फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन मेरी कहानीस्मिता पाटिल को मिस करती हूं

स्मिता पाटिल को मिस करती हूं

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मुझे एक किस्म के ही किरदार करने से तकलीफ थी। मैं अक्सर कहती कि ज्यादातर फिल्मों में महिलाओं के जो किरदार होते हैं, वे मुझे बहुत ज्यादा आकर्षित नहीं करते हैं। मुझे जिंदगी को...

स्मिता पाटिल को  मिस करती हूं
दीप्ति नवल, अभिनेत्रीSat, 16 Sep 2017 10:25 PM
ऐप पर पढ़ें

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मुझे एक किस्म के ही किरदार करने से तकलीफ थी। मैं अक्सर कहती कि ज्यादातर फिल्मों में महिलाओं के जो किरदार होते हैं, वे मुझे बहुत ज्यादा आकर्षित नहीं करते हैं। मुझे जिंदगी को जीना भी है। मैं एक जैसे रोल लगातार नहीं कर सकती हूं। आज के दौर में तो कुछ महिला प्रधान फिल्में बन भी रही हैं। पहले ऐसा कम ही था। हाल की फिल्मों में मैरीकॉम, दंगल  या बाजीराव मस्तानी  को आप देख लीजिए। इन फिल्मों में महिला किरदारों को कितनी अच्छी तरह गढ़ा गया है। वैसे भी मैं संजय लीला भंसाली की फैन हूं। वह फिल्म को एक नया कैनवास दे देते हैं। पहले ऐसा नहीं था। इसीलिए मैं हमेशा फारूख शेख से कहती थी कि मैं बहुत ज्यादा अभिनय नहीं कर पाऊंगी। इससे तो कहीं अच्छा होगा कि मैं उस समय में कुछ नया पढ़ूंगी, कुछ नया करूंगी। लिखने में मेरी दिलचस्पी पहले से थी ही। 

फारूख के अलावा जिस एक और कलाकार ने मेरी ‘राइटिंग’ में दिलचस्पी दिखाई, वह हैं नसीरुद्दीन शाह। नसीर ने जब मेरी किताब द ब्लैक वींड ऐंड अदर पोयम्स  पढ़ी, तो उसकी तारीफ की। अमिताभ बच्चन जी ने भी मेरी वह किताब पढ़ी थी। किताब पढ़ने के बाद अमित जी ने मुझे एक चिट्ठी भेजी थी, जिसमें मेरी ‘राइटिंग’ की तारीफ थी। एक और अभिनेता ने मुझे बहुत प्रभावित किया, वह थे ओम पुरी। ओम पुरी को मैं हमेशा ओम जी ही कहती थी। इसकी वजह यह थी कि स्मिता पाटिल उनको हमेशा चिढ़ाती थीं और ओम जी ही कहती थीं। यूं तो हम लोगों की उम्र में कोई बहुत बड़़ा फर्क नहीं था। हम सब लगभग एक ही उम्र के थे। फर्क रहा भी होगा, तो चार-पांच साल का। 

ओम पुरी साहब का हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में योगदान इतना बड़ा है कि उनके बारे में कहां से बात की जाए, यह सोचना पड़ेगा। बहुत मुश्किल है उनके बारे में कुछ भी बोलना। पहले वह मेरे पड़ोसी भी थे। मेरी और उनकी बिल्डिंग में सिर्फ एक सड़क का फासला था। वर्सोवा के उस इलाके में फिल्म इंडस्ट्री से जाकर रहने वाली मैं पहली एक्टर थी। मेरे एक-डेढ़ साल बाद ओम पुरी साहब भी आ गए थे। मुझे बहुत खुशी हुई कि इतने बड़े अभिनेता मेरे पड़ोसी होंगे। मैं उनकी बड़ी फैन भी थी। मैंने स्मिता की फिल्म भूमिका देखी थी और ओम जी की आक्रोश।  मैं ऐसा ही सिनेमा करना चाहती थी। मैं ऐसी ही कलाकार बनना चाहती थी। इस किस्म के सिनेमा में ओम जी सबसे आगे थे। नसीर उनके साथ थे। हीरोइनों में स्मिता पाटिल, शबाना आजमी और फिर उसमें मैं जुड़ी, तो यह तिकड़ी शबाना, स्मिता और दीप्ति हो गई, और उधर ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह और फारूख शेख थे। 

मैं स्मिता पाटिल को बहुत मिस करती हूं। हम लोग पहली बार न्यूयॉर्क में मिले थे। मैं उनसे खुद को बहुत ‘रिलेट’ करती थी। कितना कुछ करना था उनके साथ, लेकिन वह चली गईं। कितना कुछ उनसे साझा करने के लिए था। मुझे हमेशा इस बात की तसल्ली रही कि मैं उस सिनेमा से जुड़ी, जिसमें कुछ करके दिखाने की मेरी ख्वाहिश थी। मुझे इस बात की खुशी है और गर्व भी कि मैं ओम पुरी जैसे अभिनेता को जानती थी। उनकी जिंदगी में चाहे कुछ भी चल रहा हो, वह अपने काम में जुटे रहते थे। हम लोगों का रिश्ता ऐसा था कि उनके घर पर जब भी यार-दोस्त आते थे, वह मुझे जरूर बुलाते थे। किसी दिन अचानक फोन करके कहते कि शाम को नसीर आ रहा है, मीता वशिष्ठ आ रही हैं, तुम भी आ जाओ। कभी-कभार ‘साउथ’ का कोई डायरेक्टर आ गया या पुणे से कोई आ गया, तब भी ओम जी मुझे बुला लेते थे। ऐसा ही मेरे साथ भी था। जब कभी मेरे घर पर कोई ‘गेट-टुगेदर’ होता, ओम जी जरूर आते थे। मैं ओम पुरी साहब के साथ और फिल्में करना चाहती थी। मेरी वह ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाई। 

ओम पुरी जी कभी कोशिश नहीं करते थे कि अपनी निजी जिंदगी में जो कुछ चल रहा है, उसे ढका-छिपाया जाए। बहुत ज्यादा तो नहीं, लेकिन कभी-कभार उन्होंने अपनी जिंदगी के संघर्षों को ‘शेयर’ भी किया। वह जब भी बात करते थे, काफी खुलकर बात करते थे, कभी किसी बात को टालते नहीं थे। आखिरी समय में उनकी निजी जिंदगी में काफी कुछ चल रहा था, लेकिन वह जब भी उन बातों को मुझसे ‘शेयर’ करते थे, तो यही कहते थे कि दीप्ति तुम मुझे समझ सकोगी। एक बार मेरे जन्मदिन की पार्टी थी। ओम जी सबसे ‘लेट’ आए, लेकिन आते ही उन्होंने महफिल लूट ली। स्मिता और फारूख की तरह ओम जी भी हम लोगों को असमय छोड़कर चले गए।
            (जारी...)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें