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हिम्मत है तो चल मार के दिखा 

वह नाराज सैनिक जोर से चीखा था, ‘कंपनी कमांडर को मार डालूंगा।’ यह बात उस सैन्य कंपनी के शिविर में आग की तरह फैल गई थी। मात्र पदोन्नत न होने पर इतनी अनुशासनहीनता? तुरंत उस सैनिक को निगरानी...

हिम्मत है तो चल मार के दिखा 
सैम मानेकशॉ भारत के पहले फील्ड मार्शल Sun, 08 Dec 2019 12:09 AM
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वह नाराज सैनिक जोर से चीखा था, ‘कंपनी कमांडर को मार डालूंगा।’ यह बात उस सैन्य कंपनी के शिविर में आग की तरह फैल गई थी। मात्र पदोन्नत न होने पर इतनी अनुशासनहीनता? तुरंत उस सैनिक को निगरानी में ले लिया गया। बर्मा के मोर्चे पर युद्ध के लिए तैनात कंपनी के सारे जवान पगड़ी वाले सिख थे और सबकी निगाह अपने बिना पगड़ी वाले कमांडर पर टिकी थी। फैसला कमांडर को करना था, जवान को तत्काल बर्खास्त कर घर भेज दिया जाए या वहीं सजा दी जाए? जो सीधे मारने की धमकी दे, उसे साथ रखना खतरे से खाली नहीं था। पूरी सैन्य कंपनी स्तब्ध थी। बर्मा की जमीन पर जापानियों के खिलाफ पिछले मुकाबले में भारी नुकसान हुआ था। ऐसे में, टीम का मनोबल गिरा हुआ था। टीम को जोड़कर कल फिर युद्ध में दमखम दिखाना था। 28 वर्षीय कमांडर के लिए यह जिंदगी की पहली बड़ी जिम्मेदारी थी। अमृतसर में रहे कमांडर को पंजाबी आती थी, तो सिख कंपनी की कमान थमा दी गई थी।  
उस शाम आमतौर पर मस्तमौला रहने वाले सिखों के बीच एक भयानक मौन पसरा था। उनके कमांडर ने यादगार फैसला लिया। अपने दूसरे नंबर के कमांडिंग अफसर को आदेश दिया। कुछ ही देर में सभी जवान एक जगह जुट गए। चारों तरफ जवान और बीच में एक मेज, एक कुर्सी। कमांडर साहब शान से आए और बैठ गए। आरोप पत्र पढ़ा गया। गवाही हुई और जुल्म साबित हो गया। कमांडर अचानक कुर्सी से उठे। एक पिस्तौल मांगी। उसमें पूरी गोलियां लोड कीं और शान से चलते हुए धमकी देने वाले जवान के सामने खड़े हो गए। जवान के हाथों में भरी हुई पिस्तौल पकड़ाकर पंजाबी में कहा, ‘तुमने कहा था, तुम मुझे गोली मारोगे? क्या तुझमें मुझे गोली मारने की हिम्मत है? चल यहीं मुझे मार के दिखा।’ 
जवानों की सांसें मानो थम गईं। खफा जवान कहीं वाकई में गोली चला दे, तो? लेकिन उस जवान की नजरें जमीन पर गड़ी थीं। वह जल्दी ही टूट गया। पिस्तौल हाथ से छूट गई। वह दया की भीख मांगने लगा। फिर क्या था, कमांडर ने घुमाकर एक झापड़ उसे रसीद किया और दहाड़ा, ‘अगर दम नहीं है, तो आगे से किसी को ऐसी धमकी मत देना।’ कमांडर ने तत्काल आदेश दिया कि जवान को उसके हथियार सौंप दिए जाएं और ड्यूटी बता दी जाए। कमांडर की वाहवाही तो हो रही थी, लेकिन दहशत अभी भी सैन्य शिविर से विदा नहीं हुई थी। क्या पता, वह जवान रात के समय हमला बोल दे, अब तो हथियार भी मिल गए हैं? बात कमांडर तक पहुंची, आशंका तो उसे भी थी, लेकिन पूरी कंपनी के जवानों को दिखाना था कि वह वाकई वीर है। कमांडर ने अपने अधीनस्थ अफसर को बुलाया और चर्चा शुरू हुई। एक सुझाव यह था कि उस जवान को कहीं और भेज दिया जाए, लेकिन इससे जवानों के बीच यही संदेश जाता कि कमांडर डर गया। जरूरी था कि न कमांडर कहीं जाएं और न धमकी देने वाले जवान को भेजा जाए। खैर, कमांडर ने उस जवान को बुलाकर आदेश दिया, ‘तुम आज रात मेरे टेंट के बाहर सोओगे और सुबह मुझे ठीक साढ़े पांच बजे चाय और पानी के साथ उठा देना।’
यही हुआ, लेकिन रात ठीक से नींद नहीं आई, कमांडर बीच-बीच में जागता रहा। शिविर के लगभग सभी जवानों को सुबह का इंतजार था और घड़ी देखकर ठीक साढ़े पांच बजे उस जवान ने गरम पानी और चाय के साथ अपने कमांडर को जगाया। पूरी कंपनी ने कमांडर का लोहा मान लिया। धमकी देने वाला जवान सुधरकर अपने कमांडर का परम भक्त हो गया, साए की तरह साथ रहने लगा। 
खतरों से आंख मिलाने वाले उस कमांडर को दुनिया सैम बहादुर या सैम मानेकशॉ (1914-2008) के नाम से जानती है। दिसंबर 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को यादगार अंजाम तक पहुंचाने वाले भारतीय सैन्य जनरल मानेकशॉ देश के पहले और अंतिम फील्ड मार्शल थे। उनकी जिंदगी कदम-कदम पर करामाती लम्हों का सिलसिला थी। वह डॉक्टर बनकर देश-सेवा करना चाहते थे, पर उनकी किस्मत में सैन्य अधिकारी बनकर बहुत नाम कमाना लिखा था। बेहद जिंदादिल, हास्य से भरपूर हंसमुख मानेकशॉ की वीरता के कई किस्से हैं। बर्मा के उसी मोर्चे पर सीधी लड़ाई में जापानियों के खिलाफ उन्हें बड़ी जीत नसीब हुई थी, लेकिन पेट और आसपास सात गोलियां लगी थीं। बचना मुश्किल था। सैन्य अस्पताल में मरीजों की भीड़ लगी थी। मानेकशॉ की बुरी हालत देख ऑस्ट्रेलियन सर्जन ने पहले तो देखने से ही इनकार कर दिया। साथ आया जवान गिड़गिड़ाया, तो उसने मानेकशॉ से पूछा, ‘क्या हुआ है?’ दर्द छिपाकर एक मुस्कान के साथ मानेकशॉ ने जवाब दिया, ‘घोड़े की दुलत्ती पड़ी है।’
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय

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