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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैपहल तो कीजिए, सूरत जरूर बदलेगी

पहल तो कीजिए, सूरत जरूर बदलेगी

सन 1947 में देश का जब बंटवारा हुआ, तब करोड़ों लोग दर-बदर हुए। अपनी जड़ों से उखड़कर यहां-वहां बसे परिवारों में से कई ऐसे भी रहे, जो न हिन्दुस्तान में टिक पाए, और न पाकिस्तान में। तकदीर शहर-दर-शहर भटकाती...

पहल तो कीजिए, सूरत जरूर बदलेगी
राज पंजाबी अमेरिकी डॉक्टर व समाजसेवीSat, 02 Jan 2021 09:57 PM
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सन 1947 में देश का जब बंटवारा हुआ, तब करोड़ों लोग दर-बदर हुए। अपनी जड़ों से उखड़कर यहां-वहां बसे परिवारों में से कई ऐसे भी रहे, जो न हिन्दुस्तान में टिक पाए, और न पाकिस्तान में। तकदीर शहर-दर-शहर भटकाती रही और फिर किसी तीसरे देश में जाकर उन्हें ठिकाना मिला। राज पंजाबी के दादा सिंध से उजड़कर मुंबई आए थे। मगर नया शहर, नए मिजाज के लोग, दिनोंदिन खत्म होती जमापूंजी और रोजी-रोटी की कोई सूरत न बनती देखकर वह इंदौर आ गए। इंदौर में भी उनकी उम्मीदों को ठोस आधार न मिला और आखिरकार सत्तर के दशक में राज के माता-पिता ने पश्चिम अफ्रीकी देश लाइबेरिया का रुख कर लिया।
लाइबेरिया की राजधानी मोनरोविया में ही राज पैदा हुए। सन् 1989 की बात है। नौ साल के राज तब चौथी कक्षा में थे। पूरी दुनिया क्रिसमस की तैयारियों में जुटी थी, मगर मोनरोविया की फिजाओं में तनाव और आशंकाएं गहराती जा रही थीं। दरअसल, देश के दूसरे हिस्से में गृहयुद्ध छिड़ गया था और बागी लड़ाके राजधानी की तरफ दिन-ब-दिन बढ़ते चले आ रहे थे। स्कूल-कॉलेज बंद हो गए थे और शहर के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को भी बागियों ने अपने कब्जे में ले लिया था।
नौ साल के बच्चे को ठीक-ठीक समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उनका स्कूल क्यों बंद कर दिया गया? लोग इतने दहशत में क्यों हैं और वे क्यों अपना घर खाली कर भाग रहे हैं? राज इन सवालों के जवाब से वाकिफ हो पाते कि मां ने अचानक एक सुबह कहा- ‘बेटे, जल्दी-जल्दी अपने सामान पैक करो, हमें फौरन निकलना पडे़गा।’ जितना कुछ ढोया जा सकता था, पंजाबी परिवार ने समेटा और सब जहाज की तरफ भागे। 
वहां का नजारा बेहद त्रासद था। दर्द सबका एक ही था, मगर वहां वह दो कतारों में बंट गया था। एक लाइन विमान के प्रवेश द्वार की तरफ जाती थी, तो दूसरी, उसके सामने बराबर में लगी थी। राज जिस कतार में थे, वह सीधी विमान के प्रवेश द्वार से जुड़ी थी। दूसरी लाइन में खडे़ लाइबेरियाई भागकर राज की कतार में आ जाना चाहते थे, मगर फौज सख्ती से उन्हें पीछे धकेल देती थी। उनमें कई ऐसे बच्चे थे, जिनके कंधों पर स्कूली बैग लटक रहे थे। उन्हें वहां से निकलने की अनुमति नहीं थी। किशोर आंखों में जैसे वह बेचारगी हमेशा के लिए नक्श हो गई।
एक बार फिर परिवार दर-बदर हो चुका था। मोनरोविया से भागकर वे लोग पहले सियरा लियोन पहुंचे और फिर कुछ वक्त बाद एक मित्र परिवार की मदद से नॉर्थ कैरोलिना (अमेरिका) के हाई प्वॉइंट शहर में राज के परिवार को पनाह मिल गई। वहां के लोग बहुत अच्छे थे। उन्होंने पंजाबी परिवार को न सिर्फ खुले दिल से अपनाया, बल्कि उसका मार्गदर्शन भी किया। राज के पिता को कोल्ड ड्रिंक की दुकान खोलने में भी उनकी मदद मिली और राज की पढ़ाई-लिखाई में भी। किशोर बेटा सप्ताह के अंत में जब पिता का हाथ बंटाने दुकान पर आता, तो वह अक्सर उसे एक मंत्र घुट्टी की तरह पिलाते- कोई भी स्थिति स्थाई नहीं होती। 
माता-पिता के संघर्ष को राज ने गहराई से महसूस किया। जिस सपने को लाइबेरिया की जंग ने ध्वस्त कर दिया था, उसे साकार करने का सुनहरा मौका अब उनके सामने था और उन्होंने इस अवसर को बेजा नहीं जाने दिया। कुछ वर्षों की साधना से वे दिन भी आए, जब यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना ने मेडिसिन में ग्रेजुएट और जॉन हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ने महामारी विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री से राज को नवाजा।
मेडिकल छात्र के रूप में ही करीब 15 वर्षों के बाद राज एक बार फिर उस मुल्क लौटे, जहां वह पैदा हुए थे, उनका बचपन बीता था, और उन्होंने होश संभाला था। लाइबेरिया में जंग से तबाही के निशान जगह-जगह मौजूद थे। राज को यह देखकर बड़ी निराशा हुई कि लगभग 40 लाख की आबादी की देखभाल सिर्फ 51 डॉक्टरों के हवाले है। सुदूर इलाकों में बसे लोग सिर्फ इसलिए दम तोड़ देते हैं, क्योंकि डॉक्टरों तक उनकी पहुंच ही नहीं है।
ऐसे ही एक सुदूर गांव में दो साल के मासूम की मलेरिया से मौत ने राज को द्रवित कर दिया। उसे वक्त पर यदि डॉक्टर के पास लाया गया होता, तो वह जरूर बच जाता। राज ने दोस्तों की मदद, अपनी शादी के उपहार आदि से छह हजार डॉलर जमा किए और सन 2007 में ‘लास्ट माइल हेल्थ’ संस्था की शुरुआत की। इसके तहत उन्होंने सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करने का काम किया, ताकि सुदूर इलाकों के बीमार लोगों तक बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं पहुंच सकें। इस नेक पहल ने सबको आकर्षित किया। राज के कार्यों से प्रभावित बिल गेट्स उनकी मदद के लिए आगे आए।
इस संगठन के तले अब तक 29,400 नौजवान सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा में प्रशिक्षण लेकर जनसेवा से जुड़ चुके हैं। लाखों घरों से उनका संपर्क हो चुका है। लाइबेरिया में सुदूर इलाकों के पांच साल तक के बच्चों की देखभाल में 40 फीसदी का इजाफा हो चुका है। 
प्रस्तुति :  चंद्रकांत सिंह

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