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पिता के आंसुओं ने दिया एक चैंपियन

पिता अस्पताल में सफाईकर्मी थे और मां नौकरानी। उस लड़के को लगता था कि पिता ने जिस फुटबॉल को मजबूर होकर छोड़ दिया, उस फुटबॉल को आगे ले जाना उसका कर्तव्य है। गलियों में बेटे को गेंद संभालते देख पिता को...

पिता के आंसुओं ने दिया एक चैंपियन
Pankaj Tomarपेले, महान फुटबॉल खिलाड़ीSun, 27 Nov 2022 01:03 AM
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वह गरीबों की तंग बस्ती थी, जहां लड़के मोजों और कपड़ों से बॉल बनाकर फुटबॉल खेलने की जगह निकाल लेते थे। गलियों के बीच घरों के सीसे और बाहर रखे सामान अक्सर टूटते-फूटते रहते थे, पर बच्चे भी कमाल थे, कोशिश करते थे कि गेंद को ज्यादा जोर से मारना न पड़े। वे चाहते, तो गेंद को पैरों, घुटनों, छाती, सिर पर ही सजाए रखते थे, नीचे जमीन पर गिरने न देते थे। लोग अक्सर डांटते थे, पीट भी देते थे, लेकिन रुककर कभी उन्हीं बच्चों को प्यार से देखते भी थे, क्या पता इन्हीं बच्चों में से कल कोई देश ब्राजील का नाम रोशन कर दे। 
उन्हीं बच्चों में एक था वह दुबला-पतला लड़का। खाली पैर ऐसे दौड़ता था, मानो सबसे आगे निकल जाना हो। भले ही ब्रेड और केले के चंद कतरे ही पेट में गए हों, वह कपडे़ के बोरों से बने वस्त्र पहनकर शान से जब-तब खेलने निकल जाता था। मां नहीं चाहती थीं कि बेटा फुटबॉल खेले, क्योंकि पिता फुटबॉल के शौक में एक घुटना खराब कर चुके थे। अस्पताल में सफाईकर्मी थे और मां नौकरानी। उस लड़के को लगता था कि पिता ने जिस फुटबॉल को मजबूर होकर छोड़ दिया, उस फुटबॉल को आगे ले जाना उसका कर्तव्य है। गलियों में बेटे को गेंद संभालते देख पिता को भी यही लगता था।  

खैर, द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 1950 में पहली बार ब्राजील में ही फुटबॉल विश्व कप का आयोजन हो रहा था, पूरा देश फुटबॉल-मय था। 13 टीमों ने हिस्सा लिया था। फाइनल में पहुंचने के लिए ब्राजील ने स्वीडन और स्पेन को क्रमश: 7-1 और 6-1 से हराया था और ट्रॉफी के लिए सिर्फ ड्रॉ की जरूरत थी। फाइनल के दिन 16 जुलाई को उस लड़के के पिता डोनडिन्हो ने रेडियो पर दोस्तों के साथ कमेंट्री सुनते हुए पार्टी करने का फैसला किया था। लगभग पंद्रह मित्र सपरिवार आमंत्रित थे। सब आश्वस्त थे कि ब्राजील आसानी से उरुग्वे को छका देगा। लड़कों के लिए कमरों में जगह नहीं थी, वे बीच-बीच में आकर कमेंट्री सुनते थे और बाहर जाकर फुटबॉल खेलने लगते थे। ब्राजील ने गोल दागकर शुरुआत कर दी थी, शहर में पटाखे फूटने लगे थे, पर अंतत: सन्नाटा छा गया। वह लड़का दौड़कर पिता के पास गया। पिता और उनके दोस्त रो रहे थे, लड़के ने पूछा, क्या हुआ? रूंधे गले से जवाब मिला, ब्राजील हार गया। तरह-तरह के अभाव के बावजूद ऐसी निराशा से उस लड़के का सामना कभी नहीं हुआ था। तालियों की गड़गड़ाहट, पटाखों और रेडियो की तेज आवाज मानो हार के सन्नाटे में गायब हो गई थी। बौरू भूतों का शहर लगने लगा था। उसने पिता को पहली बार रोते देखा था। समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, लेकिन उसने अपने पिता से यह तो कह ही दिया था, ‘एक दिन, मैं आपको विश्व कप जिताऊंगा’। हार और गम का वो लम्हा कहीं भीतर जमकर बैठ गया था। ब्राजील में उस दिन सदमे में न जाने कितने लोगों की जान गई थी। उस दिन वह लड़का यीशु की एक तस्वीर के सामने खड़े होकर रोया था, ‘हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ? हमारे पास बेहतर टीम थी, हम कैसे हार गए? अगर मैं वहां होता, तो ब्राजील को कप हारने नहीं देता। अगर मैं वहां होता, तो ब्राजील जीत जाता; या अगर मेरे पिता खेल रहे होते, तो ब्राजील को वह गोल मिल जाता, जिसकी हमें जरूरत थी...।’

कहा ही जाता है कि किसी चीज को दिल से चाहो, तो उसे पाने से कोई तुम्हें रोक नहीं सकता। हां, हो सकता है, उस बड़ी चीज तक तुम न पहुंच पाओ, पर रास्ते में कामयाबियों के कई पड़ाव आएंगे और तुम विजयी करार दिए जाओगे। महज छह साल लगे, उसने फुटबॉल से ऐसे दिल लगाया कि राष्ट्रीय टीम ने बुला लिया। विश्व कप का साल 1958 भी आया। रेडियो पर बेटे के चयन का समाचार पिता ने ही पहले सुना, पर उन्हें सहसा यकीन न हुआ, उन्होंने बेटे को बताया कि ‘किसी टेले या शायद पेले नाम ही मैंने सुना है’। जी, पिता ने बिल्कुल सही सुना था। 
फिर क्या, वह 17 वर्षीय गरीब लड़का पहली बार यूरोप जाने के लिए 24 मई, 1958 को किसी विमान की सीढ़ियां चढ़ रहा था। बीच रास्ते तक समझ में आ गया कि फुटबॉल, ब्राजील की टीम और सम्मान क्या होता है। मन ही मन में उसने ठान लिया कि देश की जीत के लिए खेलना है, ताकि पिता के आंसू इतिहास हो जाएं। वही हुआ, ब्राजील शानदार खेल से स्वीडन को 5-2 से हराकर विश्व कप जीतने में कामयाब हुआ। फाइनल में दो गोल करने वाले पेले (एडिसन अरांटिस डो नैसिमेंटो) को पूरी दुनिया जान गई। वह किशोर देश लौटते ही अभ्यास में जुट गया, क्योंकि उसे दुनिया का महानतम फुटबॉलर बनना था। पीछे शहर में जिंदगी बदली माता-पिता की, जो सम्मान के लिए जगह-जगह बुलाए जाने लगे।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय 

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