साब, आप वन रक्षक हो या वन भक्षक
अपने यहां कहा गया है वीर भोग्या वसुंधरा- मतलब वीर ही इस धरती का भोग करेगा। यही बात व्यवहार में जब प्रबल हो गई, तब अपना देश दास हो गया। हमारे ज्यादातर कथित वीर अपने दुश्मनों को धूल चटाने के बजाय बाघ...
अपने यहां कहा गया है वीर भोग्या वसुंधरा- मतलब वीर ही इस धरती का भोग करेगा। यही बात व्यवहार में जब प्रबल हो गई, तब अपना देश दास हो गया। हमारे ज्यादातर कथित वीर अपने दुश्मनों को धूल चटाने के बजाय बाघ मारने में मस्त हो गए। 1875 से 1925 के बीच कथित वीर राजा-राजकुमारों और कथित अंग्रेज बहादुरों ने 80,000 बाघों का कत्ल कर दिया। 1947 में अनुमानत: 40,000 बाघ थे। मैसूर के एक महाराजा और उनके मेहमानों ने 1945 से 1967 के बीच सौ से ज्यादा बाघ मार डाले। वह महाराजा अपने अंतिम दिनों में निराश रहते थे कि 95 बाघ मारने के बाद वह 100 का व्यक्तिगत स्कोर नहीं खड़ा कर सके। और तो और, भारत की आजादी के बाद भी इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ साल 1961 में सवाईमाधोपुर में बाघ मारने का खूनी शौक पूरा कर गई थीं।
बाघों और वन्यजीवों ने इस जंबूद्वीप पर कथित इंसानों के हाथों हैवानियत का दारुण दौर देखा है, जब जंगल के कथित रक्षक अधिकारी शिकार की मंजूरी देने का काम करते थे। वन कटवाना, वन्यजीवों को मरवाना-बिकवाना कानूनी धंधा था। तब तमाम यारबाज वन रक्षक या कहिए- भक्षक शिकार करवाने के लिए कुख्यात हुआ करते थे। राजस्थान मे एक ऐसे ही अधिकारी थे, जो शिकार की मंजूरी बेधड़क दिया करते थे, पर एक दिन संयोग से खुद शिकार पर निकल पड़े। आसानी से एक बाघ दिखा, उससे भी ज्यादा आसानी से रक्षक महोदय ने उस पर निशाना साध दिया। बहुत शान से उस बाघ के पास पहुंचे और गौर किया कि कितने खूबसूरत जीव को उन्होंने मार गिराया है। उसके बदन पर बहुत सुंदर चमकीली धारियां थीं, एकदम कोमल, शायद उसकी अंतिम सांसें चल रही थीं। उसका मुंह खुला हुआ था। शायद वह पूछना चाहता था, साब, आप वन रक्षक हो या वन भक्षक? वन आपको रक्षा करने के लिए दिया गया है या तबाह करने के लिए? वन का मतलब केवल वृक्ष तो नहीं, वन्यजीव भी हैं? वन्यजीव बिना वृक्षों या वनों का क्या मतलब?
सवालों ने अधिकारी महोदय का पीछा करना शुरू कर दिया। बताओ कि शिकारी हो या संरक्षक, अगर संरक्षक हो, तो शिकार क्यों किया? ऐसा करो कि मारा है, तो जिंदा कर दो, खाल पर जो सुंदर धारियां हैं, उनमें से कोई एक बनाकर दिखा दो?
पछतावे ने बहुत बेचैन कर दिया, होने लगी परेशानी। यह क्या कर दिया? क्या यही भारतीय वन्य सेवा है? वह सोचने लगे कि मैंने तो एक ही मारा है, पर सैकड़ों बाघों को शिकार की लिखित मंजूरी देकर मरवाया है। मैं अनगिनत बाघों और वन्यजीवों का अपराधी हूं। उन्होंने गौर करना शुरू किया, तो देखा भारी सरकारी पैसा पा रहे अनेक रजवाड़े शिकार करके मूंछें ऐंठ रहे थे। उदयपुर के महाराजा हों या टोंक के नवाब, जयपुर के कर्नल केसरी सिंह ने तो दावा किया था कि उन्होंने 1,000 बाघों के शिकार में भाग लिया है। किसने कितने तेंदुए, जंगली सूअर और अन्य बड़ी बिल्लियां मारीं, कोई हिसाब ही नहीं था? असर ऐसा हुआ कि कुछ ही दिनों बाद लोग चर्चा करने लगे कि एक युवा वन अधिकारी हैं कैलाश सांखला, जो शिकार की मंजूरी नहीं देते हैं। साल 1956 में ही सांखला ने लोगों से कहना शुरू कर दिया था कि कृपया, अबोध वन्यजीवों को मत मारिए, वरना वे समाप्त हो जाएंगे और जंगलों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। तब हालात बेहद खराब थे, दुनिया में भारतीय पर्यटन का मतलब था- जंगलों में मनचाहे जीवों को मारने का असीमित मौका।
कैलाश सांखला देश में पहले ऐसे वन्यजीव प्रेमियों में थे, जिन्होंने समझ लिया था कि पहले देश का कानून बदलना चाहिए। सांखला के प्रयासों से धीरे-धीरे स्थितियां बदलीं, वन्यजीवों व उनके अंगों का व्यापार रुका, निर्यात थमा और अंतत: प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की समझ में आया कि बाघों को बचाना होगा और तब देश में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई। कैलाश सांखला उसके पहले निदेशक बनाए गए, तब भारत के जंगलों में 300 से कम बाघ बचे थे। वह कहते थे कि ‘जंगलों में कुछ मत करो और किसी को कुछ करने मत दो। प्रकृति अपने आप असली रंग-रूप में लौट जाएगी और बस, कम से कम मानवीय हस्तक्षेप सुनिश्चित करो।’ भारत में साल 1972 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम लागू हुआ और 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शानदार शुरुआत हुई। उस साल बाघ देश के नौ जंगलों में सुरक्षित हुए और अब करीब 53 जंगलों में सुरक्षित हैं। 29 जुलाई को जब विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है, तब पूरी दुनिया गौर करती है, 75 प्रतिशत बाघ अकेले भारत में शोभायमान हैं। यहां वनों में उनकी संख्या 3,000 से ज्यादा हो गई है, ऐसे में, कै लाश सांखला को हम कैसे भूल सकते हैं।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय