मां का अपमान हमारी सभ्यता पर सीधा वार
हिन्दुस्तानी तहजीब में मां और संतान का रिश्ता जीवन का सबसे पवित्र, सर्वाधिक अनमोल रिश्ता है। मां ही उसकी पहली गुरु हैं, मां ही पहला देवता हैं। यहां के हरेक बच्चे को मातृदेवो भव का संस्कार दिया जाता है। इसीलिए जब बिहार के दरभंगा में वोटर अधिकार यात्रा के दरमियान….

शाजिया इल्मी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा
हिन्दुस्तानी तहजीब में मां और संतान का रिश्ता जीवन का सबसे पवित्र, सर्वाधिक अनमोल रिश्ता है। मां ही उसकी पहली गुरु हैं, मां ही पहला देवता हैं। यहां के हरेक बच्चे को मातृदेवो भव का संस्कार दिया जाता है। इसीलिए जब बिहार के दरभंगा में वोटर अधिकार यात्रा के दरमियान कांग्रेस-राजद गठबंधन के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत माता को लेकर अभद्र टिप्पणी की गई, तो देश भर के लोग हैरान रह गए। यह एक बेटे का नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष का अपमान था। मां भारती का निरादर था!
ऐसे प्रकरण से स्वाभाविक ही कोई पुत्र आहत होगा। मगर प्रधानमंत्री की आंखों से निकले आंसू कतई व्यर्थ नहीं जाएंगे। ये आंसू केवल निजी वेदना नहीं हैं, बल्कि ये देश की करोड़ों माताओं की पीड़ा हैं। आज का विपक्ष झूठ और दुष्प्रचार का सैलाब बहाने की कोशिश कर रहा है। आरोप लगाना, अफवाहें फैलाना और कीचड़ उछालना, यही उसकी राजनीति के आधार हैं। मगर उसका सैलाब प्रधानमंत्री की पीड़ा के आगे टिक नहीं सकता। उनकी आंखों से झरे आंसू झूठ की सारी दीवारें ढहा देते हैं।
सारा देश जानता है कि प्रधानमंत्री की माता जी ने अत्यंत गरीबी और कठिन परिस्थितियों में अपने बच्चों की परवरिश की, उन्हें संस्कार दिए और ईमानदारी व मेहनत के मूल्य सिखाए। उनके जीवन में देश की हर उस मां की झलक मिल जाती है, चाहे वे खेतों में काम करने वाली माएं हों, मजदूर बस्तियों की माएं हों या गृहिणी की भूमिका निभाती हों। ऐसे में, किसी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी द्वारा उनके बारे में अपशब्द कहना न केवल प्रधानमंत्री का, बल्कि देश की हर मां का अपमान है।
हमें यहां यह भी समझने की जरूरत है कि यह अपमान किसी एक धर्म या जाति की मां का नहीं है। चाहे उनको अम्मा कहें, अम्मी, माता या मम्मी पुकारें, सबका सम्मान एक समान है और हरेक मां का लाल इस कसम के साथ खड़ा है कि इस अपमान का बदला अवश्य लिया जाएगा। सबसे शर्मनाक बात यह है कि अपने मंच से हुए इस अपराध के लिए अब तक न तो राहुल गांधी ने और न ही तेजस्वी यादव ने क्षमा मांगी है। यह अहंकार है। यह वही सोच है, जिसमें वोटबैंक के लिए किसी मां और महिला की गरिमा को रौंदा जा सकता है। किसी भी सभ्य समाज में राजनीति का मूल धर्म विचारों की लड़ाई, नीतियों पर बहस है। इसलिए यह केवल देश के शीर्ष पद पर आरूढ़ व्यक्ति की माताजी पर हमला नहीं है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार करने की चेष्टा है।
इस घटना ने एक और सच्चाई उजागर की है। हमारे देश का विपक्ष लोकतंत्र की लड़ाई को वोट के अधिकार तक सीमित समझ रहा है। लेकिन भारत की जनता का संघर्ष इससे कहीं बड़ा है। यह संघर्ष केवल चुनाव जीतने का नहीं है, बल्कि उस सत्ता को बचाने का भी है, जो जनसेवा के लिए है, जन-भावनाओं का सम्मान करने के लिए है और देश की दुखियारी माओं के आंसू पोंछने के लिए है।
