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Hindi News ओपिनियन जीना इसी का नाम हैभय और भेदभाव खत्म होने चाहिए 

भय और भेदभाव खत्म होने चाहिए 

इल्हान बहुत छोटी थीं, जब मां चल बसीं। सात भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं। बिन मां के यह बच्ची कैसे पलेगी, इस सवाल से परिवार में सब परेशान थे। पापा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? काफी समय...

भय और भेदभाव खत्म होने चाहिए 
इल्हान उमर Sat, 10 Nov 2018 09:22 PM
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इल्हान बहुत छोटी थीं, जब मां चल बसीं। सात भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं। बिन मां के यह बच्ची कैसे पलेगी, इस सवाल से परिवार में सब परेशान थे। पापा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? काफी समय लगा परिवार को इस सदमे से उबरने में। धीरे-धीरे इल्हान ने मां के बिना जीन सीख लिया। पापा और दादा ने उनकी परवरिश की। बड़े भाई-बहन भी  प्यार करते थे, पर दादा की तो वह चहेती थीं। दादा सोमालिया के यातायात विभाग में नौकरी करते थे। उन्होंने नन्ही पोती की हर छोटी-बड़ी जरूरत का पूरा ख्याल रखा। उनकी जिंदगी पटरी पर लौट ही रही थी कि देश में हालात बिगड़ने लगे।  

अफ्रीकी देश सोमालिया लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता की चपेट में रहा। इसका खामियाजा उसकी जनता को भुगतना पड़ा। वहां तमाम लोग भूख से तड़पकर मर गए। इनमें बड़ी संख्या बच्चों की थी। हिंसा में हजारों लोग मारे गए, लाखों बेघर हो गए। राजधानी मोगादीशू भयानक हिंसा की चपेट में थी। इल्हान का परिवार वहीं रहता था। स्कूल-कॉलेज बंद पड़े थे। दुकानें, मकान जलकर राख में तब्दील हो चुके थे।  लोग जान बचाने के लिए भाग रहे थे।  

देखत-देखते पूरे सोमालिया में गृह युद्ध फैल गया। लाखों लोग पड़ोसी मुल्कों में शरण लेने को मजबूर हो गए। इल्हान के परिवार ने भी देश छोड़ने का फैसला किया। घर छोड़ना आसान नहीं था। पिताजी टीचर थे। वह चाहते थे कि किसी सूरत में बच्चों की पढ़ाई न छूटे। पर वहां तो जान बचाना ही मुश्किल था।  

यह 1991 की बात है। सोमालिया छोड़कर वे लोग केन्या पहुंचे। वहां पहले से काफी संख्या में सोमालियाई मूल के लोग मौजूद थे। एक शरणार्थी शिविर में उन्हें भी जगह मिल गई। मुश्किलें कम न थीं वहां भी, मगर जान तो सुरक्षित थी। यही वह दौर था, जब इल्हान को राजनीति और सामाजिक मसलों को समझने का मौका मिला। उनके दादा अक्सर लोगों के संग लोकतंत्र और तानाशाही जैसे मुद्दों पर चर्चा किया करते थे। नन्ही इल्हान ध्यान से उनकी बातें सुनती थीं और उनसे सवाल भी करतीं। इल्हान कहती हैं, दादाजी तानाशाही के खिलाफ थे। वह लोकतंत्र समर्थक थे। मैं अक्सर उनसे राजनीति पर चर्चा करती। उन्हीं की वजह से राजनीति में दिलचस्पी लेने लगी। 

करीब चार साल तक उनका परिवार केन्या में रहा। अब पापा को बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी थी। वह चाहते थे कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, पर शरणार्थी शिविर में रहकर यह संभव न था। साल 1995 में वह परिवार के संग अमेरिका आ गए। इल्हान अब 12 साल की हो चुकी थीं। कुछ दिन वे लोग वर्जीनिया प्रांत के अर्लिंगटन इलाके में रहे। जाहिर है, इस नए मुल्क का माहौल केन्या और सोमालिया से बहुत अलग था। बेटी को लेकर पापा ने बडे़ सपने देख रखे थे। वहां पहंुचते ही वह स्कूल में उसका दाखिला करने की कोशिश में जुट गए। सबसे बड़ी दिक्कत थी भाषा की। परिवार में किसी को अंग्रेजी नहीं आती थी। ऐसे में, लोगों से मिलने और बातचीत करने में बड़ी मुश्किल होती थी। इल्हान को अंग्रेजी क्लास में भेजा गया। उन्होंने तीन महीने के अंदर अंग्रेजी बोलना और लिखना सीख लिया। इल्हान जानती थीं कि केन्या से अमेरिका तक पहुंचने के लिए घरवालों ने कितनी मेहनत की है। अब उनके सामने खुद को साबित करने की चुनौती थी। वह पापा और दादा की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहती थीं। इसलिए दिन-रात कड़ी मेहनत की। शुरुआत से ही वह पढ़ाई में अव्वल आती रहीं। 

इल्हान के दादा सामाजिक रूप से काफी जागरूक शख्स थे। वह अक्सर प्रवासी संगठनों की बैठकों में जाया करते। वहां लोग शरणार्थी व प्रवासी समस्याओं और लोकतंत्र जैसे मुद्दों पर चर्चा करते थे। उन्हें अंग्रेजी समझ नहीं आती थी, इसलिए पोती को भी अपने संग ले जाते। इल्हान अंग्रेजी चर्चा का अनुवाद कर उन्हें सोमालियाई भाषा में समझाती थीं। धीरे-धीरे उन्हें भी इन बैठकों में मजा आने लगा। फिर वह खुद चर्चा में भाग लेने लगीं। अब वह समझ चुकी थीं कि उनके देश में बरबादी की असली वजह कुशल नेतृत्व का अभाव था। उन्होंने राजनीति में करियर बनाने का फैसला किया। 
साल 2011 में उन्होंने नॉर्थ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी से राजनीतिशास्त्र में स्नातक किया। पढ़ाई के साथ ही इल्हान आपराधिक न्यायिक मामलों में सुधार और न्यूनतम मजदूरी जैसे मुद्दों पर आवाज उठाने लगीं। उन्हें डेमोक्रेट पार्टी की विचारधारा पसंद थी, इसलिए इस पार्टी से जुड़ गईं। पिछले साल वह मिनेसोटा की प्रतिनिधि सभा के लिए चुनी गईं। इल्हान अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पहुंचने वाली पहली सोमालियाई-अमेरिकी मुस्लिम महिला हैं। पिछले सप्ताह मध्यावधि चुनाव में वह अमेरिकी कांग्रेस के लिए चुनी गईं। इल्हान कहती हैं, मेरी कोशिश होगी कि दुनिया शरणार्थियों के दर्द को समझे। मैं चाहती हंू कि शरणार्थियों और प्रवासियों को भी सम्मान से जीने का मौका मिले। मैं इस भेदभाव के खिलाफ हमेशा आवाज उठाती रहूंगी। 

प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

 

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