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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैकिसी अफसोस के साथ जिंदगी क्या गुजारना

किसी अफसोस के साथ जिंदगी क्या गुजारना

कई दिनों बाद जब चेतना लौटी, तब घरवालों और दोस्तों ने बताया कि उनका हेलिकॉप्टर एक अन्य हेलिकॉप्टर से टकरा गया था। वह पिछले छह दिनों से बेहोश थे, और उनका सह-पायलट अब इस दुनिया में नहीं है।

किसी अफसोस के साथ जिंदगी क्या गुजारना
नोअम गेशोनी, पैराओलंपियनSat, 02 Apr 2022 09:22 PM
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आंखें खुलीं, तो वह बिस्तर पर थे। सब कुछ धुंधला-धुंधला सा दिख रहा था। कमरे की दीवारें, उसमें पसरी रोशनी, उसके परदे, कुछ भी तो जाना-पहचाना नहीं था। नहीं, यह उनका बिस्तर नहीं था। दिमाग पर जब-जब वह जोर डालते, जिस्म के पोर-पोर से उठने वाला असह्य दर्द उन्हें चेतना-शून्य कर देता। कमरे में बीप-बीप की लगातार उठने वाली आवाज ने जल्द ही नोअम गेशोनी को बता दिया कि वह अस्पताल में हैं। उस वक्त उनके मुंह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी और शरीर के लगभग सभी अंग तरह-तरह के तारों से बिंधे हुए थे। आखिर 24 साल के उस नौजवान फौजी के साथ  क्या हुआ था?
कई दिनों बाद जब चेतना लौटी, तब घरवालों और दोस्तों ने बताया कि उनका हेलिकॉप्टर एक अन्य हेलिकॉप्टर से टकरा गया था। वह पिछले छह दिनों से बेहोश थे, और उनका सह-पायलट अब इस दुनिया में नहीं है। नोअम की आंखों से आंसू लुढ़क पड़े थे। यह कैसी लाचारी थी, वह अपने दिवंगत साथी के परिजनों को गले भी नहीं लगा सकते! बार-बार उसके कहकहे याद आने लगे थे। मगर नोअम जानते थे कि फौजियों की जिंदगी में ऐसी स्मृतियों का वक्फा लंबा नहीं होता। लेकिन असह्य शारीरिक पीड़ा के बीच अस्पताल में नोअम को अभी काफी दिन गुजारने थे और डॉक्टरों की टीम एक मुफीद वक्त का इंतजार कर रही थी।
और वह दिन भी आया, जब नोअम को बताया गया कि उनके दोनों हाथ, बायां कंधा, कूल्हा, बाईं कोहनी, पसली की कई हड्डियां टूट गई हैं, और बायां पैर लकवाग्रस्त हो चुका है। डॉक्टरों को उनके पूरे शरीर में जगह-जगह प्लेटें लगानी पड़ी थीं। अगले कुछ पल सन्नाटे के थे। उन थोड़े पलों में ही होशमंद उम्र के पिछले सारे साल काफी तेजी से घूम गए। केफार साबा शहर के एक सामान्य इजरायली परिवार में पैदा नोअम का बचपन काफी खुशगवार बीता था। बचपन से ही खेल-कूद में सक्रिय रहे नोअम पढ़ाई-लिखाई में भी काफी अच्छे थे और हमेशा अच्छे दर्जे के साथ आगे बढ़ते गए। इसीलिए अपने मनपसंद फ्लाइट  स्कूल सेे अपाची हेलिकॉप्टर पायलट बनकर वह बाहर निकले, और दूसरे लेबनान युद्ध के दौरान जुलाई 2006 में मुल्क की सेवा करते हुए उनका हेलिकॉप्टर 6,000 फीट की ऊंचाई पर टकराकर गिर गया था।
