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घर में लगी हो आग, तो पानी ही चाहिए

ज्यादातर लोगों को तोड़ने में बहुत आनंद आता है। परिवार, समाज से लेकर प्रदेश, देश तक, जहां तक या जहां भी घृणा की तलवार चल जाए, वे तोड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं। अलग रहने या अलग हो जाने का अपना...

घर में लगी हो आग, तो पानी ही चाहिए
Amitesh Pandeyनिकेतु इरालू, नगा समाजसेवीSat, 25 Feb 2023 10:18 PM
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ज्यादातर लोगों को तोड़ने में बहुत आनंद आता है। परिवार, समाज से लेकर प्रदेश, देश तक, जहां तक या जहां भी घृणा की तलवार चल जाए, वे तोड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं। अलग रहने या अलग हो जाने का अपना आनंद है, जिम्मेदारियां कम हो जाती हैं। यही वजह है कि दुनिया में कई लोग अपने गांव, जिले को ही आजाद मुल्क बना देने का ख्वाब ढोने लगते हैं। मन में इतनी घृणा भर जाती है कि अपनी गलतियों-खामियों का ठीकरा दूसरों के माथे फोड़ने की आदत डाल लेते हैं। ऐसे अलग हो जाने की कुचेष्टाओं का ही परिणाम है कि दुनिया में जगह-जगह लोग अलगाववाद का रोग लिए बैठे हैं। यह वास्तव में खुद को छोटा या बौना करते जाने की बेवकूफी ही तो है। 
नगालैंड की धरती पर यही हो रहा था। खून से रोज नई लकीरें खींची जा रही थीं। वह युवा जब भी गांव लौटता, हर बार किसी नए जख्म से सामना होता। पता चलता था, फलां अब नहीं रहा, फलां कहीं भाग गया। ज्यादातर मामलों में मरने और मारने वाले अपने ही लोग होते थे, तो जुबान सिल जाती थी। 
उसने अपने घर-कुटुंब पर गौर किया, तो पाया कि घर में ही 15 से ज्यादा युवा-युवतियां नशे की गिरफ्त में हैं। जब परिवार में चौथी मौत हुई, तब सहसा लगा कि अब एक-एक कर सब मारे जाएंगे, कोई नहीं बचेगा। क्या हर बार मद्रास या मुंबई से लौटकर मौत की खबर मिलेगी? कहते हैं, नगालैंड धरती की सबसे खूबसूरत जगहों में एक है, पर यह खूबसूरती किस काम की? एक प्रसिद्ध चिंतक की टिप्पणी बार-बार ध्यान में आई कि अपने लोगों के बिना कुछ भी संभव नहीं है, संस्थानों के बिना कुछ भी स्थायी नहीं है। सबसे जरूरी है, लोग बचे रहें, तो कुछ रचना संभव होगा। लोग किसी संस्थान की रचना करेंगे, तो परिवार-समाज-प्रदेश स्थिरता पाएगा, सशक्त बनेगा। पूरा इतिहास दो ही शब्दों में लिखा जा सकता है। पहला शब्द है चुनौती और दूसरा, प्रतिक्रिया। चुनौती आनी ही है, उस पर सही प्रतिक्रिया करेंगे, तो विकास की ओर जाएंगे और गलत करेंगे, तो विनाश की ओर। फूल के लिए बाग लगाने पड़ेंगे। बंदूक उठाएंगे, तो मरघट ही पहुंचेंगे। काश! अपने लोग समझ पाते। 
इस सोच ने जीवन बदल दिया। वह अपने गांव लौट आया, इस मकसद से कि अपने परिवार-समाज को जहां तक संभव हो नष्ट होने से बचा ले। जीवन नई दिशा में चल पड़ा, उस युवा ने अपने दिल की छोटी-छोटी बातों को सुनना शुरू किया और ईमानदारी के साथ चीजों को ठीक करने का प्रयोग भी चल निकला। संघर्ष समाधान के कबीलाई तौर-तरीके बदले, तो महात्मा गांधी भी काम आए। नगालैंड में मोरल रीआर्ममेंट मूवमेंट को मजबूती मिलने लगी, मतलब नैतिकता से खुद को फिर लैस करने का आंदोलन जिंदगी का मकसद बन गया। लोग इस युवा को जल्दी ही निकेतु इरालू नाम से पहचानने लगे। बदलाव की शुरुआत घर से ही हुई, जिससे समाज सुगंधित होने लगा।  
निकेतु इरालू के लिए काम आसान नहीं था, क्योंकि वह अलगाववादी नेता जापू फिजो के भतीजे थे। फिजो को हिंसक साजिशों के चलते देश छोड़ना पड़ा था, उनकी मौत इंग्लैंड में ही हुई थी। एक वरिष्ठ, पर शांति प्रिय नगा नेता टी सखरी की हत्या के लिए भी फिजो को ही जिम्मेदार माना गया था। सखरी का कहना था कि भारतीय सेना के खिलाफ हथियार उठाने के बजाय भारत के लोगों के पास जाकर अपनी तकलीफों का इजहार करना चाहिए, पर अमन पसंद सखरी को राह से हटा दिया गया।
सखरी को गद्दार कहने वाले फिजो के भतीजे निकेतु इरालू का सोचने का ढंग ही अलग था। वह जब जागो, तब सबेरा में यकीन करते थे। उन्होंने कबीलों को समझाना शुरू किया और एक दिन उनके प्रयासों से पचास से ज्यादा कबीलों के प्रतिनिधि एक जगह जुटे। साथियों ने सलाह दी कि ज्यादा मुखर मत हो जाना, जान जाने का भी खतरा है, लेकिन निकेतु इरालू ने तो मानो ठान रखा था कि कबीलों के लिए बोझ बन चुकी नफरत की बेड़ियों को तोड़ देना है। बेड़ियां टूटेंगी, तो बदले का सिलसिला भी टूटेगा। कबीलों के प्रतिनिधियों ने स्तब्ध होकर सुना, जब निकेतु इरालू ने कहा, हमें खेद है, हम इन हत्याओं की जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं। हम नगाओं के लिए यह बात करने का समय आ गया है कि हमसे कहां गलती हुई है, हर समय भारत व दूसरों को दोष न देते हुए हमें सोचना होगा। माहौल को कुछ हल्का करने के लिए इरालू ने कहा, मुझे यकीन है, स्वर्ग में मेरे चाचा खुश होंगे कि हम उनकी गलतियों पर चर्चा कर रहे हैं। 
न केवल हंसी फूट पड़ी, तालियां भी बजने लगीं। धीरे-धीरे नगाओं की सोच बदली। अपनी गलतियों को मानने लगे और  परस्पर चर्चा करने लगे और तब आया नगालैंड में बदलाव। 
  प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय 

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