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पुलिस आई और बदली जिंदगी

उन दिनों हांगकांग में सड़कों पर लड़के खूब लड़ते थे। कुछ लड़के लड़ने के शौक से लैस थे, तो कुछ लड़ाई की चपेट में आने को मजबूर। कुछ लड़के बिना सीखे खुली शैली में लड़ते थे, तो कुछ लड़के अपने बचाव के लिए पारंपरिक...

पुलिस आई और बदली जिंदगी
ब्रूस ली मार्शल आर्ट विशेषज्ञ, अभिनेताSat, 16 May 2020 09:09 PM
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उन दिनों हांगकांग में सड़कों पर लड़के खूब लड़ते थे। कुछ लड़के लड़ने के शौक से लैस थे, तो कुछ लड़ाई की चपेट में आने को मजबूर। कुछ लड़के बिना सीखे खुली शैली में लड़ते थे, तो कुछ लड़के अपने बचाव के लिए पारंपरिक और आधुनिक युद्ध कौशल सीखकर आते थे। कभी-कभी ऐसी गैंगवार होती कि कफ्र्यू के हालात बन जाते। सड़कों पर सन्नाटे की भयावहता देखकर लोग अंदाजा लगा लेते थे कि कितनी घातक लड़ाई हुई है। ऐसी ही एक निपट स्याह रात में घर के दरवाजे पर खुफिया पुलिस की दस्तक हुई थी। सहमते हुए घर के मालिक ने द्वार खोला। पुलिस अफसर ने कहा, ‘आजकल आपका लड़का खूब लड़ रहा है। समझा दीजिए, अगली बार लड़ा, तो जेल में डाल देंगे।’ 
थिएटर कलाकार पिता ली हुई-च्वेन ने किसी तरह पुलिस वाले को आश्वस्त किया कि उनका लड़का अब नहीं लडे़गा। बात-बात में ही पुलिस वाले ने बताया था कि आपके लड़के ने एक बड़े गैंगस्टर के बेटे को पीटकर अच्छा नहीं किया है। उस खूंखार गैंग का कोई ठिकाना नहीं, आपके लड़के को वे कभी भी निशाना बना सकते हैं। शायद किसी हत्यारे ने आपके बेटे को मारने का ठेका ले लिया है। यह सुनकर माता-पिता और पूरे परिवार में दहशत का माहौल बन गया। सबकी निगाह बार-बार उस 18 वर्षीय लड़के पर जा रही थी, जो आए दिन सड़कों पर अपनी युद्ध कला का जौहर दिखाता आ रहा था। पुत्र की चिंता पिता के मन में गहरे उतर गई। बेटे को कुछ हो गया, तो क्या करेंगे? कहीं पालन-पोषण में कोई गलती तो नहीं हो गई। अनायास पिता को वह दिन याद आ गया, जब बेटा स्कूल से दर्द से कराहता हुआ आया था। उसे स्कूल के बाहर लड़कों ने पीटा था। तब पिता के सामने दो विकल्प थे, बेटे को पिटने दिया जाए, ताकि वह दब्बू बना रहे। दूसरा विकल्प था, बेटे को प्रशिक्षित किया जाए, ताकि वह कम से कम अपना बचाव तो कर सके। कुछ दिन पिता ने ही बेटे को सिखाया और उसके बाद एक मार्शल आर्ट स्कूल में भेजना शुरू किया। उन्हें नहीं पता था कि लड़का मार्शल आर्ट का उपयोग सड़कों पर करने लगेगा। 
चार गुरुओं से उसने चाइनीज मार्शल आर्ट का बुनियादी ज्ञान हासिल किया था और ऐसी पुख्ता बुनियाद के बावजूद उसका सीखना थमा नहीं था। उसने अन्य छह प्रशिक्षकों से मिले ज्ञान को भी अपनी युद्ध शैली में उतार लिया। किसी प्रशिक्षक से तलवारबाजी, किसी से जुडो, किसी से कराटे, किसी से साइड किक, किसी से बॉक्सिंग, किसी से नानचाकु। पिता को पता था कि बेटा एक मार्शल आर्ट को भी सीख लेता, तो काम चल जाता, लेकिन बेटा कुछ विशेष था। बेटे की सोच थी कि सामने जो लड़ने आएगा, उसकी शैली तो कुछ भी हो सकती है। अगर प्रतिद्वंद्वी की शैली नहीं पता होगी, तो पिटने की गुंजाइश बन जाएगी, इसलिए जो भी युद्ध शैली शहर में सीखने के लिए उपलब्ध है, उन सभी को सीख लिया जाए। 
ऐसे बेटे की खासियत पिता को डराने लगी थी। बेटा 18 साल की उम्र तक हांगकांग की छोटी-बड़ी करीब 20 फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम कर चुका था। ऐसे बेटे को भला कौन पिता खोना चाहेगा? हांगकांग में उसे रखने से दो ही नतीजे मिल सकते थे- पहला, लड़ते हुए वह अपनी गैंग बना ले और अपराध की दुनिया में उतर जाए। या फिर जेल पहुंच जाए। दोनों ही स्थितियों में बेटे और परिवार का नुकसान तय था। खुफिया पुलिस द्वारा घर आकर दी गई चेतावनी ने पिता को मजबूर कर दिया। पिता ने तत्काल फैसला ले लिया। बेटे को उसी अमेरिका में भेज देंगे, जहां उसका जन्म हुआ था। बेटा हांगकांग में कुछ दिन अगर रह गया, तो तय है, हाथ से निकल जाएगा। एक डर यह भी सता रहा था कि अगर किसी गैंग ने बेटे को निशाना बनाया, तो क्या होगा?
यह पूरे परिवार के लिए निर्णायक मोड़ था। हांगकांग की गैंगवार से बचाते हुए बेटे को अमेरिका एक रिश्तेदार के पास भेज दिया गया। वहां पूरे संघर्ष के साथ एक नई जिंदगी शुरू हुई। शिक्षा पूरी करने और रोटी खाने के लिए उस लड़के ने वेटर की भी नौकरी की, लेकिन मार्शल आर्ट के प्रति प्रेम उसकी रगों में बह रहा था। उसने पास के पार्क में स्थानीय लड़कों को सिखाना शुरू किया। अनेक युद्ध कलाओं को मिलाकर उसने अपनी ही एक युद्ध कला विकसित कर ली और अमेरिकी युवाओं के बीच ब्रूस ली नाम से छा गया। उनकी अद्भुत कला उन्हें टेलीविजन और फिल्मों तक खींच लाई। ब्रूस ली (1940-1973) हॉलीवुड में अपनी कला के दम पर चमकने वाले पहले एशियाई सितारा थे। बेशक, अगर उस दिन उनके घर खुफिया पुलिस चेतावनी देने न आई होती, तो यह सितारा हांगकांग में ही किसी गैंगवार में डूब गया होता। 
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय

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