जिंदगी में सिर्फ वही नहीं होता, जो हम चाहते हैं। जिंदगी के कुछ ऐसे मोड़ भी आते हैं, जहां हमारा जोर नहीं चलता। समय और संयोग से उस युवा की जिंदगी भी ऐसे ही मोड़ पर थी। एक ऐसा युवा, जो किराना दुकान पर बैठ चुका था, जो चुनाव जीतकर राज्य विधानसभा में पहुंच चुका था, जो सेना में सेवाएं दे चुका था, पर तब भी एक ठौर की तलाश थी कि जिंदगी में किया क्या जाए? उसकी बड़ी तमन्ना थी कि अपना एक बैंक हो। वह अपनी जमा पूंजी लेकर पहुंच गया एक बैंक खरीदने, लेकिन उत्सुक खरीदार देख बेचने वाले के भाव आसमान पर चढ़ गए। औकात से कहीं ज्यादा ऊंचे भाव देख उल्टे पांव लौटना पड़ा। मन भारी था और रुक-रुककर रोष भी उमड़ता था। उस पराए शहर में रात चढ़ चली थी, कहीं आराम का एक ठिकाना चाहिए था। लंबी यात्रा और सौदे में विफलता के बाद थकान कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही थी। वह शहर के सबसे व्यस्त होटल में पहुंचा, तो देखा कि तरह-तरह के लोगों का मजमा लगा है। लोग हर बैठने लायक जगह पर बैठे हुए हैं, हर टहलने वाली जगह पर चलते वक्त काट रहे हैं। होटल के काउंटर पर पहुंचना भी आसान नहीं। फिर भी किसी तरह से अपना रास्ता तैयार करते वह युवा काउंटर पर पहुंचा, ‘कृपया, मुझे एक कमरा चाहिए।’ काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने बिना उत्साह जवाब दिया, ‘ये जो भीड़ देख रहे हो न, सभी को कमरा चाहिए, सब इंतजार में हैं, तुम भी आठ घंटे बाद आना, जब कमरे खाली होंगे, तुम्हें भी दे देंगे।’ एक झटका सा लगा कि आठ घंटे बाद ही आराम की व्यवस्था संभव है। काउंटर पर बैठे शख्स ने ही बताया कि सारे कमरे फुल हैं, तीन शिफ्ट में आठ-आठ घंटे के लिए कमरे दिए जा रहे हैं। मुसीबत यह कि आस-पास के इलाके में दूसरा कोई होटल नहीं है। सुविधाओं का कितना अभाव है। वह पहले विश्व युद्ध का आखिरी वर्ष था, आर्थिक गतिविधियां तेजी से बढ़ रही थीं। उस युवा ने सोचना शुरू किया कि होटल-सुविधा का विस्तार कितना जरूरी है। अगर दो-तीन और होटल होते, तो लोगों को लॉबी में ऐसे इंतजार न करना पड़ता। बड़े अफसोस की बात है। यही वह लम्हा था, जब उस युवा के दिमाग ने बैंक मालिक बनने की तमन्ना से कुछ अलग सोचना शुरू किया। उस थके हुए जवान को झुंझलाहट या निराशा नहीं हुई कि आराम के लिए एक कमरा भी नसीब न हुआ और शायद आधी रात के बाद या सुबह ही कमरा नसीब होगा। उन लम्हों में उस युवा को हेलेन केलर की पुस्तक याद आई, जिसमें उसने जाना था कि निराशावाद एक पाप है और मां भी याद आईं, ‘तुम्हें अपना मोर्चा खुद तलाशना होगा। यदि बड़े जहाज चलाना है, तो तुम्हें वहां जाना ही पडे़गा, जहां पानी गहरा है।’
उस युवा की नींद उड़ गई, थकान ढल गई, ‘बैंक नहीं, तो होटल ही सही।’ उसने काउंटर पर बैठे शख्स से पूछा, ‘क्या तुम इस जगह के मालिक हो?’ उस आदमी ने जवाब दिया, ‘हां, मैं ही हूं। मैं यहां फंसा हुआ हूं। मेरी मेहनत इस बोर्डिंग हाउस में बेजा खर्च हो रही है, जबकि असली धन तो तेल के क्षेत्र में बरस रहा है, जहां मुझे जाना है।’ युवा ने कहा, ‘तो तुम यह मुझे बेच दो।’
होटल मालिक ने घूरकर देखा, ‘तुम होटल व्यवसाय में आकर काम चलाना चाहते हो? उधर देखो, तेल के क्षेत्र में युवा रातोंरात करोड़पति बन रहे हैं।’ वाकई होटल उद्योग में अपने खतरे थे, पर उस युवा के मन में मां का संदेश गूंज रहा था कि बड़े जहाज की तमन्ना है, तो गहरे पानी तक जाना पडे़गा। और उस युवा ने गहरे पानी में अपना जहाज उतारने का फैसला कर लिया। अगले तीन घंटे तक वह होटल के बही-खातों की जांच करता रहा और अनुमान लगा लिया कि साल भर में निवेश की वसूली हो जाएगी और उसके बाद सिर्फ फायदा ही फायदा। लगे हाथ वहीं से अपने मित्रों से चर्चा की, बैंक से चर्चा की और होटल मालिक बनना तय हो गया। सौदा तय होने के बाद उस युवा ने अपनी मां को तार भेजने के लिए संदेश लिखवाया, ‘मां, मोर्चा मिल गया है, यहां पानी गहरा है और मैंने सिस्को में अपना पहला जहाज उतार दिया है।’ तार संदेश भेजने वाले टेलीग्राफर को विश्वास नहीं हुआ, उसने ध्यान दिलाया, ‘सिस्को में तो कभी नाव ही नहीं चली है? यहां कोई पानी भी नहीं है?’ युवा ने जवाब दिया, ‘तुम भेज दो, जिसे मिलेगा, वह समझ लेगा।’ कुछ ही वर्षों में दुनिया ने उस युवा को कॉनरड हिल्टन (1887-1979) के नाम से पहचाना। एक ऐसे बेमिसाल उद्यमी, जिन्होंने होटलों की दुनिया में एक नए शानदार युग का आगाज किया। वह सबको सिखा गए कि होटल कैसे खोला और चलाया जाता है।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय
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आराम तलाशती मुड़ी जिंदगी
कॉनरड हिल्टन प्रसिद्ध होटल उद्यमी | Published By: Naman Dixit
- Last updated: Sat, 13 Feb 2021 10:06 PM

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- Web Title:hindustan meri kahani column 14 february 2021
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