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मेरी आवाज ही पहचान है

चौदह बरस की उम्र में जब पहली बार मुझसे फिल्म में काम करने को कहा गया, तो मैं घबरा गई थी। इस बारे में मैं कुछ नहीं जानती थी। बाद में मां ने समझाया, तो फिल्म के लिए तैयार हुई। हालांकि तैयारी तब भी पूरी...

मेरी आवाज ही पहचान है
हेमा मालिनी सांसद, अभिनेत्रीSat, 29 Dec 2018 11:53 PM
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चौदह बरस की उम्र में जब पहली बार मुझसे फिल्म में काम करने को कहा गया, तो मैं घबरा गई थी। इस बारे में मैं कुछ नहीं जानती थी। बाद में मां ने समझाया, तो फिल्म के लिए तैयार हुई। हालांकि तैयारी तब भी पूरी नहीं थी, क्योंकि मद्रास की एक फिल्म में ऑफर मिला, पर वह असफल रहा। इससे दिल तो टूटा, लेकिन इस चोट ने मुझे आगे बढ़ना सिखाया। तभी यानी बचपन में ही मैंने तय कर लिया कि असफलता से कभी घबराऊंगी नहीं और सफल होकर रहूंगी। इसके बाद मैं धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ती गई और अंत में मेरी मेहनत रंग लाई।
बचपन में हमें कुछ मालूम ही नहीं था कि क्या हो रहा है? बिल्कुल किसी दूसरे मासूम की तरह, जिसे कुछ भी पता नहीं होता। मैं हमेशा मम्मी का पल्लू पकड़कर रहती थी। मेरे दो बड़े भाई भी हैं। उनका साथ तो रहा ही, लेकिन मुझे जो भी सिखाया, मां ने सिखाया। जब तीन वर्ष की थी, तभी हम दिल्ली आ गए। मेरे पिता यहां काम करते थे, वह अधिकारी थे। मैं दिल्ली में ही पली-बढ़ी। यहीं स्कूलिंग हुई। इसलिए हिंदी मेरे लिए कोई समस्या नहीं बनी। सामान्यत: बेटियां किचन में जाती हैं, लेकिन मां मुझे किचन में जाने से रोक देती थीं। वह कहती थीं कि तुम किचन में मत जाओ, केवल डांस करो। वह नहीं चाहती थीं कि मैं किचन में सिमटकर रह जाऊं। उनके दिमाग में पहले से था कि मुझे क्या बनना है। इसलिए बचपन से ही डांस किया और आज भी डांस ही मेरी जिंदगी है। यह मेरे लिए पहले प्यार की तरह है।
12 वर्ष तक मैंने फिल्म के बारे में सोचा नहीं था। मेरे लिए डांस ही सब कुछ था। जब मैं 13-14 वर्ष की हुई, तो मां को लगा कि यह क्यूट गर्ल है। देखने में बहुत सुंदर लगती है, क्यों न इसे फिल्मों में भेजा जाए? इसके बाद मां मुझसे फिल्म की बातें करने लगीं, जिससे मुझे परख सकें और हो न हो, वह यह भी चाहती थीं कि मैं फिल्मों में रुचि लेने लगूं। हालांकि जब उन्होंने मुझसे फिल्म में काम करने को कहा, तो मैं बहुत घबरा गई। मन में कई तरह के सवाल आने लगे कि कैसे फिल्म में जाऊंगी? क्या करना होगा फिल्मों के लिए? इतने बड़े-बड़े स्टार्स होते हैं, मैं उस स्तर तक कैसे पहुंच पाऊंगी? लेकिन मां ने मुझे समझाया और हौसला दिया। इसके बाद मैं फिल्मों के लिए तैयार हो पाई। 
14 वर्ष की उम्र में मद्रास से ऑफर आया, लेकिन वह सफल नहीं हुआ। मैं धन्यवाद देती हूं मद्रास के उन प्रोड्यूसर को, जिन्होंने मुझे लिया और निकाल दिया। उसके बाद मैंने भी रफ्तार पकड़ी। पहले दिशाहीन थी। मां ने जो-जो कहा, मैंने वह सब किया, लेकिन शायद ठीक से नहीं किया, इसलिए असफलता मिली। इसके बाद निश्चय कर लिया कि सफलता तो पानी ही है। अब मुझे मेहनत करनी है। 
मैं हिंदी जानती थी। बोलती भी थी, लेकिन फिल्म में जिस तरह बात करते हैं, उस तरह की हिंदी मेरी नहीं थी। हिंदी फिल्मों में उर्दू का बहुत चलन था। मैं उर्दू के अल्फाज अच्छे से नहीं बोल पाती थी। तब मेरे लिए उर्दू के शिक्षक रखे गए। टीचर आते थे और मुझे डायलॉग सिखाते थे। करीब तीन-चार महीने उर्दू सीखी। इस बीच राज साहब ने स्क्रीन टेस्ट लिया। टेस्ट लेने के बाद उन्होंने कुछ सुधार करने को कहा, क्योंकि फिल्म में जो हिंदी बोलनी है, वह नहीं आ रही थी। फिल्म में आवाज की बड़ी महत्ता होती है। कैसे मॉड्यूलिंग करके बोलना है, यह बताया गया। उसके बाद मैंने और मेहनत की। आवाज अदायगी को बेहतर किया। सामान्य तौर पर मैं बात करूंगी, तो मेरी आवाज वैसी ही रहेगी, लेकिन फिल्मों में मेरी आवाज अलग होगी। जैसे ही लाइट और कैमरा सामने होगा, मेरी आवाज बदल जाएगी। यह सब शुरू में तो कुछ दिक्कत भरा था, लेकिन धीरे-धीरे अभ्यास करते-करते और पुख्ता हो गया। इसके बाद राज साहब ने फिर से मेरा टेस्ट लिया और इस बार उन्होंने मुझे सेलेक्ट कर लिया। मुझे उनकी फिल्म सपनों का सौदागर  में काम करने का मौका मिला। इसके बाद तो मुझे लगातार सफलता मिलने लगी।
फिल्म में ऐसा नहीं कि सिर्फ मेकअप ही करते हैं। यह भी सिखाया जाता है कि कैसे अपनी आवाज का इस्तेमाल बेहतर अदायगी के लिए करना चाहिए? सभी की आवाज अच्छी होती है, लेकिन आपको अपनी आवाज का इस्तेमाल करना आना चाहिए। यह सब तकनीक है। पहले छोटी थी, तो आवाज थोड़ी पतली थी। अब मैच्योर हो गई हूं, तो आवाज बदल गई है, लेकिन आवाज अब भी बढ़िया है। लोग मेरी आवाज से ही मुझे पहचान लेते हैं।
            (जारी...)

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