उस रात जिंदगी ने एक अजीब मोड़ ले ली थी। नोअम के अगले छह महीने अस्पताल में ही बीते। उन महीनों में कई रातें बिना नींद के बसर हुईं। कुछ सवाल थे, जो उनका पीछा छोड़ ही नहीं रहे थे- अगर यह सब न हुआ होता, तो अभी वह क्या कर रहे होते? आखिर उनके साथ ही यह क्यों हुआ? वह तो बुरे इंसान नहीं थे, फिर उन्हें यह सब क्यों भोगना पड़ रहा है? किसी सवाल का कोई जवाब नहीं मिल पा रहा था और बेचैनी बढ़ती जाती थी। फिर एक दिन दिवंगत सह-पायलट के माता-पिता नोअम से मिलने अस्पताल आए। बेटे को गंवा देने की पीड़ा उनकी आंखों में ठहर सी गई थी, फिर भी वे नोअम को हौसला देने आए थे। उनके जाने के बाद ही नोअम के आत्मालाप के सवाल बदल गए- क्या हुआ होता, अगर उस सीट पर मैं बैठा होता? मेरे माता-पिता को कैसा लगता, यदि उनके बेटे की मौत हुई होती?
उस वक्त तक वह सिर्फ नकारात्मक सवालों से जूझते रहे थे, उनके पास जो कुछ बचा हुआ है, उस तरफ तो ध्यान ही नहीं गया था। और उस रात नोअम ने तय किया कि वह नकारात्मक ख्यालों के जरिये खुद को और ज्यादा तकलीफ नहीं देंगे। लेकिन इस नई स्थिति से कैसे निपटें, इसका कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। वह तो चलने-फिरने के भी काबिल नहीं बचे थे। अपने से कुछ खा-पी भी नहीं सकते थे। लेकिन अब अफसोस में जाया करने के लिए उनके पास वक्त नहीं था। 24 की उम्र में नोअम ने एक नन्हे बच्चे की तरह चलने की कोशिश आरंभ की। बायां पैर तो बेजान हो चुका था, वह उससे कुछ नहीं कर सकते थे, इसलिए दाहिने पैर की ऊर्जा पर फोकस करना शुरू किया। 
यह वाकई काफी तकलीफदेह सफर था। वह बार-बार व्हीलचेयर से गिर पड़ते, हड्डियों का दर्द अक्सर उभर आता, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता नोअम गेशोनी अपनी सीमाओं को शिकस्त देने में कामयाब होने लगे। और ढाई साल के बाद ही वह न सिर्फ अपने पैरों पर खड़े हो सकते थे, बल्कि चलने-फिरने भी लगे। वर्तमान के मोर्चे पर तो नोअम ने फतह हासिल कर ली थी, पर सवाल अब भविष्य का था। वह ‘रिहैबिटेशन सेंटर’ पहुंचे, जहां उन्हें ऐसे कई सारे लोगों से मिलने, उनके बारे में जानने का मौका मिला, जो गंभीर चोटों व मानसिक यंत्रणा के दौर से निकलकर सहज जिंदगी की तरफ लौट आए थे। कभी न पूरा हो सकने वाले शारीरिक नुकसान के बावजूद उनके भीतर की सकारात्मक ऊर्जा ने नोअम पर जादुई असर डाला- शारीरिक कमियों के बावजूद एक खुशहाल जिंदगी जरूर गुजारी जा सकती है।
उन्होंने अपनी रुचि के नए-पुराने कई कामों पर विचार किया और अंतत: व्हीलचेयर टेनिस को अपने लिए चुना। शुरू-शुरू में थोड़ी हिचक हुई कि शायद न खेल पाएं, लेकिन फिर दिमाग ने कहा- किसी अफसोस के साथ क्या जीना? नोअम ने कोशिश शुरू कर दी। शुरू-शुरू में वह गिरे, चोटिल भी हुए, लेकिन उस हादसे के छह साल बाद लंदन पैराओलंपिक में वह इजरायल की नुमाइंदगी कर रहे थे। वहां नोअम ने एकल प्रतिस्पद्र्धा में स्वर्ण और युगल प्रतिस्पद्र्धा में कांस्य पदक जीता। 
अब दुनिया भर से उन्हें व्याख्यानों के लिए बुलावा आता है, नोअम घूम-घूमकर लोगों को प्रेरित करते हैं। इन दिनों वह इजरायल के दिव्यांग बच्चों को टेनिस सिखाने के साथ-साथ गरीब बच्चों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। 
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह 

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