भारतवर्ष में मां भारती, गौ माता और जननी- तीनों की पूजा हमारे संस्कार का हिस्सा हैं। इसीलिए एक मां पर कीचड़ उछालना हमारी सभ्यता पर सीधा वार है। प्रधानमंत्री की माता पर की गई अभद्र टिप्पणी ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि हमारी राजनीति आखिर किस दिशा में जा रही है? जब जनता को बरगलाना मुमकिन नहीं हो पा रहा, तो अब गाली-गलौज के स्तर पर उतरकर विरोध किया जाने लगा है? मगर, ऐसा करने वाली विरोधी पार्टियां भारी गलतफहमी की शिकार हैं। यहां का अवाम कभी बदजुबानी को पसंद नहीं करता है और चंद महीनों में ही बिहार की जनता यह बताएगी भी।
गौर कीजिए, वोट अधिकार यात्रा के नाम पर बिहार या देश के दूसरे इलाकों में फरेब कौन रच रहा है? इतिहास साक्षी है कि किस कदर का फर्जीवाड़ा होता था। लोगों को डरा-धमकाकर उनके लोकतांत्रिक हक पर डाके डाले जाते थे। गरीबों-वंचितों-औरतों के वोटों के पुराने डकैत आज चुनावों में धांधली की बातें कर रहे हैं और सबसे शर्मनाक बात यह है कि अपनी हताशा में वे किसी की स्वर्गवासी मां को भी राजनीति की दलदल में घसीट रहे हैं! मगर यह राजनीति नहीं, बल्कि ओछेपन की पराकाष्ठा है। इससे विपक्षी पार्टियों ने अपना बौनापन ही उजागर किया है।
फिर यह सिर्फ एक मां की बात नहीं है, यह उन करोड़ों भारतीय माताओं और बहनों की बात है, जिन्होंने अनथक संघर्ष करके, तरह-तरह की कठिनाइयां झेलकर अपने बच्चों को पाला-पोसा, उन्हें सभ्य नागरिक बनाया। राहुल गांधी और उनके जैसे नामदार कभी यह समझ ही नहीं सकते कि गरीबी में पले-बढ़े बच्चे और उसकी मां ने कैसे हालात का सामना किया होगा? उनके लिए तो सत्ता परिवार की जागीर है और वंश परंपरा से मिलने वाला ‘हक।’ मगर जनता यह तय कर चुकी है कि सत्ता अब नामदारों की बपौती नहीं रहेगी।
यहीं पर दो माओं के योगदान की कहानी सामने आती है। एक तरफ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हैं, जिन्होंने अपने बच्चों की परवरिश के लिए दूसरों के बर्तन मांजे, अथक मेहनत की और अपनी संतान को ईमानदारी व परिश्रम के संस्कार दिए। इस मां ने बेहद विपरीत परिस्थिति में भी अपने बेटे को जनसेवक बनने का हौसला दिया। दूसरी तरफ, राहुल गांधी की मां हैं, जिनके बेटे को जन्म के साथ ही दुनिया की हर सुख-सुविधा या ऐशो-आराम प्राप्त रहा और जिन्होंने राजनीतिक विरासत भी तैयार थाली में पाया। उनके लिए संघर्ष का मतलब केवल किताबों और भाषणों तक सीमित है।
यही है, दो तरह के भारत का फर्क। एक भारत, जिसमें पैदा हुए नरेंद्र मोदी अपनी मां की मेहनत और त्याग की बदौलत प्रधान सेवक बनते हैं। दूसरा वह भारत है, जिसमें बेटे सिर्फ राजवंश के वारिस बनते हैं। इसलिए कोई यह मुगालता न पाले कि सामने वाले को नीचा दिखाने की चेष्टा करके या अमर्यादित आचरण करके जनता में लोकप्रिय हो जाएगा। भारत की जनता अपने सपूत को पहचानने में कभी चूक नहीं करती।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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