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Hindi News ओपिनियन मेरी कहानीजब लूट के खिलाफ लड़ गई वह लड़की

जब लूट के खिलाफ लड़ गई वह लड़की

वहां जल से सराबोर सांवले बादल सुंदर स्नेहिल पहाड़ियों को गले लगाकर बरसते थे। प्यार में पानी-पानी हो जाती थीं घाटियां और पानी पूरी विनम्रता के साथ हर ऊंची चीज के बगल से सिर झुकाए कलकल बह निकलता था...

जब लूट के खिलाफ लड़ गई वह लड़की
Pankaj Tomarरानी गाइदिन्ल्यू, स्वतंत्रता सेनानीSat, 10 Aug 2024 09:45 PM
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वहां जल से सराबोर सांवले बादल सुंदर स्नेहिल पहाड़ियों को गले लगाकर बरसते थे। प्यार में पानी-पानी हो जाती थीं घाटियां और पानी पूरी विनम्रता के साथ हर ऊंची चीज के बगल से सिर झुकाए कलकल बह निकलता था। लोग भी ऐसे ही थे, सिर झुकाए शालीनता की शॉल ओढे़ हुए, पर तब के राजा अंग्रेज बिल्कुल अलग थे। लोभ से लबालब अंग्रेजों के लिए धन ही सब कुछ था। भारत के कोने-कोने को लूट लेने को लालायित अंग्रेज न जाने कहां-कहां पहुंच जाते थे। मणिपुर के एकांत में भी अंग्रेजों ने लगान से आतंक मचा रखा था। 
वसूली का वार मणिपुर में स्थानीय लोगों को तबाह किए हुए था। साथ ही, अंग्रेजों और उनके दूसरे साहबों की सेवा भी स्थानीय लोगों की मजबूरी थी। ऐसी मजबूरी का सामना एक किशोरी ने भी किया, जिसकी उम्र बमुश्किल अपने 13वें साल में चढ़ी थी। उसे लोगों ने लगा दिया अंग्रेज बहादुरों की सेवा में और एक ही बार में मन झटके से उचट गया। बेगैरतों की बेगारी या सीधे अत्याचार? यह कैसी लूट है कि पहले लुटेरे सूचना देंगे कि हम फलां दिन आ रहे हैं और उसके बाद तुम तय समय पर डोली लेकर लुटेरों को बड़ी सड़क तक लेने जाओ। लुटेरों का ढोल-बाजे, माला-उपहार से स्वागत करो। ससम्मान डोली में बिठाओ, उनकी डांट-फटकार भी सुनते चलो। लुटेरों को गांव लाओ, ऊंचा आसन-गद्दी दो, सत्कार करो, सारी वसूली सामने रख दो। गोरे लुटेरों का जब तक मन करे, मौज कराओ। लूटने के बाद जब वे लौटने को कहें, तो फिर डोली में बिठाओ और छोड़कर आओ। हंस-हंसकर हाथ जोड़ो, बार-बार कहो कि आप फिर आइएगा, सेवा का मौका दीजिएगा, हम इंतजार करेंगे।
एक बार की लूट-सेवा ही उस किशोरी को ऐसी चुभी कि उसके मन में सवालों ने बवंडर खड़ा कर दिया। अगर हम बेगारी न करें, तो जान से हाथ धोने का खतरा है। अंग्रेजों के चमचे या गुर्गे भी कम नहीं थे, उन्हें भी बेगारी कराने की आदत पड़ी हुई थी। लूट-सेवा में कमी होते ही वे अंग्रेजों के कान भर देते थे। अंग्रेजों को लगता था कि शिकायत छोटी ही सही, अगर पनप गई है, तो उसे कुचल देने में ही भलाई है। पता नहीं, कब शिकायत विद्रोह में बदल जाए, पर विद्रोह का बिगुल तो मणिपुर में बज चुका था। 23 साल के एक नौजवान हैपोउ जादोनांग ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। वह नौजवान क्रांतिकारी उस किशोरी के ही चचेरे भाई थे। किशोरी ने भी झुक-झुककर झेलने के बजाय विद्रोह का रास्ता चुन लिया था। 
तब अंग्रेज केवल लूट ही नहीं रहे थे, नगाओं और जनजातियों की संस्कृति बदलने में लगे थे, ईसाई प्रचारकों का जाल धीरे-धीरे मोटा रहा था, पर जादोनांग एक दिन अंग्रेजी सेना के हाथ लग गए। अंग्रेजों ने मौका गंवाए बिना जादोनांग को फांसी पर लटका दिया। अब आंदोलन-विद्रोह की बागडोर उस किशोरी के हाथ में आ गई। कम उम्र में ही देशप्रेम से ओत-प्रोत किशोरी ने कमाल दिखाना शुरू किया। साफ घोषणा हो गई कि कोई बेगारी नहीं करेगा। अंग्रेजों को हम पर शासन करने का कोई हक नहीं है। ब्रिटिश सरकार को हाउस टैक्स वसूलने का कोई हक नहीं है। बिना पैसे लिए किसी अंग्रेज का एक सामान उठाने की भी जरूरत नहीं है। गांव-गांव में विद्रोहियों का संगठन मजबूत होने लगा।  अंग्रेजों तक रिपोर्ट पहुंच गई कि नगा हिल्स, मणिपुर व उत्तरी कछार पहाड़ियों के बड़े क्षेत्र में एक लड़की गाइदिन्ल्यू ने ब्रिटिश शासन के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। गाइदिन्ल्यू को पकड़वाने में मदद करने वालों को 500 रुपये इनाम देने की घोषणा हो गई। प्रलोभन दिया गया कि जो गांव गाइदिन्ल्यू को पकड़वाने में मदद करेगा, उसका लगान माफ कर दिया जाएगा।
साल 1932, अक्तूबर में एक दिन सुबह होने से पहले ही अंग्रेजों ने हमला बोल दिया, बहुत सारे विद्रोही मारे गए, गाइदिन्ल्यू पकड़ी गईं। अंग्रेज भी दंग थे कि इतनी छोटी लड़की ने इतना बड़ा विद्रोह खड़ा कर नाक में दम कर दिया है और अब अपने 4,000 योद्धाओं के लिए किला बना रही है। खैर, गाइदिन्ल्यू को ताउम्र कैद की सजा हुई। डरे हुए अंग्रेजों ने उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए अलग-अलग जेलों में रखा। कभी गुवाहाटी, कभी शिलांग, आइजोल, इंफाल, कोहिमा जेल में रखा गया और वह तुरा जेल से तभी आजाद हुईं, जब देश आजाद हुआ। 
अब खूब याद किया जाता है, पंडित नेहरू आजादी से बहुत पहले ही गाइदेन्ल्यू (1915-1993) से मिलने जेल गए थे और उन्हें रानी शब्द से विभूषित करते हुए लिखा था, ‘एक दिन आएगा, जब भारत उन्हें याद करेगा, उन्हें संजोएगा।’ वाकई, यह देश इस वीरांगना का ऋणी है, जिन्होंने 15 वर्ष लगातार जेल में बिताए, क्योंकि आजादी से कम उन्हें कुछ मंजूर न था। 
  प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय