की हाइड्रोथेरेपी जारी रही। करीब तीन वर्षों के बाद दिसंबर 2018 में पहली बार दाएं पैर के अंगूठे ने हरकत की। फरवरी 2019 में जय ने पहला कदम बढ़ाया और अब तो वह बिना सहारे के कुछ कदम चल लेते हैं।
व्हीलचेयर को ड्रीमचेयर में तब्दील कर चुके जय ने घर से काम करते हुए न सिर्फ अपनी मां द्वारा लिए गए करीब साठ लाख रुपये के कर्ज चुकाए, बल्कि 2020 से शुरू उनकी ऑनलाइन बिजनेस टे्रनिंग कंपनी ‘शर्माट्रिक्स’ का सालाना कारोबार डेढ़ करोड़ रुपये को पार कर गया है। वह ड्रीमचेयर क्लब के संस्थापक हैं, जो हताश लोगों को कहकहों की दुनिया में खींचने का काम कर रहा है। जय ने कम से कम 70 लोगों को गहरे अवसाद से उबारा है!
इस चरम आत्मकेंद्रित समय में, जब सबको अपना ही योगदान अद्वितीय और जीवन-संघर्ष सबसे मुश्किल लगने लगा है, दूसरों को अवसाद और निराशा की गहरी खाई से बाहर खींचने वाली कोई प्रेरक कहानी सुनने को मिले, तो परिवार, मित्रता, सहयोग जैसे मानव मूल्यों में आस्था गहरी हो उठती है। उद्यमी और ‘मोटिवेशनल स्पीकर’ जयकिशन शर्मा की जीवन-यात्रा इन सभी मूल्यों की पे्ररक दास्तां है।
आज से करीब 40 वर्ष पूर्व अहमदाबाद के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जयकिशन पैदा हुए। पिता साइकिल पर ‘आइस क्यूब’ बेचने का काम करते थे। बाद में उन्होंने एक कॉपरेटिव बैंक में भी नौकरी की। उनका सपना था कि जयकिशन बेहतर से बेहतर तालीम हासिल करें। ऑस्ट्रेलिया से ऊंची डिग्री हासिल करने का अपना ख्वाब तो वह पूरा न कर सके थे, मगर बेटे को किसी प्रतिष्ठित विदेशी यूनिवर्सिटी में भेजने का उन्होंने पक्का मन बना रखा था। अहमदाबाद के फिरदौस अमृत सेंटर स्कूल से बारहवीं करने के बाद जय ने मोदी नगर (यूपी) के एक प्रतिष्ठित निजी संस्थान से फैशन डिजाइनिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की थी।
डिग्री मिलते ही जय को दिल्ली की एक कंपनी में डिजाइनर की नौकरी मिल गई थी। मगर उनकी दिली चाहत थी कि वह अहमदाबाद में अपना एक फैशन स्टूडियो बनाएं। लिहाजा कुछ माह नौकरी करने के बाद वह अपने शहर लौट गए। मगर जब पिता की अधूरी हसरत के बारे में पता चला, तो वह उसका मान रखते हुए साल 2007 में बैलरैट यूनिवर्सिटी से ‘इंटरनेशनल बिजनेस स्टडीज’ में मास्टर्स करने ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए। मेलबर्न आए जय को अभी कुछ ही दिन बीते थे कि पिता की मृत्यु हो गई।
जय को गहरा सदमा लगा था। जिनके सपने को साकार करने के लिए वह अपने देश से इतनी दूर आए थे, वही नहीं रहे। पिता के अंतिम संस्कार के लिए अहमदाबाद आए जय को जरा-सा भी ऑस्टे्रलिया लौटने का मन नहीं था। उन्हें यह भी चिंता थी कि उनके जाने के बाद मां और बहन अकेली पड़ जाएंगी, मगर छोटी बहन ने पिता की दिली इच्छा का हवाला देते हुए मास्टर्स पूरा करने के लिए उन्हें प्रेरित किया। बैलरैट यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हुए जय ने गैस और बिजली आपूर्ति करने वाली एक कंपनी के लिए बतौर सेल्स रिप्रेजेंटेटिव पार्ट टाइम काम भी किया। इससे लोगों के मिजाज और उम्मीदों को समझने की उन्हें गहरी दृष्टि मिली।
