पति का घर छोड़ा, पंडवानी नहीं छोड़ी
छत्तीसगढ़ में भिलाई से लगभग 15 किलोमीटर दूर गनियारी गांव में 24 अप्रैल, 1956 को जन्मी तीजनबाई अपने माता-पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी थीं। पिता हुनुकलाल परधा और माता सुखवती की माली हालत अच्छी नहीं...
छत्तीसगढ़ में भिलाई से लगभग 15 किलोमीटर दूर गनियारी गांव में 24 अप्रैल, 1956 को जन्मी तीजनबाई अपने माता-पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी थीं। पिता हुनुकलाल परधा और माता सुखवती की माली हालत अच्छी नहीं थी। तीजन जिस जनजाति में पैदा हुई थीं, उसका मूल पेशा शहद उतारना, चिड़ियां पकड़ना, चटाई-झाड़ू आदि बनाना था। उस दौर में, जब सामान्य वर्ग की लड़कियों पर कई तरह की सामाजिक पाबंदियां आयद थीं, तब तीजन की शिक्षा की कौन सोचता? उनके हिस्से भी घर के काम और छोटे-भाई बहनों की देखभाल की जिम्मेदारियां आनी थीं, सो वे आईं। लेकिन तीजन को ऊपर वाले ने नैसर्गिक प्रतिभा से नवाजा था। अपने नाना को वह महाभारत की कहानियां गाते-सुनाते देखतीं, तो उन्हें बहुत अच्छा लगता। धीरे-धीरे ये कहानियां तीजन को कंठस्थ होने लगीं। वह छिप-छिपकर इसे गाने के अभ्यास करतीं। मगर तीजन की मां को उनका गाना बिल्कुल पसंद नहीं था। मां ने जब-जब उन्हें गाते पकड़ा, उनके साथ काफी कठोर सुलूक किया। तीजन कहती हैं, ‘मुझे बंद कर दिया जाता और भूखा रखा जाता था। कई बार तो मां मेरे कंठ तक अपनी उंगलियां घुसा देती थी, ताकि मेरा गाना बंद हो जाए। मगर मैं कहां रुकने वाली थी? मुझे पंडवानी के अलावा कुछ और सूझता ही न था।’
तीजन के हुनर को उनके नाना बृजलाल ने सबसे पहले पहचाना। वह तीजन को पंडवानी गाना सिखाते थे। इसके लिए उन्हें घर वालों की कटु आलोचनाएं भी सुननी पड़ती थीं। बृजलाल छत्तीसगढ़ी लेखक सबल सिंह चौहान की महाभारत की कहानियां तीजन को सुनाते, जिसे वह याद करती जातीं। बाद में उमेद सिंह देशमुख से उन्होंने गायन का अनौपचारिक प्रशिक्षण लिया। पर उनकी जिंदगी की दुश्वारियां आगे उनका इम्तहान लेने के लिए खड़ी थीं।
महज 12 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई। ससुराल की उनकी बिरादरी को यह कतई मंजूर न था कि औरत होकर वह पंडवानी गाएं। उस जनजाति में सिर्फ मर्दों को ‘कापालिक पंडवानी’ गाने की इजाजत थी। कापालिक विधा में कहानी को खड़े होकर अभिनय और नृत्य के साथ प्रस्तुत किया जाता है। उनके पहले औरतें ‘वेदमती शैली’ में पंडवानी गातीं। इसमें बैठकर कथा-गायन होता है। बहरहाल, तीजन कहां हार मानने वाली थीं? अमूमन रात के भोजन के बाद पंडवानी का प्रदर्शन होता और वह इसके लिए घर से निकल जातीं। एक रात वह भीम से जुड़ी कोई कथा सुना रही थीं, तभी वहां उनके पति उन्हें मारने पहुंच गए, लेकिन भीम की भूमिका में मग्न तीजन ने अपने इकतारे को ही गदा बना लिया और पति को दे मारा। लिहाजा, उनका अलगाव हो गया। उन्हें घर और बिरादरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। लेकिन तीजन एक कर्मठ युवती थीं। उस छोटी उम्र में उन्होंने अपने लिए एक झोंपड़ी बनाई। पड़ोसियों के घर से बर्तन मांगे, रसद मांगी और अपने बूते पर जीने की ओर बढ़ चलीं। वह पति के घर नहीं लौटीं और न ही पंडवानी गाना छोड़ा। धीरे-धीरे उनके अंदाज को लोकप्रियता मिलने लगी। लोग उन्हें अपने यहां बुलाने लगे।
तीजन जब 13 साल की थीं, तभी उन्हें दुर्ग जिले के चंद्रखुरी गांव से सार्वजनिक प्रदर्शन का पहला न्योता मिला। आहिस्ता-आहिस्ता उनकी शोहरत बढ़ती चली गई। हालांकि वह दौर खुले मंच पर लड़कियों के प्रदर्शन के लिहाज से काफी मुश्किल था। लोग उनका मजाक उड़ाते और उन पर तरह-तरह की फब्तियां कसते। लेकिन एक दिन उन्हें प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने सुना और फिर तो उनके फन को बड़ा मंच भी मिला। बाद में तीजनबाई ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। वह बड़े उत्साह के साथ बताती हैं, ‘इंंदिराजी ने मुझे अपने पास बुलाया और कहा, महाभारत गाती हो? मैंने कहा, पंडवानी सुनाती हूं, महाभारत नहीं कराती। वह हंस पड़ीं और फिर उन्होंने मेरी पीठ को थपथपाया। मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं वह दिन भूल नहीं सकती।’
देश ने अपनी माटी की इस बेटी को भरपूर मान दिया। 1988 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। तीजन याद करती हैं कि ‘वेंकटरमनजी के हाथों वह सम्मान मुझे मिला था। मेरे लिए वह बहुत बड़ा दिन था।’
बचपन में छिंद (ताड़ के पत्तों) से झाड़ू बनाने वाली तीजन फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन जैसे तमाम बड़े देशों में अपनी पंडवानी की प्रस्तुति दे चुकी हैं और उनके हिस्से तमाम इनाम आए हैं। कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें डी लिट की उपाधि दी हैै। 1995 में जहां उन्हें संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार मिला, तो 2003 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया। हाल ही में उन्हें जापान के सबसे प्रतिष्ठित कला सम्मान ‘फुकुओका आट्र्स ऐंड कल्चर प्राइज’ से सम्मानित किया गया है। तीजन को अंतरराष्ट्रीय स्तर का सम्मान पहली बार मिला है। अब तक सिर्फ 10 भारतीय हस्तियों को यह पुरस्कार मिला है। प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह