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जब गरीबी ने तैयार किया एक शिक्षक

उन दिनों गरीब दाने-दाने को मोहताज थे। वह लड़का भी गरीब था, तो अक्सर भूखे गुजारा कराता था। शिकायत करे, तो किससे, आसपास कई बच्चे थे, जो गरीबी में और गहरे फंसे थे। जिन्हें खाने को भी कम मिलता था और पहनने...

जब गरीबी ने तैयार किया एक शिक्षक
पाओलो फ्रेरे प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्रीSat, 18 Sep 2021 09:13 PM
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उन दिनों गरीब दाने-दाने को मोहताज थे। वह लड़का भी गरीब था, तो अक्सर भूखे गुजारा कराता था। शिकायत करे, तो किससे, आसपास कई बच्चे थे, जो गरीबी में और गहरे फंसे थे। जिन्हें खाने को भी कम मिलता था और पहनने के लिए भी ज्यादा पुराने कपडे़। बड़े लोग चर्चा करते थे कि महामंदी का दौर है, महंगाई आसमान छू रही है, उद्योग चौपट हो रहे हैं। इतनी कम मजदूरी मिलती है कि एक वक्त का खाना भी ढंग से नहीं जुटता। लेकिन सबसे बड़ी चिंता थी कि पढ़ाई चौपट हुई जा रही थी। उस लड़के को लगता था कि दुनिया के बुनियादी ढांचे में ही कोई गड़बड़ी है। सवाल उमड़ता कि ऐसा कैसे हो सकता है कि ईश्वर कुछ लोगों को गरीब रखना चाहता है और कुछ को अमीर। लड़के को समझ में नहीं आता था कि ईश्वर दोषी है या नहीं, पर यह सवाल अक्सर उमड़ता था।

खैर, गरीबी के करीब तीन वर्ष बाद महामंदी सिमट रही थी, लगता था कि दिन बहुरेंगे, लेकिन एक ऐसा मनहूस दिन आया, जब पिता का साया उठ गया। गरीबी उन्हें ले गई। गरीबी में आटा ऐसा गीला हुआ कि पढ़ाई छूट ही गई। जाहिर है, लड़के को घर में बैठा देख मां विचलित हो जाती थीं। मां ऐसे किसी स्कूल की तलाश में थीं, जो उनके बच्चे को मुफ्त पढ़ाने की कृपा कर दे। लड़के को लगता नहीं था कि कोई अच्छा स्कूल उसे मुफ्त में प्रवेश देगा। मां दिन-दिन भर भटकती रहती थीं। आखिरकार एक सज्जन ऐसे मिले, जो तैयार हो गए। मां ने घर आकर बेटे से कहा, एक सज्जन तुम्हारे लिए स्कूल के दरवाजे खोलने को तैयार हो गए हैं, लेकिन उनकी एक शर्त है कि तुम पढ़ने-लिखने से प्यार करोगे। 
बच्चे को सहसा विश्वास नहीं हुआ कि एक स्कूल में प्रवेश की राह खुल गई है और शर्त सिर्फ यही है कि प्यार से पढ़ना-लिखना है। मतलब, बाकी लड़के क्या प्यार से नहीं पढ़ते हैं? क्या लड़के पढ़ाई का मोल नहीं समझते? महामंदी के दौर में जिस निर्ममता का तमाशा चारों ओर हुआ था, उससे लगता नहीं था कि कोई ऐसा सज्जन भी होगा, जो एक गरीब छात्र के लिए केवल प्यार से पढ़ने की शर्त रखेगा। तो अच्छे लोग अभी भी हैं, जो अनजान लोगों की भी मदद को तैयार रहते हैं। उस 13 वर्षीय गरीब लड़के ने प्यार से पढ़ने की शर्त के पीछे छिपे प्यार को दिलोजान से महसूस किया। वह समझ गया कि असली प्यार करना क्या होता है। दूसरों की सहायता कैसे करनी चाहिए और ऐसा करते हुए दुनिया को कैसे बेहतर जगह बनाया जा सकता है।
वह निर्णायक दिन था। उस लड़के ने उसी दिन ठान लिया कि अपने जैसे गरीबों के लिए बहुत कुछ करना है। दुनिया में भूख को कम करने के लिए कुछ कर गुजरना है। मुफ्त पढ़ाई का जो मौका मिल रहा है, उसे जाया नहीं होने देना है। शहर के एक अच्छे स्कूल में पढ़ाई का जो सिलसिला प्यार की बुनियाद पर शुरू हुआ, उसने उस लड़के अर्थात पाओलो फ्रेरे (1921-1997) को एक बेहद संवेदनशील शिक्षाशास्त्री में बदल दिया। जहां पढ़ाई संपन्न हुई, वहीं योग्यता के बल पर शिक्षा के इतिहास व दर्शन के प्रोफेसर की नौकरी मिल गई।
शिक्षा के प्रति ऐसा अगाध प्रेम था कि उनसे पढ़ने वाले अभिभूत हो जाते थे। उन्होंने 300 से ज्यादा गरीब अनपढ़ गन्ना किसानों को चालीस दिन के अंदर पढ़ना और लिखना सिखाकर कमाल कर दिया था। वह उत्पीड़कों और अत्याचारियों के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाते थे। गरीबों और वंचितों की शिक्षा के पक्ष में मुखर रहते थे। नतीजा यह कि अच्छी शिक्षा के प्रेम में वह जेल में भी डाले गए और अपने देश ब्राजील से निर्वासित भी हुए, लेकिन कुछ ही वर्षों बाद वह दिन भी आया, जब ब्राजील ने उन्हें पहचाना और सम्मान दिया। पाओलो फ्रेरे ने शिक्षा पर अनेक किताबें लिखीं। उत्पीड़ितों के शिक्षाशास्त्र पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे गरीबों को परंपरागत रूप से पीछे रखा जाता है। उन्होंने शिक्षा में बैंकिंग की अवधारणा की आलोचना की और बताया कि बच्चों के कोरे दिमाग में केवल शिक्षकों के अनुभव व ज्ञान की चीजों को नहीं ठूंसना चाहिए। बच्चों को अपने अनुभव, मेहनत और गतिविधियों से सीखने देना चाहिए। 
19 सितंबर को जन्मे पाओलो फ्रेरे का यह जन्मशताब्दी वर्ष है। आज जब दुनिया में तानाशाही, उत्पीड़न और शिक्षा में मनमानी का दौर है, तब उनकी जरूरत और बढ़ गई है। उन्होंने दुनिया को प्यार व सच्ची पढ़ाई का मार्ग दिखाते हुए लिखा था, ‘हिंसा का आरंभ वे करते हैं, जो उत्पीड़न, शोषण करते हैं, जो दूसरों को मनुष्य नहीं मानते, इसका आरंभ वे नहीं करते, जो उत्पीड़ित, शोषित हैं, जिन्हें मनुष्य नहीं माना जाता। मनमुटाव वे नहीं फैलाते, जो प्रेम से वंचित हैं, बल्कि वे फैलाते हैं, जो प्रेम नहीं कर सकते, क्योंकि वे स्वयं से ही प्रेम करते हैं।’
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय

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