साल 2009 में मास्टर्स की डिग्री के साथ एक शानदार भविष्य बांहे पसारे खड़ा था। प्रतिष्ठित ऊर्जा कंपनी ‘एजीएल’ में मैनेजर जयकिशन को लगा, मानो दुनिया अब मुट्ठी में आ गई है। अगले ही साल उन्होंने अपनी प्रेमिका (रश्मि) को पत्नी बनाने का फैसला किया। जय को नौकरी करते हुए अभी पांच वर्ष भी नहीं हुए होंगे कि 2014 में ‘पीपुल एनर्जी’ कंपनी ने उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें एक बडे़ पद पर नियुक्त कर लिया। उनकी सालाना तनख्वाह लगभग सवा छह करोड़ रुपये थी। परिश्रम, पदोन्नति और प्रेम से भरपूर जिंदगी ने कभी किसी दूसरी सोच को जन्म लेने ही नहीं दिया।
अक्तूबर 2015 की बात है। जय और रश्मि मेलबर्न में नए घर में आ गए थे, बल्कि दो महीने पहले ही वे एक बेटी के माता-पिता भी बने थे। दोनों बहुत खुश थे। मगर 11 तारीख को जब जय दफ्तर पहंुचे, तो उन्हें बताया गया कि घाटे के कारण कंपनी ने उनके काम को ‘आउटसोर्स’ करने का फैसला किया है। अचानक झटका लगा था, तो समझ में ही नहीं आया कि रश्मि को कैसे बताएं, नौकरी चली गई है। एक ऑस्ट्रेलियाई दोस्त से जिक्र किया, तो उसने अगले दिन अपने घर बुलाया, ताकि संभावनाएं टटोली जा सकें।
अगले दिन जब वह दोस्त के घर जा रहे थे, तभी एक कार ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी। होश आया, तो सामने रश्मि नवजात बेटी को गोद में लिए फूट-फूटकर रो रही थीं। जय पत्नी के आंसू पोंछने के लिए बैठना चाहते थे, मगर कमर के नीचे तो कोई जुंबिश ही नहीं थी। न्यूरोसर्जन ने सांत्वना देते हुए उनसे स्पष्ट कहा, महज पांच फीसदी उम्मीद है कि वह कभी अपने पांव पर खडे़ भी हो पाएंगे। घंटों के ऑपरेशन और तीन महीने तक आईसीयू में रहने के बाद जय को अगले चार माह ‘रिहैब सेंटर’ में गुजारने पडे़। जब वह घर लौटे, तो अकेलापन उन्हें काफी सालने लगा। रश्मि चूंकि एक फैशन डिजाइनर थीं, इस मुश्किल वक्त में उन्होंने परिवार की मदद के लिए काम करना शुरू कर दिया था। जय को कहां पता था कि हॉस्पिटल से घर तक का खर्च कैसे चल रहा है? अहमदाबाद में मां इधर-उधर से कर्ज ले-लेकर मेलबर्न भिजवाती रहीं, ताकि बेटे-बहू की हरसंभव मदद हो सके।
हताशा के उन क्षणों में कम से कम तीन बार जय टूटे। उन्हें लगता, इस जिंदा लाश को ढोने का क्या फायदा? इसको खत्म कर देने से कम से कम उनके अपनों की जिंदगी तो कुछ आसान हो जाएगी। मगर मां और पत्नी हर बार उन्हें निराशा की खोह से खींच लातीं। मांशपेशियों में ताकत वापस लाने के लिए जय की हाइड्रोथेरेपी जारी रही। करीब तीन वर्षों के बाद दिसंबर 2018 में पहली बार दाएं पैर के अंगूठे ने हरकत की। फरवरी 2019 में जय ने पहला कदम बढ़ाया और अब तो वह बिना सहारे के कुछ कदम चल लेते हैं।
व्हीलचेयर को ड्रीमचेयर में तब्दील कर चुके जय ने घर से काम करते हुए न सिर्फ अपनी मां द्वारा लिए गए करीब साठ लाख रुपये के कर्ज चुकाए, बल्कि 2020 से शुरू उनकी ऑनलाइन बिजनेस टे्रनिंग कंपनी ‘शर्माट्रिक्स’ का सालाना कारोबार डेढ़ करोड़ रुपये को पार कर गया है। वह ड्रीमचेयर क्लब के संस्थापक हैं, जो हताश लोगों को कहकहों की दुनिया में खींचने का काम कर रहा है। जय ने कम से कम 70 लोगों को गहरे अवसाद से उबारा है!
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह
