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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैएक सामाजिक चुप्पी थी, जो चुभती थी

एक सामाजिक चुप्पी थी, जो चुभती थी

यूरोप का एक बहुत छोटा-सा देश है फिनलैंड। महज 55 लाख की आबादी वाला देश। मगर तरक्कीपसंद इतना कि इंसानियत के कुछ बहुुमूल्य सबक पूरी दुनिया इससे सीख सकती है। फिनलैंड की सच्ची नुमाइंदगी करती हैं सन्ना...

एक सामाजिक चुप्पी थी, जो चुभती थी
सन्ना मारीन,प्रधानमंत्री, फिनलैंडSun, 03 May 2020 09:16 AM
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यूरोप का एक बहुत छोटा-सा देश है फिनलैंड। महज 55 लाख की आबादी वाला देश। मगर तरक्कीपसंद इतना कि इंसानियत के कुछ बहुुमूल्य सबक पूरी दुनिया इससे सीख सकती है। फिनलैंड की सच्ची नुमाइंदगी करती हैं सन्ना मारीन। इस वक्त संसार की सबसे नौजवान प्रधानमंत्री! अपने देश के इतिहास की तो खैर हैं ही। राजधानी हेलसिंकी में 16 नवंबर, 1985 को मारीन ने अपनी आंखें खोली थीं। उनका बचपन सुखद नहीं रहा। घर की माली हालत अच्छी नहीं थी और ऊपर से पिता शराबकश! जाहिर है, मारीन के माता-पिता के रिश्ते खराब होते गए और फिर वह मोड़ भी आया, जहां से दोनों की राहें हमेशा के लिए जुदा हो गईं। सन्ना मारीन तब बहुत छोटी थीं। कई शहरों में भटकने के बाद आखिरकार उनके परिवार ने तामपेरे में बसने का फैसला किया।
जैविक पिता से अलगाव के बाद मारीन की मां अपनी महिला पार्टनर के साथ रहने लगी थीं। इन्हीं दोनों ने मारीन की परवरिश की। यूरोप के खुले समाज में ऐसे रिश्तों को कानूनी मान्यता तो मिल चुकी थी, मगर पिछली सदी के अंत-अंत तक एक किस्म की हिचक जरूर बनी रही। मानवाधिकारों की बढ़-चढ़कर पैरोकारी करने वाले यूरोपीय देशों में भी मुख्यधारा को ऐसे परिवारों (रेनबो फैमिली) को स्वीकारने में वक्त लगा। बल्कि 21वीं सदी में आकर ही ये परिवार सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बने। 
मारीन ने अपनी स्कूली जिंदगी के  दौरान ही महसूस किया कि ऐसे परिवारों के बच्चों के साथ किस तरह का भेदभाव होता है। खुद उनके शब्द हैं, ‘एक चुप्पी थी, जो बहुत सालती थी। उपेक्षा के कारण अक्षम होने का बोध होता। हमें सामान्य परिवार की तरह नहीं देखा जाता। हालांकि मुझे ज्यादा परेशान नहीं किया गया। यहां तक कि मैं जब छोटी थी, तब भी बहुत जिद्दी और बेबाक थी। मैंने किसी चीज को बहुत सहजता से स्वीकार नहीं किया।’             
मगर मारीन की निगाह में उनका परिवार मुकम्मल था। होता भी क्यों नहीं, मां अपनी बेटी के हरेक फैसले के साथ चट्टान की तरह खड़ी जो रहीं। दोनों एक-दूसरे का संबल बनी रहीं। चूंकि मारीन के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए पढ़ाई के दौरान उन्हें एक बेकरी में भी काम करना पड़ा। साल 2004 में उन्होंने हाई स्कूल की अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी। मगर इस दौरान खुद जैसे बच्चों के प्रति दूसरों के रवैये ने मारीन के अंदर एक खलिश पैदा कर दी थी। वह इस गैर-बराबरी को स्वीकार करने को कतई तैयार न थीं। 
हाई स्कूल के बाद उच्च शिक्षा पाने के लिए वह तामपेरे यूनिवर्सिटी पहुंचीं। उन्होंने ‘एडमिनिस्ट्रेटिव साइंस’ में दाखिला लिया। मारीन यहीं पर ‘सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ फिनलैंड’ की युवा शाखा से जुड़ीं। वह जान गई थीं कि इंसान-इंसान के बीच भेदभाव से परे एक समदर्शी समाज की रचना के लिए राजनीति में आना और सफल होना बहुत जरूरी है। मगर जिस आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि से वह आती थीं, उसमें यह काफी मुश्किल था। साल 2010 से 2012 तक वह सोशल डेमोक्रेटिक यूथ की उपाध्यक्ष रहीं। अपने खानदान से यूनिवर्सिटी पहुंचने वाली पहली सदस्य मारीन सोशल डेमोक्रेटिक यूथ की भी पहली उपाध्यक्ष थीं। इस पद पर रहते हुए जो अनुभव हासिल हुए, उसने उनमें जबर्दस्त आत्मविश्वास का संचार किया। फिर उनका हौसला कभी नहीं डगमगाया। 
साल 2012 में उनके सियासी सफर का बाकायदा आगाज हुआ। मारीन तामपेरे सीटी कौंसिल के लिए चुनी गईं, और चंद महीनों के भीतर ही परिषद ने 27 साल की इस युवती पर भरोसा जताते हुए अपने मुखिया का ओहदा उन्हें सौंप दिया। बतौर कौंसिल चीफ मारीन ने तामपेरे वासियों की जिस शिद्दत से सेवा की, उसने उन्हें पूरे फिनलैंड में मशहूर कर दिया। नतीजतन, इस कार्यकाल के दौरान ही 2015 में वह सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के टिकट पर फिनलैंड की संसद के लिए चुनी गईं। पिछले साल मई में वह संसद के लिए दोबारा चुनी गईं। उन्हें परिवहन व संचार मंत्रालय का जिम्मा  सौंपा गया था। मगर दिसंबर उनके लिए एक ऐसी सौगात लिए इंतजार कर रहा था, जिसकी ख्वाहिश शायद सभी राजनेता पालते हैं, मगर अरमान किसी-किसी का पूरा होता है। तेजी से बदले घटनाक्रम में वह फिनलैंड की प्रधानमंत्री चुन ली गईं।
चौंतीस वर्ष की मारीन ने जब अपने मुल्क के प्रधानमंत्री का ओहदा संभाला था, तब उन्हें अंदाजा भी न होगा कि चंद महीनों में ही उनके सामने एक ऐसा कठिन इम्तिहान होगा, जो उन्हें अपने लोगों की नजरों में सुर्खरू भी कर सकता है या पामाल भी। कोरोना ने फिनलैंड को अपनी जद में लिया। मगर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को लेकर पहले से चौकस मारीन ने हालात को काफी सूझबूझ और साहस के साथ संभाला है। उनके नेतृत्व की सराहना दुनिया भर में हो रही है। आज यदि संसार के तपे-तपाए काबिल शासनाध्यक्षों की सूची में सन्ना मारीन का नाम सम्मान से लिया जा रहा है, तो यकीनन यह फिनलैंड के लिए फख्र की बात है और उसके नागरिकों के लिए सुकून की भी।
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह

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