फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन मेरी कहानीगम और सवालों से लहूलुहान

गम और सवालों से लहूलुहान

अमेरिका में उन दिनों लू के थपेडे़ चल रहे थे, जो निराशा को और बढ़ा देते थे। एक अलग ही तनाव उस महिला को खाए जा रहा था। आज आखिरी बार आएंगे डॉक्टर साहब देखने और उसके बाद जिंदगी फिर किस्मत भरोसे रह जाएगी।...

गम और सवालों से लहूलुहान
मार्गरेट सेंगर प्रसिद्ध चिकित्साकर्मीSat, 17 Oct 2020 11:50 PM
ऐप पर पढ़ें

अमेरिका में उन दिनों लू के थपेडे़ चल रहे थे, जो निराशा को और बढ़ा देते थे। एक अलग ही तनाव उस महिला को खाए जा रहा था। आज आखिरी बार आएंगे डॉक्टर साहब देखने और उसके बाद जिंदगी फिर किस्मत भरोसे रह जाएगी। न जाने क्या होगा, इतने सारे खुद के बच्चे संभाले नहीं संभलते। सबको खाना, देखभाल और प्यार चाहिए। घर का काम ही खत्म नहीं होता। अब परिवार बचाने से ज्यादा जरूरी है, परिवार बढ़ने से रोकना। इस रोकने की कोशिश में ही जिंदगी मौत की दहलीज पर पहुंच गई थी। डॉक्टर और एक भली नर्स दौड़ी आई थीं। खून से लथपथ मंजर, रोते बच्चे, परेशान सिर धुनते ट्रक ड्राइवर पति, दर्द से बोझिल माहौल। नर्स आते ही देखरेख में लग गई थी। मौत के मुंह से लौटने में पूरे तीन हफ्ते लगे और आज डॉक्टर, नर्स के देखने आने का आखिरी दिन था। 
डॉक्टर जब जाने लगे, तो महिला पूछने लगी। जो हुआ था, वह फिर न हो, डॉक्टर साहब बताइए? कोई तो उपाय होगा? डॉक्टर केवल इतना कहते थे, ‘देखो, फिर ऐसी नौबत न आए, वरना तुम्हारी जान पर बन आएगी’। लेकिन बचने का उपाय क्या है? जाते-जाते डॉक्टर धीरे से सिर्फ इतना बोल गए, ‘अपने पति से कहो, छत पर सोएं’। महिला अपनी गारंटी ले सकती थी, लेकिन पति का क्या? डॉक्टर साहब तो निकल गए, पीछे रह गईं नर्स मार्गरेट सेंगर, जिन्हें उस महिला ने घेर लिया, ‘अब मैं फिर मौत के मुंह में जाना नहीं चाहती, कोई उपाय आप ही बताइए। आप महिला हैं, बेहतर समझ सकती हैं? परिवार बढ़ने से बचाने का कोई तो उपाय होगा, जो मेरे वश में हो?’ 
सेंगर निरुत्तर थीं। औरतों के इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था। सेंगर उस महिला को उसके हाल और सवाल पर छोड़ आईं। करीब तीन महीने बाद एक रात उसी महिला के यहां से बुलावा आया, तत्काल डॉक्टर और सेंगर वहां पहुंच गए। नजारा वही पुराना था। परिवार नियोजन की कोशिश में महिला फिर जमीन पर अधमरी पड़ी थी, बच्चे चीख रहे थे, पति बेचैन था। देखते-देखते दस मिनट में वह महिला चल बसी। उस रात रोते-बिलखते पीड़ित परिवार को छोड़ जब सेंगर निकलीं, तो कदम उतने ही तेज उठ रहे थे, जितनी तेज सांसें चल रही थीं। नर्सिंग बैग थामे सूनी सड़कों पर वह चलती जा रही थीं। महिला के उन तीखे सवालों से लहूलुहान। क्या हम महिलाओं के हाथ में कुछ नहीं? हम क्या बच्चे पैदा करने की मशीन हैं? सेंगर को हर तरफ अनचाहे बच्चे नजर आने लगे। भूखे बच्चे, सात-आठ की उम्र में मजबूर मजदूरी करते बच्चे।  सेंगर सवाल और गम के थपेड़ों के बीच चली जा रही थीं। उनकी मां भी तो ऐसे ही तपेदिक से पीड़ित दुनिया से गई थीं। उनके अठारह बच्चे हुए थे, सात नहीं बचे और ग्यारह जिंदा रह गए। मां के पास भी कोई उपाय नहीं था, उनकी पूरी जवानी परिवार बढ़ाते स्वाहा हो गई। शरीर में न ताकत रही, न खून। बच्चों को जब ज्यादा जरूरत थी, तब वह चली गईं, परिवार बिखर गया, आधे बच्चे अनाथालय पहुंच गए। खुद सेंगर भी ऐसे ही पलीं। 
आज से करीब 108 साल पहले उस रात तेज चलते सेंगर ने फैसला कर लिया कि ऐसी महिलाओं के लिए कुछ करना होगा। ऐसी कोई दवाई हो, कोई प्रक्रिया हो कि स्त्रियां बच्चा जनने की मशीन न बनें। इसके लिए समाज व कानून से भी दो-दो हाथ करना पडे़गा। तब कानून ऐसा था कि गर्भ-निरोधक का प्रचार करने पर 45 साल तक की सजा तय थी। सेंगर ने एक मासिक अखबार निकाला, द वूमेन रिबेल। बर्थ कंट्रोल (जन्म नियंत्रण) जैसा शब्द गढ़ा। जब लगा कि गिरफ्तारी हो जाएगी, जिंदगी जेल में बर्बाद होगी, तो वह इंग्लैंड भाग गईं, मगर अपने पीछे चर्चा और विचार के लिए एक किताब छोड़ गईं, फैमिली लिमिटेशन। लाखों पीड़ित महिलाओं को आवाज मिली। अमेरिका में माहौल कुछ बदला, तो वह लौटीं। लोग सेहतमंद और सुखी समाज-देश के लिए परिवार नियोजन की अहमियत समझने लगे, सेंगर ने 1916 में अपना पहला जन्म नियंत्रण क्लिनिक खोला। विडंबना है, महिला पुलिसकर्मी ही छद्म वेश में छापा मारने व सेंगर को गिरफ्तार करने आती थीं। वह आठ बार जेल में बंद की गईं, पर ‘पराजय’, ‘समझौता’ जैसे शब्द उनके शब्दकोश में नहीं थे। महिलाओं में अलख जगाने व गर्भ-निरोधक गोलियों, उपायों के आविष्कार के लिए उन्होंने जमीन-आसमान एक कर दिया। वह समझाती थीं, बच्चों का ढेर लगाकर अपनी जिंदगी जहन्नुम मत बनाइए। उनका एक-एक वाक्य महिलाओं की बेड़ियां खोलता था। वह नर्स थीं, पर डॉक्टरों को पढ़ाती थीं। अपने जीते जी उन्होंने औरतों के तमाम सवालों के जवाब ढूंढ़ लिए थे और बोल गईं, ‘तुम चाहो तो सही, सब संभव है’। 
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें